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जजमेंटल है क्या: हॉल में कई लोग सोते रहे, कुछ इंटरवल में ही चले गए

राजकुमार राव और कंगना रनौत

राजकुमार राव और कंगना रनौत

राजकुमार राव और कंगना रनौत की फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ देखने का अचानक मुड हो गया। फिल्म के बारे में कुछ भी पता नहीं था, थोड़ा बहुत सुना था कि सस्पेंस, कॉमेडी और थ्रीलर सबकुछ है तो एकदम ख्याली पुलाव पका लिया था कि फिल्म तो बेहतरीन होने वाली है।

फिल्म शुरू होने से पहले बुलंद आवाज़ में वॉइस ओवर सुनाई पड़ी, यही कि मानसिक रोगियों का मज़ाक उड़ाना हमारा मकसद नहीं है। हल्का-फुल्का समझ तो आ ही गया था कि यह फिल्म मेंटल डिसऑर्डर पर आधारित है। चलिए पहले आपको बहुत शॉर्ट में फिल्म की कहानी बता देते हैं फिर आते हैं 260 रुपया और वक्त दोनों ज़ाया करके फिल्म देखने के मेरे अनुभव के बारे में।

फिल्म में कंगना रनौत मानसिक बीमारी से जूझ रही एक लड़की की भूमका निभा रही हैं, जो पेशे से एक डब आर्टिस्ट हैं। उनके बॉयफ्रेंड और मैनेजर की भूमिका में हैं हुसैन दलाल, फिल्म में जिनका नाम है वरुण। पूरी फिल्म के दौरान यह दिखाया गया है कि वह कंगना के साथ सेक्स करने के लिए बेताब रहते हैं लेकिन कंगना उनसे सब्ज़ियां ही ढुलवाती हैं।

इंटरवल से पहले जब आते हैं राजकुमार राव

इंटरवल से पहले कंगना के घर पर नए किराएदार के तौर पर केशव (राजकुमार राव) और रीमा की एंट्री होती है। पहली ही मुलाकात में कंगना, केशव और रीमा को घर के सारे नियम-कानून की जानकारी देकर दरवाज़ा बंद कर लेती है। उन्हें लगता है कि झक्की टाइप की कोई लड़की है।

फोटो साभार: Twitter

फिल्म में एक मोड़ आता है जब रीमा का मर्डर हो जाता है, जिसके बाद कहानी में ट्विस्ट देखने को मिलता है। कंगना को लगता है कि केशव द्वारा मर्डर को अंजाम दिया गया होगा मगर पुलिस के शक के दायरे में कंगना भी आ जाती हैं। अब शुरू होता है एक दूसरे को निर्दोष साबित करने का सिलसिला, जिसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

फिल्म के दौरान कई लोग झपकियां ले रहे थे

अब बात करते हैं फिल्म मुझे कैसी लगी। दरअसल, फिल्में देखने का हर किसी का अपना-अपना नज़रिया होता है। मेरा यह है कि मैं आंखों में नींद लेकर 10:20 वाली शो में पहुंचता हूं, फिल्म अगर अच्छी हुई तो नींद गायब और अगर बुरी हुई तो झपकियां आनी शुरू हो जाती है। इस फिल्म के साथ भी वैसा ही हुआ। शुरुआत के 20 मिनट देखने के बाद झपकियां आनी शुरू हो गई फिर लगा कि आसपास वालों को देखता हूं, वे क्या कर रहे हैं। मैंने देखा पास वाली सीट पर बैठे एक व्यक्ति खर्राटे ले रहे हैं, मुझे तसल्ली हुई कि चलो मैं ही अकेला नहीं हूं जिसे इस फिल्म ने बोर कर दिया।

इंटरवल में जब बाहर निकला तो काफी लोग बाहर की तरफ जा रहे थे। मुझे लगा कुछ खाने-पीने जा रहे होंगे मगर जब वापस आया तो देखा कि काफी लोग थिएटर से जा चुके थे।

फिल्म के सब्जेक्ट के अनुसार फिट नहीं बैठती कॉमेडी

फिल्म की कमियों की अगर बात करें तो कई सारी चीज़ें हैं, जिनकी वजह से शायद दर्शक खर्राटे ले रहे थे। पहली तो यह कि मेंटली अनफिट लड़की की कहानी जब दिखाने की कोशिश हो रही है, तब इस स्तर की कॉमेडी नहीं होनी चाहिए थी।

समाज में एक मानसिक तौर पर बीमार लड़की को किन-किन चीज़ों का सामना करना पड़ता है, इस सच से कोसों दूर है यह फिल्म। दर्शकों को ज़बरदस्ती हंसाने के लिए सेक्स की बातें या कॉन्डम्स दिखाना, फिल्म के सब्जेक्ट के साथ मज़ाक है।

कम शब्दों में कहें तो इस फिल्म ने मेरे 260 रुपये बर्बाद किए, वक्त ज़ाया किया, रातों की नींद खराब की और स्टोरी के नाम पर मज़ाक परोसा।

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