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“मैं कबीर सिंह की जगह आर्टिकल 15 क्यों देखना ज़रूरी समझती हूं”

Article 15 and Kabir singh

मैं कोई फिल्म समीक्षक नहीं हूं और ना ही फिल्मों की समीक्षा करने में मेरी कोई विशेष रुचि है। मैंने तो सिनेमा हॉल जाकर अब तक शायद 20 फिल्में ही देखी होगी। एक के बाद एक फिल्में, कमाई का रिकॉर्ड तोड़ने की दौड़ में लगी हुई हैं, ऐसे में सिर्फ चुनिंदा फिल्में देखने का कारण यह नहीं कि मुझे मूवी देखने का शौक नहीं है, या लव स्टोरीज़ और एक्शन मूवीज़ पसंद नहीं हैं, या हॉलीबुड मूवीज़ समझ नहीं आती है, या सलमान-शाहरुख से कोई पर्सनल प्रॉब्लम है। बल्कि कारण यह है कि मैं पापा के पैसे “स्टूडेंट्स ऑफ द इयर” जैसी फिल्मों पर नहीं लगा सकती हूं। शायद ऐसे दोस्तों की भी कमी भी है, जिनके साथ समय बिताना, समय बर्बाद करना ना लगे।

इन सबके बीच जब फिल्म “आर्टिकल 15” जैसी हो, तो मेरी भी इस फिल्म को देखने में दिलचस्पी होगी और मैं चाहूंगी कि जो लोग “कबीर सिंह” के लिए पागल हुए जा रहे हैं, वे “आर्टिकल 15” को भी जानें और फिल्म देखें।

सोशल मीडिया पर मेरी स्टोरी देखकर मेरा एक करीबी दोस्त, जो उच्च कोटि का ब्राह्मण है, पूछता है

“आर्टिकल 15” क्या है?

मूवी के शौकीन दोस्त से यह प्रश्न पाकर यही रिप्लाई कर पाई,

“मूवी है”।

“कबीर सिंह” आने के पहले से और उसके आने के बाद अभी तक उस दोस्त के स्टेटस में लगाए हुए गानें, पोस्टर, मीम सभी मुझे बता रहे थे कि वह उस मूवी के लिए कितना पागल है। ऐसे ही एक स्टेटस का रिप्लाई करके मैंने उसे भारतीय संविधान के आर्टिकल 15 के बारे में बताकर मूवी देखने की भी सलाह दे दी।

फिल्म आर्टिकल 15 का दृश्य। फोटो सोर्स- Youtube

उसे सलाह पसंद नहीं आई क्योंकि वह उन तथाकथित ब्राह्मणों में से एक है, जिन्होंने वेद पुराणों का अध्ययन करके उच्च कोटी की गालियां रूपी मंत्र कंठस्थ की हुई हैं और उन्हें इस बात का घमंड है कि उनके गांव में वह जहां भी जाते हैं, वहां लोग पंडित जी कहकर उनके पैर छूते हैं। यह सब उन्होंने खुद बताया।

इनका आरक्षण का विरोधी होना स्वाभाविक ही था पर मैंने इनसे कहा,

आप जैसे लोगों की सोच ही आरक्षण जैसी बुराई का कारण है।

इसपर वह अपना आपा खो बैठे। इस तरह शिक्षित जनता भी आरक्षण के साथ-साथ समानता का भी विरोध करती है, तो इस व्यवस्था में राजनेता अपना उल्लू सीधा करेंगे ही।

हां, मैंने भी अपने घर छुआछूत की प्रथा देखी है।

यह सब मुझे भी बचपन से सिखाया गया है। पता नहीं क्यों यह सब मैं कभी सीख नहीं पाई और संविधान जानने के तो काफी पहले ही इन सब बातों पर मम्मी से लड़ भी जाती थी। बाद में जब थोड़े समझाने के काबिल हुई, तो मम्मी को समझाती भी थी।

आप भी सोचिए यदि कोई गंदगी साफ ना करे, तो क्या हाल होगा आपका, आपके शहर का, आपके देश का, आपके स्वास्थ्य का, क्या आप फिर अपना कोई भी काम, जिसे आप गंदगी साफ करने से कई गुना उच्च मानती हैं, समय से कर पाएंगी?

यही उदाहरण दिया था, एक बार मैंने घर में और बखूबी यह बात आर्टिकल 15 मूवी में भी फिल्माई गई है।

मैं कोई अपनी तारीफ नहीं कर रही हूं, बस यह कहना चाहती हूं कि कुछ बातें बिना विशिष्ठ बुद्धि लगाए, मात्र सामान्य बुद्धि लगाकर भी समझी जा सकती हैं। फिर भी लोग असक्षम हैं, तो ऐसी फिल्में उनकी बुद्धि और भावनाएं विकसित कर सकती हैं।

मैं कबीर सिंह के विरोध में नहीं हूं

फिल्म कबीर सिंह का दृश्य। फोटो सोर्स- Youtube

वैसे शाहिद कपूर से भी मेरी कोई दुश्मनी नहीं है, ना ही उसकी फिल्म की कमाई कम करने का मेरा कोई इरादा है, ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं है मुझमें लेकिन मैं अपने आसपास देखती हूं कि कैसे लोग इन फिल्मों से प्रभावित हो रहे हैं, कैसे सितारों के रहन-सहन, उनके अंदाज़ को अपना रहे हैं, कैसे लोग अपने को किसी ना किसी फिल्मी चरित्र से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में यदि कबीर सिंह जैसी मूवी से, वे लोग जो प्यार को समझते तक नहीं हैं, नकारात्मक शिक्षा लेते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

मैं कबीर सिंह के विरोध में भी नहीं हूं, बस चाहती हूं कि जब मनोरंजन का साधन, ये फिल्में इतनी प्रभावशील साबित हो रही हैं, तो मेकर्स और कुछ समझदार लोग ऐसे विषय क्यों ना चुने, जिससे मनोरंजन के साथ-साथ विकास हो, देशवासियों की सोच का, जिससे विकास होगा देश का। आखिर विकास का दायित्व किसी राजनेता या किसी दल के ऊपर ही तो सिर्फ नहीं है।

वैसे कबीर सिंह पसंद करने वाले कहते हैं कि यह फिल्म सच्चे प्यार को बताती है, तो मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि क्या सच्चा प्यार सिर्फ लड़का-लड़की के बीच होता है? मेरे हिसाब से फिर “आर्टिकल 15” भी सच्चा प्यार ही दिखाती है, एक ऑफिसर और उसके कर्तव्य के बीच का प्यार, यह वह प्यार भी दिखाती है, जो होना चाहिए सभी लोगों में, सभी जनों में, बिना कोई भेदभाव के।

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