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क्या भारत और पाकिस्तान जल-युद्ध के कगार पर हैं?

ग्लोबल एनवायर्नमेंटल चेंज में जारी एक शोध पत्र  के अनुसार, गंगा-ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी घाटी क्षेत्र शीर्ष संवेदनशील भूभाग हैं। यहां जल-राजनैतिक समस्याएं, भू-राजनैतिक तनाव को जन्म दे रही हैं और संभवतः एक जल-युद्ध की संभावनाओं को भी पोषित कर रही हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदियां चीन, पाकिस्तान और भारत से बहने वाली विशाल नदियां हैं।

सिंधु नदी, गूगल फ्री इमेज

इंसान के लिए पानी का टकराव कोई नई बात नहीं है। एक जल संघर्ष डेटाबेस, अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि हमारे इतिहास में कितने प्रचलित जल संघर्ष रहे हैं। कुछ मामलों में, पानी संघर्ष के लिए एक ‘कारण’ के रूप में कार्य करता है, दूसरों में यह एक ‘हथियार’ के रूप में कार्य करता है। ज़ाहिर है, भू-राजनीतिक विवादों के कारण व्यापक हैं, लेकिन पानी की भूमिका को कम नहीं आंका जा सकता। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि अगले 50 से 100 वर्षों में जल-युद्ध की संभावना 75 से 95 प्रतिशत होगी।

एशिया में जल-युद्ध की और भी अधिक घातक संभावनाएं हैं, क्योंकि भारत, पाकिस्तान और चीन के शस्त्रागार में परमाणु हथियार हैं। क्या वे कभी पानी के लिए लड़ाई करेंगे?

2009 में, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी सार्वजनिक रूप से लिखते हैं कि “पाकिस्तान में जल संकट भारत के साथ संबंधों से सीधे जुड़ा हुआ है। दृढ- संकल्प ही दक्षिण एशिया में एक पर्यावरणीय तबाही को रोक सकता है, लेकिन ऐसा करने में विफलता, असंतोष की आग को भड़का सकती है जो चरमपंथ और आतंकवाद को जन्म देगी।” 2010 में, पाकिस्तानी आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफ़िज़ सईद ने भारत के खिलाफ जल-जिहाद की धमकी दी थी।

2016 में, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऊड़ी हमले के बाद सिंधु जल संधि पर जल मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक में कहा कि “रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकता है“।

2019 की शुरुआत में, भारत सिंधु जल संधि को तोड़ने के करीब पहुंच गया था। यह पुलवामा, कश्मीर में भारतीय सैन्यकर्मियों पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के जवाब में भारतीय प्रतिक्रिया थी। लेकिन, अब तक अमली जामा नहीं पहनाया गया और चीज़ें एक असहज सह-अस्तित्व में वापस आ गई हैं। इस संवेदनशील संधि के ध्वस्त होने से दोनों देशों  के पास खोने के लिए बहुत कुछ है।

क्या है भारत-पाकिस्तान के बीच पानी का मुद्दा?

1960 में, दोनों देशों ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए, जो पाकिस्तान और भारत के बीच सिंधु बेसिन की छह मुख्य नदियों को विभाजित करता है। तीन पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलुज पर भारत और तीन पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – में 80% पानी का अधिकार पाकिस्तान को दिया गया, जो भारत प्रशासित कश्मीर से होकर बहती हैं। इसका मतलब है कि जल-वार्ता हमेशा क्षेत्रीय संप्रभुता से जुड़ी रहेगी। यही कारण है कि कश्मीर में तनाव, बहुत जल्दी पानी को लेकर टकराव की स्थिति पैदा कर देता है।

सिंधु घाटी, फोटो- वीकिपीडिया (कीनन पेपर)

कुछ समय पूर्व मीडिया में था कि भारत ने पाकिस्तान में बहने वाले पानी को रोक दिया है। वास्तव में, भारत ने तीन पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज पर बांधों में से अतिरिक्त पानी को बहने से रोका है, जिस पर पाकिस्तान का कोई हक नहीं है।

भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्धों और संकटों के बावजूद दोनों देशों के बीच सिंधु जल बंटवारे को, विश्वभर में  एक अनुकरणीय उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। भारत ने मानवीय आधार पर, क्लेशों के बावजूद भी पाकिस्तान को बहने वाले पानी को कभी नहीं रोका। भारत जानता है कि पाकिस्तान में सिंधु जल पर निर्भर 18 करोड़ लोगों के लिए जीवित रहना कितना मुश्किल होगा।

भारत को सतर्क रखने वाला एक और कारक चीन है, जिसने सिंधु जल संघर्ष में अब तक मूक भूमिका निभाई है, और यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी भी है। भारत जानता है कि पानी को नियंत्रित करने में बहुत आक्रामक नहीं हुआ जा सकता है, क्योंकि, सतलुज और ब्रह्मपुत्र चीन की नियंत्रित भूमि से निकलती है। चीन ब्रह्मपुत्र के पानी को अपने स्वयं के सूखे क्षेत्रों में मोड़ सकता है, जिससे भारत के पूर्वी हिस्से में पानी की कमी हो सकती है या फिर अप्रत्याशित रूप से बड़ी मात्रा में पानी छोड़ सकता है जो बाढ़ का कारण बन सकती है।

इन सबसे ऊपर, दक्षिण एशिया में ग्लेशियरों और नदियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक अब उभरता जलवायु संकट है। जलवायु संकट समुद्र स्तर को बढ़ा देगा और सिंधु स्रोत को और अधिक तेज़ी से पिघला देगा। भारतीय ग्लेशियोलॉजिस्ट द्वारा किए गए हाल के अध्ययन से यह अनुमान लगता है कि पाकिस्तान को भारत की तुलना में सिंधु जल की अधिक मात्रा प्राप्त होगी। पाकिस्तान के लिए भी औसतन गिरावट का अनुमान है, लेकिन भारत के लिए स्थिति बहुत खराब होने वाली है।

ये साक्ष्य है कि पानी वास्तव में दक्षिण एशिया के भू-राजनीति में एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभर रहा है। राजनीतिक स्तर पर हमेशा संयम की अपेक्षा नहीं की जा सकती है इसलिए पानी को लेकर संघर्ष छिड़ सकता है, एक ऐसा संघर्ष जहां सीमा के दोनों किनारों पर रहने वाली इंसानियत हमेशा हारेगी।

भारत और पाकिस्तान को उभरते जलवायु और जनसंख्या संकट को देखते हुए वर्तमान संधि की समीक्षा करनी चाहिए। लेकिन कोई भी बिल्ली के गले में घंटी नहीं बांधना चाहता है, क्योंकि इसके अपने फायदे और नुकसान होंगे। चीन और अफगानिस्तान भी इस बार बातचीत का हिस्सा बनने की पेशकश कर सकते हैं। सिंधु नदी के दीर्घकालिक अधिकारों और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए, पूरी नदी घाटी की संयुक्त रूप से एकीकृत योजना और प्रबंधन प्रणाली पर विचार किया जाना चाहिए। आखिरकार, हर किसी की चाहत और ज़रूरत, एक जीवित नदी है।

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