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“हमारे समाज में लड़कियां तोते की तरह हैं, जिनका घर उनका पिंजरा है”

Sakshi mishra

मेरी कोई बेटी नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं साक्षी मिश्रा के पिता के दर्द को नहीं समझ सकता हूं। मेरी भले ही बेटी नहीं है मगर एक तोता ज़रूर था मेरे पास, जिसने मेरे अंदर के पिता का हमेशा के लिए कत्ल कर दिया। मैं आज सिर्फ अपने तोते की बात करना चाहता हूं।

क्या आपने कभी “तोता चश्मी” के बारे में सुना है? पहले तोते की विशेषताओं को जान लीजिए। तोता खरीदते वक्त ये सब जानना ज़रूरी है। तोता एक हरे रंग का प्यारा सा पक्षी होता है, उसकी लाल चोंच और काले व गुलाबी रंग के कंठ होते हैं। उसे पिंजरे में पाला जाता है। चोंच से वह अपनी रक्षा के लिए कांट सकता है, यह कोई नहीं बताता। तोते के पर भी होते हैं, वह उड़ना पसंद करता है। यह भी गैर ज़रूरी है।

जिस घर में तोता पाला जाता है, वहां के लोग उससे बहुत प्रेम करते हैं‌। तोते की आवाज़ घर की बेटी जैसी होती है। उससे घर में रौनक बनी रहती है। तोते की आवाज़ घर के बाहर नहीं जाना चाहिए। जब तोता ज़्यादा टैं-टैं करने लगे, तो उसके पिंजरे पर कपड़ा डाल देना चाहिए। अरे, यह ज़ुल्म नहीं है। अनुशासन है और उसके भले की चीज़ है।

सालों मेहनत करने के बाद भी अगर एक दिन पिंजरे का दरवाज़ा खुला छूट जाए तो तोता उड़ जाता है। वह एक पल में मालिक का प्रेम भुला देता है और उसका खिलाया खाना भूल जाता है। 

जैसा कि समाज जानता है, मेरे पास भी एक तोता था। वह दो सप्ताह का था, जब मैं उसे अपने घर लाया और खिला पिलाकर बड़ा किया। मैंने तो अपने तोते को बोलना भी सिखाया। ठीक से चल भी नहीं पाता था जब वह मेरे पास आया था। उसे बिल्ली ना खाए यह सोचकर कितना आलीशान पिंजरा बनवाया था। सड़क छाप तोतियों से उसे दूर रखता था। 

वैसे तो इस्लाम में जाति और दहेज हराम है लेकिन मेरे भी कुछ अरमान थे। एक पढ़े-लिखे सय्यद घराने की कम बोलने वाली तोती से उसका ब्याह कराता। दहेज ना लेता लेकिन “गिफ्ट” ले लेता। राजनीतिक संबंध भी अच्छे होते रहते। पूरे एक हज़ार में खरीदा था, तो इतना हक तो था ही मेरा।

कैसा था मेरा तोता, आप जानना चाहेंगे?

मेरा तोता बहुत शालीन था, वह मेरे हाथ पर बैठता था। मैं उसके साथ सेल्फी भी लेता था। ऐसा नहीं था कि उसे कोई आज़ादी नहीं थी फिर भी जब मैंने उसको खिला पिलाकर, बोलना सिखाकर बड़ा कर दिया तो वह उड़ गया। “भागते” वक्त मैं वहां नहीं था।

सुनते हैं कि मेरी नानी ने उसे उस वक्त उड़ने से रोकने की कोशिश की थी लेकिन उसने उनका हाथ लहूलुहान कर दिया। हमें यह नहीं पता था कि तोता कांट भी सकता है। यही हाथ पिछले तीन सालों तक उसको खाना खिलाते थे और इन्हीं हाथों पर बैठकर वह गाना गाता था, सीटी बजाता था और गर्दन मटकाता था। पीतल का महल जैसा पिंजरा छोड़कर ना जाने क्यों उड़ गया?

खैर, तोता किसी घर के सदस्य से कम ना था, रोना पीटना और हाय तौबा का माहौल मच गया, रिश्तेदारों के फोन आने लगे, कुछ ने हमदर्दी जताई तो कुछ ने फब्ती कसी।

मुझे किसी ने इस बारे में नहीं बताया था। शाम को एक टीवी डिबेट पर मैंने अपने तोते को देखा। देखते ही खून खौल उठा। जिस तोते को मैंने ही बोलना सिखाया था, वह मुझे ही टीवी पर गाली दे रहा था। तोते को मैं खुला तो छोड़ देता था लेकिन उसके पर कांट देता था।

मेरा तोता टीवी पर कह रहा था कि मैं उसमें और अपने कबूतर में भेदभाव करता हूं। मैंने तुरंत घर फोन मिलाया और पूछा कि यह सब क्या हो रहा है? रिश्तेदारों ने एक स्वर में कहा कि क्या ज़रूरत थी तोता पालने की? ऐसे तोते को तो पैदा होते ही मार देना चाहिए। “क्या ज़रूरत थी अपने तोते को बोलना सिखाने की? वक्त रहते पर क्यों नहीं कांटे?”

मेरे तोते ने मुझसे सब कुछ सीखा लेकिन आज़ाद रहना कहां से सीख लिया यह मैं नहीं जानता हूं। लोग तो मेरा दर्द सुनकर मोदी जी से यह मांगकर रहे हैं कि तोते को 21 साल तक स्वामी की संपत्ति घोषित कर देना चाहिए। तोते को भी कोई हक मिले यह भला कौन सोच सकता है।

भागकर शादी करने वाली लड़की भी तोता चश्म ही होती हैं, उसमें भी एहसास और अरमान के पर हो सकते हैं, इससे समाज खौफ खाता है। उसके परों की बगावत में खोट खोजना आसान है, समाज के पिंजरे की बनावट की तारीफ से।

पिछले कई दिनों से साक्षी मिश्रा की शादी पर बवाल मचा हुआ है। बवाल के कई कारण हैं, उसका चुनाव सही या गलत हो सकता है लेकिन चुनाव केवल उसका हो यह सबसे ज़रूरी है। लव मैरेज को आज भी घृणा की नज़र देखा जाता है, खासकर अगर लड़की दूसरी जाति या धर्म में जा रही हो, जो समाज नुसरत जहां की शादी पर जश्न मना रहा था वही समाज साक्षी मिश्रा के खिलाफ है। 

खैर, सुनने में आया है कि मेरे तोते ने किसी मैना से शादी कर ली है। कोई चील या बिल्ली उसे खा भी सकती है। वापस आने की गलती की तो गोली मरूंगा! पिंजरे में कितना महफूज़ था। पीतल के पिंजरे से भी गया और मैना की वजह से तोता समाज से भी गया। पहले ही बताया था कि समाज भी तोता चश्म ही होता है। तोते का स्वभाव उड़ना है। समाज की कैंची से उसके पर कतरना कितना उचित है? यह कहानी पढ़कर अब कौन तोता पालेगा और जो पाले हुए हैं वह क्यों उसे आज़ाद करेंगे?

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