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बच्चों को नफरत से बचाइये ताकि आर्टिकल 15 सिर्फ संविधान में ना रह जाए

बचपन में एक संस्था के कार्यक्रमों में थोडा उठाना बैठना था तो वहां के कार्यकर्ताओं ने एक दिन चिप्पी मेरे घर के दरवाज़े पर लगा दी “हमें हिन्दू होने पर गर्व है” और साथ में ज्ञान की गंगा भी बहा दी कि हिन्दू सिर्फ धर्म नहीं बल्कि विचारधारा है और इसमें सभी को एक मंच में ले आने की ताकत है तो मैं बड़ा ही प्रभावित हुआ और उस दिन मुझे भी लगा कि हां मुझे भी हिन्दू होने पर गर्व है। असली कहानी बाद में शुरू हुई जब जाना कि विचारधारा में ही बड़ी-बड़ी बातें करने का कोई फायदा नहीं जबकि ज़िन्दगी में तो हम कुछ और ही कर रहे हैं।

मेरे पास हिन्दू हो के गर्व करने के ऑप्शन है क्यूंकि “मेरे कहीं पे जाने और किसी को छू लेने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता पर क्या हमारे चारों ओर बसे लोगों के पास भी यही ऑप्शन है ?” जब ये समझ बनी तो लगा यार इसमें गर्व वाली तो कोई बात है ही नहीं!

आर्टिकल 15 की कहानी मुझे अपने उसी जोन में वापस ले गयी जब हम अपने आसपास देखते तो बहुत कुछ हैं पर लगता है कि ये मेरी कहानी कभी नहीं हो सकती और इसी फेर में सब कुछ इग्नोर करते हुए ज़िन्दगी को समेट लेते हैं। जिस दिन ऐसा हमारे साथ होता है तो उस दिन हमारा साथ देने वाला कोई नहीं होता क्योंकि कोई और यही सोचकर चुप रह जाता है कि ऐसा मेरे साथ नहीं होगा और शोषण और दमन की कहानी इसी तरह से आगे बढ़ती रहती है।

एक डर का माहौल है सभी के अन्दर और कुछ सालों में वो डर बहुत बढ़ा है। संविधान को किनारे रखकर जितने भी सामाजिक सांस्कृतिक या अन्य तरह की पाबंदियों का दौर आया है तो सच में लगता है कि क्या सच में “विकसित और विकासशील देश ” जैसे शब्दों के आसपास भी टहलने के हकदार हैं हम? ये सब इतना संगठनात्मक हो रहा है कि डर लगने लगा है कि अगर किसी ने भी इसका विरोध किया तो उसे मार दिया जायेगा।

ये लाइन्स हम अक्सर सुनते हैं कि “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता” और “भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता” पर अगर आतंकवाद की कहानियों में या भीड़ द्वारा की गयी हत्याओं में एक ही तरह के लोग शामिल हो रहे हों और एक ही तरह की बातें हो रही हों तो कोई कब तक उसमें जाति धर्म और चेहरा नहीं खोजेगा?

देश में मुख्य मुद्दों को साइडलाइन कर के बाकि मुद्दों को हमने प्राथमिकता दे दी है, चमकी बुखार में कितने बच्चे मरे शायद मेरे लिए मुद्दा हो ना हो पर कोई “जय श्री राम” या वन्दे मातरम बोल रहा है या नहीं ये हमारे लिए देश भक्ति के नए पैमाने हो गये हैं।

ज़रा सोचिये हम कैसा देश अपने आने वाली पीढ़ी के लिए खड़ा कर रहे हैं जहां पर विचार शून्य भीड़ खड़ी है किसी को भी मारने पीटने पर उतारु है! अपने बच्चों को हिन्दू-मुस्लिम से अलग कीजिये और उन्हें अच्छी बातें सिखाइए। वरना किसी दिन भीड़ आप के गेट पर खड़ी होगी और पूछेगी कौन जात हो? अगर उत्तर भीड़ के हिसाब का नहीं हुआ तो भीड़ बिना चेहरे के आपको खत्म कर देगी।

किसी भी बच्चे को इंसान और इंसानियत पर गर्व करना सिखाइए बाकि चीजें उसके अन्दर शामिल खुद ब खुद हो जाएंगी और शायद तब आर्टिकल 15 सिर्फ संविधान की किताब में ना रहकर अपने आसपास अच्छे से नज़र आ जाये।

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