रोज़ की तरह जानलेवा जाम
गाड़ियों की अंतहीन कतार
ऊपर से अगिया बेताल घाम।
ऐसे में धनकटनी से निपटकर
गॉंव से अभी-अभी लौटा मनई
अपने फंसे रिक्शे पर ऊंघ रहा है
पर चेहरे पर ऐसा सजल भाव गोया
खेत में खड़ा पके धान सूंघ रहा है।
अभी कुछ वक्त तक यही चलेगा
गॉंव का सारा व्यौपार बहुत खलेगा
जाम में घाम में पक जाये भले तन
पर नम है बिटिया में अटका मन।
आखिर जाम भी टूटा और अब
सब भागे हैं ऐसे जैसे टूटा हो खूंटा
पर मनई का ध्यान तो कहीं और था
आंखों के सामने वही गंवई ठौर था
वो तो रिक्शे पर बैठे मर्द ने हरकाया
अबे ससुरे, रिक्शा तो अब आगे बढ़ा
तो चैतन्य हुई मनई की झुलसी काया
पैर पैडल पर सांप की तरह लहराया।
यह मनई भारत का एक ऐसा किस्सा है
जो गॉंव शहर के बीच पिसता हिस्सा है!
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