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आर्टिकल 15: “फिल्म की घटनाओं को काल्पनिक समझकर इग्नोर नहीं किया जा सकता है”

Film article 15

Mohammed Zeeshan Ayyub in a still from the movie Article 15

सभी फिल्मों की तरह “आर्टिकल 15” के भी शुरू होने से पहले वह पंक्ति चलती है, “इस फिल्म के सभी पात्र काल्पनिक हैं…”।

फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं दर्शाया गया है, जिसे काल्पनिक कहा जाए या समझा जाए। इसका एक-एक छायाचित्र, जहां करेले के रस के समान कड़वा है, तो वहीं मृत्यु जितना यथार्थ भी। फिल्म जिन भी घटकों की बात करती है, वे सदियों से हमारे सामने चलते आ रहे हैं किंतु हम उससे अंजान हैं या यूं कहें कि जानबूझकर अंजान बने रहने का नाटक करते रहते हैं।

आर्टिकल 15 फिल्म का दृश्य। फोटो सोर्स- Youtube

फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं प्रदर्शित किया गया है, जो सच से परे लगे बल्कि निर्देशक अनुभव सिन्हा और सिनेमाटोग्राफर इवान मोलिग्न ने इन छायाचित्रों को इस रूप में दर्शाया है कि हम अपने अंदर के उस अंजानेपन के चोले को निकाल फेंकने पर मजबूर हो जाते हैं, जिसे हमने अभी तक ओढा हुआ है। इसका एक-एक दृश्यचित्र हमें कड़वे सच को आत्मसात करने को विवश करता है, जिससे हम नज़रें फेरते रहे हैं।

2 घण्टे 11 मिनट की इस फिल्म में निर्देशक अनुभव सिंहा और लेखक गौरव सोलंकी ने विभिन्न पात्रों के माध्यम से समाज, सिस्टम, राजनीति के नंगेपन को दिखाया है। एक ऐसे राजनीतिक माहौल में, जहां ऊपरी राष्ट्रवाद अपने चरम पर है, यह फिल्म राष्ट्र के सबसे निचले पायदान पर जाकर या यूं कहें कि ग्राउंड ज़ीरो की कड़वी सच्चाइयों की बात करती है, जो उस ऊपरी राष्ट्रवाद से कोसों दूर है।

अपनी म़जदूरी में सिर्फ तीन रुपये बढ़ोतरी करने की मांग करती है तीन दलित लड़कियां और इसकी सज़ा मिलती है उन्हें उच्च जातियों द्वारा पहले गैंगरेप और फिर ज़िन्दा रस्सी के सहारे पेड़ से लटकाकर। एक लड़की जिसका नाम पूजा है, किसी तरह बच निकलती है। ऐसा इन लड़कियों के साथ इसलिए किया जाता है ताकि इनको इनकी औकात बताई जा सके। वह औकात जिसका पैमाना समाज के कुछ उच्च जाति के लोगों ने तय किया है।

फिल्म आर्टिकल 15 का दृश्य। फोटो सोर्स- Youtube

अयान इस औकात वाली बात से हक्का-बक्का है। अयान रंजन (आयुष्मान खुराना) जो कि लाल गॉंव बस्ती में नया-नया है, वह उच्च जाति का है और अपनी ड्यूटी को ईमानदारी से निभाने का आदी है। इसके बावजूद उसके सामने ही उसके लोग इस मामले को वैसे ही दबाने का प्रयास करते हैं, जैसे हमेशा से होता आया है। अयान के सहयोगी अयान पर दबाव डालकर केस बन्द करवा देना चाहते हैं, यह साबित करने के लिए कि ये लोग ऐसे ही हैं, इनके साथ ऐसा ही होता है, ये इनके साथ कुछ भी नया नहीं है और ऐसा ही होता रहेगा।

फिल्म के विभिन्न पात्र हमें सत्य से बेहद उम्दा तरीके से रूबरू कराते हैं। मसलन पुलिस मनोज पाहवा (ब्रह्मदत्त) को कुत्तों से बड़ी हमदर्दी है, वह उसे बिस्कुट खिलाता है मगर दूसरी तरफ वह दलित एवं निचली जातियों से घृणा करता है। उसे इन निचली जातियों से कोई हमदर्दी नहीं है, वैसे ही जैसा हमारे सामने समाज में घटित होता है। वह यह समझता है कि यह लोग स्नेह के हकदार नहीं हैं।

अयान का एक अन्य सहयोगी (कुमुद मिश्रा) जो कि दलित है, उसे इस पूरे जघन्य कांड पर सिहरन तो है मगर सिस्टम और उस संस्कृति का मारा हुआ है, जो आमतौर पर थानों और कोतवालियों में नज़र आता है। मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब एक दलित आंदोलनकारी के किरदार में हैं, जो कि अपने काम से काफी प्रभावित करते हैं। फिल्म में उनके द्वारा बोला गया यह संवाद काफी प्रासंगिक है,

मैं और तुम इन्हें दिखाई ही नहीं देते हैं। हम कभी हरिजन हो जाते हैं तो कभी बहुजन हो जाते हैं। बस जन नहीं बन पा रहे कि जन गण मन में हमारी भी गिनती हो जाए। इंसाफ की भीख मत मांगों बहुत मांग चुके।

फिल्म आर्टिकल 15 का दृश्य। फोटो सोर्स- Youtube

अन्य कलाकार भी अपने काम से छाप छोड़ जाते हैं। अयान जब इस केस की तह तक जाने का निर्णय करता है, तो उसे काफी चौंकाने वाले तथ्य प्राप्त होते हैं, जैसे कि उसके दो पुलिसकर्मी भी इस गैंगरेप में सहभागी होते हैं। अयान को अपराधी की राजनीतिक शक्ति का भी एहसास होता है, जो कि महंत जी के आदमी हैं और उनको राजनीतिक प्रश्रय प्राप्त है। राजनीति निचली और उच्च जातियों की एकता का ऐसा पाखण्ड रचती है कि नीची जाति के लोग बस भीड़ बनकर रह जाते हैं।

अन्य कलाकार भी अपने काम से छाप छोड़ जाते हैं। अयान जब इस केस की तह तक जाने का निर्णय करता है, तो उसे काफी चौंकाने वाले तथ्य प्राप्त होते हैं, जैसे कि उसके दो पुलिसकर्मी भी इस गैंगरेप में सहभागी होते हैं। अयान को अपराधी की राजनीतिक शक्ति का भी एहसास होता है, जो कि महंत जी के आदमी हैं और उनको राजनीतिक प्रश्रय प्राप्त है। राजनीति निचली और उच्च जातियों की एकता का ऐसा पाखण्ड रचती है कि नीची जाति के लोग बस भीड़ बनकर रह जाते हैं।

इसमें उन राजनीतिक दलों पर भी कटाक्ष किया गया है, जो सत्ता सुख के लिए किसी के साथ जाने से नहीं कतराते। अयान (आयुष्मान खुराना) के लिए इस चक्रव्यूह को तोड़ना आसान नहीं था मगर अपनी ईमानदारी और इच्छाशक्ति के कारण वह इस क्रूर अपराध की सच्चाई को सामने ला पाने में कामयाब हो जाता है।

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