Site icon Youth Ki Awaaz

पीरियड्स और प्रेगनेंसी में बाढ़ से जूझ रही महिलाओं की स्थिति

बिहार में बाढ़ है, नीतीश कुमार है। जी हां, पहले बच्चे लू के थपेड़ों से मर रहे थे, तो अब लोग बाढ़ में बह रहे हैं। नेतागण अपने-अपने हेलीकॉप्टर से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं और बाढ़ में बहते लोग उम्मीद भरी आंखों से देख रहे हैं कि कहीं कोई राहत सामग्री मिले। इस बीच मैंने बिहार में बाढ़ की त्रासदी झेल चुकी एक महिला से बात की।

बिहार बाढ़ में फंसे लोग। फोटो सोर्स-Getty

लोगों के स्वास्थ्य को लेकर सरकार कितनी जागरूक है, उसका अंदाज़ा आपको इस महिला की बातों से ही लग जाएगा। वह महिला मेरे घर पर काम करने आती हैं। उन्होंने बाढ़ के वक्त सरकारी सुविधाओं पर बात करते हुए बताया,

बाढ़ के कारण हम लोग छत पर रहने को मजबूर हो गए थे। बीच-बीच में बारिश भी हो रही थी और हम भीग रहे थे। हमारे साथ ही एक गर्भवती औरत थी और किसी भी वक्त उसकी डिलीवरी होने वाली थी। सरकार की तरफ से हमें कोई सुविधा नहीं मिली थी और हमने छत पर उस औरत की डिलीवरी करवाई थी।

उन्होंने आगे बताया,

किसी महिला की डिलीवरी अगर हो भी जाए तो माँ और बच्चे की देखभाल के लिए कोई उपाय नहीं होता है। खाना भी समय पर नहीं मिलता है और अगर खाना आ भी जाए तो लूट मच जाती है।

बाढ़ में महिलाओं की स्थिति पर बात करते हुए वह बताती हैं,

 हम महिलाओं को पीरियड्स भी होते हैं, यह बात सरकार क्यों नहीं समझती? बाढ़ के कारण पीरियड्स के समय हम महिलाओं को बहुत दिक्कत हो जाती है। ना पैड की सुविधा मिलती है और ना ही दर्द से बचने की कोई दवाई। 

उस महिला ने आगे बताया कि सरकार की तरफ से इंतज़ाम फीके पड़ जाते हैं और प्रशासन भी ढीला रवैया अपना लेता है। बाढ़ के वक्त तरह-तरह के कीट-मकोड़े आ जाते हैं। जिनके काटने से तबीयत भी खराब हो जाती है।

इसके साथ ही किसानों की फसलें नष्ट हो जाती हैं, पशुओं को चारा नहीं मिलता है, कैंप में बुनियादी सुविधाएं नदारद रहती हैं और इसके साथ सांप और ज़हरीले जानवरों का डर अलग ही समाया रहता है।

बाढ़ की वजह से रोज़ी-रोटी के लाले

फोटो सोर्स- बिहार के सीतामढ़ी क्षेत्र की मुखिया रितु जायसवाल की फेसबुक वॉल

चूंकि बिहार की एक बड़ी आबादी गाँव में रहती है, इसलिए उनकी रोज़ी-रोटी का ज़रिया खेती, मछलीपालन और पशु ही होते हैं और बाढ़ के कारण उनकी रोज़ी-रोटी भी नष्ट हो जाती है। इनसे बचने के लिए और रोज़ी-रोटी के लिए सरकार कोई इंतज़ाम मुहैया नहीं कराती है। अभी हाल में रजवाड़ा पंचायत की एक खबर सामने आई है, जहां गर्भवती महिलाओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 

बिहार में बाढ़ अब आम बात हो गई है। लोगों का मानना है कि बिहार में रहेंगे, तो बाढ़ झेलेंगे ही, अब आदत हो गई है इसकी। हर साल बांध टूटता है, हर साल कोसी नदी उफनती है, कभी बाढ़ का दोषी नेपाल हो जाता है, तो कभी नदियों में जमी गाद।

आम जनता को केवल आश्वासन मिलता है कि अगले साल बाढ़ के कारण तबाही नहीं होगी। सरकार विभिन्न परियोजना और योजनाओं की बात करती है लेकिन सभी केवल फाइलों में रहती हैं। आम जनता की हालत ना सुधरती है और ना ही सरकार की जुमलेबाज़ी बंद होती है

बाढ़ में जो लोग फंसे होते हैं, उन्हें प्रशासन की तरफ से बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलती हैं। बूढ़े, बच्चे, महिलाएं और पुरुषों को जिस तरह की सुविधाएं मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पाती है।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि किस तरह लोग राहत सामग्रियों के इंतज़ार में रहते हैं। घरों में पानी भर जाने के बाद उन्हें दर-दर भटककर शरण लेनी पड़ती है। उनके अनाज, पशु और जलावन आदि सब बाढ़ के कारण बर्बाद हो जाते हैं। बाढ़ का प्रकोप बिहार के निचले हिस्सों को डूबो देता है और इसके साथ ही कई ज़िन्दगियां भी डूब जाती हैं।

बाढ़ के बाद की स्थिति 

बाढ़ के बाद की स्थिति भी बहुत भयंकर होती है, क्योंकि जैसे-जैसे पानी का स्तर कम होता है, लोगों के बीच महामारी फैलने का डर बढ़ते जाता है। बीमारियां अपने पैर पसारने लग जाती हैं, जिसके बाद लोग और भी ज़्यादा त्रस्त हो जाते हैं। 

सरकार को यहां चाहिए कि वह बाढ़ के बाद लोगों के लिए पुख्ता इंतज़ाम करे, ताकि इनकी ज़िन्दगी वापस पटरी पर आ सके।

वरना हर साल बिहार में बाढ़ का आना उच्च अधिकारियों के लिए कमाई का ज़रिया ही बनकर रह जाएगा और आम जनता आश्वासन में अपनी ज़िन्दगी गुज़ार देगी।     

Exit mobile version