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गरीबी की वजह से इन बच्चों के मॉं-बाप ही करवाते हैं इनसे नशा

हम भुसावल के इकलौते गार्डन में बैठे थे। हम यहां सीड बॉल्स बेचने आए थे। ये मिट्टी की बॉल्स होती हैं, जिनमें बीज डालकर इन्हें सुखा दिया जाता है। फिर बंजर या खाली जगह पर इन्हें डाल देते हैं, ताकि बारिश में ये उग जाएं। बारिश का समय था, ज़्यादा लोग नहीं थे। गार्डन में दाहिनी ओर कूदने वाले मिक्की माउस रखे हुए थे और बाएं ओर झूले लगे थे। हम चार लोग मिक्की माउस के बगल में एक बेंच पर बैठे थे।

नशे के चंगुल में फंसे बच्चे

तभी एक बहुत गरीब सा दिखने वाला लड़का हमारे पास आया। उसने पतले, काले, मैले कपड़े पहने हुए थे, जैसे उसके पास बस वही एक जोड़े कपड़े थे। उसने सीड बॉल्स की तरफ इशारा करके पूछा कि ये क्या है? उसकी उम्र और फटे हाल देखकर हमने यह बोलकर उसे जाने को कहा कि ये उसके किसी काम के नहीं है, पेड़ लगाने के बीज हैं बस।

उसने बहुत ही अजीब तरीके से नशेड़ियों की तरह बोला कि ये उसके काम के हैं। मैंने अपने साथियों से पूछा कि यह बच्चा नशे में क्यों लग रहा है? उसके बाद जो एक के बाद एक कड़वे सच मेरे साथियों ने बताया, उसने मेरी आत्मा तक को हिला दिया।

मेरे साथियों ने बताया,

इन बच्चों को 3-4 साल की उम्र से ही दारू, सिगरेट, आदि का नशा करवाया जाता है। साइकल की टायर ठीक करने के लिए इस्तेमाल होने वाले लाल रंग के तरल पदार्थ को सूंघकर नशा करने की आदत इनमें बचपन से होती है। साथ ही ये 20-20 रुपए का पेट्रोल लेकर पीते हैं।

इतने तरह के नशे करने के तरीके मैं पहली बार सुन रही थी। मैं पूर्ण रूप से स्तब्ध थी लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि पुलिस स्टेशन बगल में होते हुए भी ये सब चल रहा था।

मेरे एक साथी ने मुझे तीन लड़कों के समूह की ओर इशारा करके उन्हें दूर से देखने के लिए कहा। मैं क्या देखती हूं? माचिस जली, सिगरेट पर लगी, और धुआं उड़ने लगा। मेरा दिमाग उन लड़कों की ही उम्र के मेरे ममेरे भाईयों और उन लड़कों की स्थिति की तुलना करने में जुट गया। इस तुलना ने मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया। क्या मैं अपने भाईयों को इतनी छोटी उम्र में ऐसे सिगरेट फूंकते हुए देख सकती हूं? क्या मैं उन्हें नशा करते देखने की कल्पना भी कर सकती हूं?

10-12 वर्ष के बच्चों में मुझे 40-50 साल के नशेड़ी दिख रहे थे

इस परिवार का मुखिया गार्डन के बाहर खिलौने बेचता है। माँ और बच्चे भीख मांगकर परिवार की आमदनी में योगदान देते हैं, जो पैसा आता है, उससे पूरा परिवार पेट भरने के अलावा दारू पीता है और नशा करता है।

मेरे साथियों ने बताया कि ये चार भाई हैं। एक बहुत छोटा है, 4-5 साल का। दिल की गहराई तक तब चोट लगी, जब पता चला कि उस मासूम जान को भी नहीं बख्शा गया, उसे भी नशा करवाया जाता है।

बच्चे ने की झूला झूलने की ज़िद

बातें करते-करते वही छोटा बच्चा हमारे पास आकर खड़ा हो गया। मेरे साथियों ने बताया कि वह छोटा बच्चा वही था। उसने लंबे बालों पर छोटा सा जूड़ा कर रखा था, उसके फटे पुराने कपड़े गंदगी से सराबोर थे, पैंट ढीला होने से काफी नीचे खिसक गया था, शरीर पर गंदगी और चेहरे पर मासूमियत थी।

मैंने उससे उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम राहुल बताया। मेरे पूछने पर भी उसने खाने के लिए मना कर दिया। हमने उसपर से अपना ध्यान हटा लिया और अपने काम में लग गए पर वह वहां वैसे के वैसे ही खड़ा था। मैं मन-ही-मन सोच रही थी कि क्या चाहिए इसे। मुझसे देखा नहीं गया तो मैंने पूछ लिया। एक साथी ने सिक्का देकर उसे भगाने की कोशिश भी की लेकिन उसने नहीं लिया और वह वहीं खड़ा रहा। 

मैंने उससे पूछा कि क्या उसे चॉकलेट चाहिए? उसने मिक्की माउस की ओर इशारा करते हुए कुछ बोला। हमें समझ नहीं आया लेकिन हम इतना समझ गए कि वह उस पर झूलना चाहता है। इसी बीच मेरे एक साथी ने उससे पूछा कि क्या वह सिगरेट या दारू पीता है? उसने आश्चर्यजनक रूप से हां में उत्तर दिया। 

क्या उन बच्चों के अधिकारों की चिंता किसी को नहीं है?

एक बच्चा, जिसके सुंदर मुख ने अभी बोलना भी ठीक से नहीं सीखा था, उसे नशा करवाकर उसे बर्बाद किया जा रहा है। यह किस प्रकार का बचपन है? क्या यह बचपन भी है? हमारे सामने मानवता की हत्या हो रही है और हम उससे मुंह फेर रहे हैं।

मुझे अपनी बेबसी पर तरस और गुस्सा आ रहा था। संविधान के मौलिक अधिकारों के मेरे ज्ञान पर उस वक्त मेरी बेबसी ठहाके लगा रही थी। मेरे सामने अधिकारों का हनन हो रहा था और मैं अपने कर्तव्य से विमुख था?

हमने बच्चे को घोड़े पर बैठाकर किया संतोष

गार्डन में कम लोग थे, इसलिए मैंने अपने साथियों से उसे झूला झुलाने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना करते हुए कहा कि झूले का मालिक उसे झुलने नहीं देगा क्योंकि उसके ग्राहक चले जाएंगे। वह बच्चा बहुत देर तक वहीं खड़ा रहा और मिक्की माउस की ओर इशारा करता रहा। शायद उसे लगा कि हम उसे झूला झुलवा देंगे।

हिंदुस्तान में यह दृश्य कोई नई बात नहीं है। बच्चों को उनके मां बाप द्वारा भीख मांगने भेजना आम बात है। आमतौर पर बच्चे की हालत और सूरत देखकर हम उसे एक भिखारी मान कर भगा देते हैं लेकिन वह बच्चा भीख नहीं मांग रहा था। वह दूसरे बच्चों की तरह ज़िद कर रहा था। उसे भी बुरा लग रहा था, जैसे दूसरे बच्चों को छोटी सी ज़िद पूरी ना होने पर लगता है। 

बिल्कुल आम बच्चों की तरह उसके दिल में भी उस मिक्की माउस पर झूलने का लालच फुदक रहा था। वह आंखों में हल्का पानी लिए वहीं खड़ा था। हिंदुस्तान के करोड़ों प्रताड़ित मासूमों की तड़प उस बच्चे की आंखों में प्रतिबिंबित होती दिख रही थी।

खैर, उस गार्डन में एक घोड़ा भी था। हमने उस बच्चे को घोड़े पर बैठा दिया। वह बहुत खुश हो गया। उसे देखकर हमें जो संतुष्टि मिल रही थी, वह अनमोल थी।

एक प्रश्न फिर भी मन को कचोट रहा था। कहीं इस संतोष की आड़ में मैं उस कड़वी सच्चाई को तो नहीं छुपा रही थी, जो उस बच्चे की पूरी ज़िंदगी को बर्बाद करने वाली है?

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