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आर्टिकल 15: “जाति विरोधी नहीं बल्कि शोषक और शोषितों की कहानी है यह फिल्म”

film article 15

सोच रहा हूं इस फिल्म पर कहां से लिखना शुरू करूं? शुरुआत इस बात से ही करूंगा कि हर व्यक्ति को यह फिल्म देखनी चाहिए। भारतीय साहित्य जगत में जैसे कहा जाता है कि कुछ साहित्य लिख दिए जाते हैं, वैसे ही ऐसी फिल्में बन जाती हैं, जब निर्देशन, फिल्म लेखांकन, डायलॉग, अभिनय, पटकथा सारी चीज़ें एकदम परफेक्ट होती हैं।

बॉलीवुड के साथ-साथ हॉलीवुड की फिल्में देखना भी मेरा शौक रहा है और अक्सर फिल्मों में कुछ सीन ऐसे आते हैं, जिन्हें हम छोड़ने की सोच सकते हैं पर यह एक ऐसी फिल्म है, जिसे आप रिवाइंड करके देखना चाहेंगे। कुछ ऐसे भी सीन मिलेंगे, जहां अभिनय ही बहुत कुछ कह देता है।

फिल्म आर्टिकल 15 का एक दृश्य। फोटो सोर्स- Youtube

फिलहाल ‘कबीर सिंह’ और ‘आर्टिल 15’ के बीच चल रही बहस के बीच मैं यह कहना चाहूंगा कि ‘कबीर सिंह’ के साथ-साथ ‘आर्टिकल 15’ हर भारतीय को देखने की ज़रूरत है।

फिल्म में नहीं है ब्राह्मण जाति का अपमान

जैसा कि इस फिल्म को लेकर ब्राह्मण जाति का विरोध हो रहा है, तो मैं बताना चाहूंगा कि इस फिल्म में ब्राह्मण जाति के अपमान जैसा कुछ भी नहीं है। फिल्म में शोषण को दिखाया गया है, जिसके दो वर्ग होते हैं एक शोषित और दूसरा शोषक। फिल्म का केंद्र शोषित लोग हैं, उनपर होने वाले दुर्व्यवहार, उनके साथ होने वाले अन्याय या कहूं न्याय के स्थान पर अनदेखी को दिखाया गया है, जिससे शायद किसी भी धर्म या जाति को कोई आपत्ति नहीं ही होनी चाहिए।

फिल्म में कुछ डायलॉग आते हैं, जो दिल छू जाते हैं। सभी तो नहीं लिख सकता पर कुछ आप सभी के सामने रख रहा हूं, ताकि आप जब भी इस फिल्म को देखें, उसके भाव को समझने की कोशिश ज़रूर करें।

फिल्म में आयुष्मान खुराना से उसका ड्राइवर कहता है,

सब समान हो जाएंगे तो राजा कौन बनेगा?

आयुष्मान अपनी प्रेमिका के सामने यही सवाल ठोक देता है। इसपर प्रेमिका का जवाब आता है,

राजा चाहिए ही क्यों?

फिल्म में एक दलित नायक कहता है,

मैं और तुम इन्हें दिखाई ही नहीं देते, हम कभी हरिजन हो जाते हैं, कभी बहुजन हो जाते हैं, बस जन नहीं बन पा रहे हैं कि जन गण मन में हमारी भी गिनती हो जाए।

एक सीन में वह अपनी प्रेमिका से लिपटकर रोते हुए कहता है,

ऐसी जगह पैदा हो गए कि कभी तुम्हारे साथ नदी में पांव लटकाकर पांच मिनट नहीं बैठ पाए।

फिल्म देखने के बाद यदि आपको लगे कि सच में आपके क्षेत्र में ऐसी स्थिति नहीं है, तो या तो आप भाग्यशाली हैं या आपको आंखें खोलकर अपने देखने का दायरा बढ़ाने की ज़रूरत है। फिल्म के नायक की तरह अगर समय रहते कुछ लोगों ने भी सकारात्मक बदलाव शुरू कर दिए तो इस समाज को आने वाले समय में राजा राममोहन राय जैसे हीरो की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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