5 जुलाई 2019 को देश का बजट पेश हुआ लेकिन अब आप बजट को बहीखाते के नाम से याद कर लें, क्योंकि अब आने वाली खबरों में इस शब्द का इस्तेमाल आपको बार-बार सुनाई देगा।
जी हां, इस बार एक ऐसी चीज़ देखने को मिली है, जो कि मेरे हिसाब से तो प्रशंसनीय है। बजट को पेश करने के तरीके में बदलाव हुआ और एक अटैची या चमड़े के बैग में बजट को रखकर लाना व उसे पेश करने का तरीका बदल गया है। अब तत्कालीन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे लाल कपड़े में रखकर पेश किया है, जो कि एक भारतीय परंपरा, जिसे हम बहीखाता कहते हैं उसके अनरूप है। मुझे लगता है कि इस बदलाव से किसी भी भारतीय समुदाय को आपत्ति नहीं होगी।
यह फैसला प्रशंसनीय है, क्योंकि बजट शब्द फ्रेंच शब्द ‘bougette’ से आया है, जिसका मतलब होता है ‘लेदर बैग’। लेदर बैग को बदलकर अगर बहीखाते के रूप में पेश किया जाए तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है।
कहीं से भी सांप्रदायिक नहीं है यह फैसला
इस फैसले के ज़रिये शायद हम अपनी परंपरा के नज़दीक जा रहे हैं, क्योंकि हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाई सभी पुराने वक्त से बहीखातों का उपयोग करते रहे हैं। यह फैसला कहीं से भी सांप्रदायिक नहीं है। हां, अगर लाल कपड़े की जगह यह भगवा रंग का होता तो ज़रूर यह बदलाव सांप्रदायिक हो जाता।
उन्होंने ब्रीफकेस का इस्तेमाल क्यों नहीं किया?
इसका जवाब चीफ इकोनॉमिक एडवाइज़र कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने दिया है। उन्होंने कहा है,
यह भारतीय परंपरा में है। इससे यह पता चल रहा है कि हम पश्चिमी विचारों की गुलामी से अलग हो रहे हैं। यह बजट नहीं है, बल्कि ‘बहीखाता’ है।
पुराने वक्त में और कई जगह तो अब भी मुंशी लोग होते हैं, जो व्यापारियों के लिए लिखा पढ़ी का काम करते हैं। वे अपने सारे दस्तावेज़ एक लाल कपड़े में बांधकर रखते हैं, जिनमें खर्च-कमाई या पैसों के हिसाब-किताब के सारे कागज़ात होते हैं।