आखिर समाज में अशांति का माहौल कैसे तैयार होता है? इसके कारणों पर अगर हम ध्यान दें, तो हम पाएंगे कि प्रत्येक व्यक्ति के कुछ हित होते हैं, जिनको आधार बनाकर व्यक्ति किसी भी संगठन की सदस्यता स्वीकार करता है। वह जानता है कि उसके हित इस संगठन में ही पूरे होंगे, तभी वह उस संगठन को अपनाता है।
रहीमदास ने ठीक ही कहा है,
स्वार्थ लगाई करे सब मिति ये ही जग की रीति।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शांति के प्रख्यात विद्वान और प्रोफेसर जॉन गाल्टून कहते हैं कि शांति को हम दो रूपों में देख सकते हैं।
- सकारात्मक शांति:
संरचनात्मक हिंसा अर्थात जातिवाद, पितृसत्ता, गरीबी ,अशिक्षा, असमानता का अभाव और सांस्कृतिक हिंसा का अभाव।
- नकारात्मक शांति:
युद्ध के रूप में, जिससे व्यक्ति को वृहत्तम रूप में चोट ना पहुंचे, खून-खराबा हो।
यदि गाँधी जी के विचारों पर ध्यान दिया जाए तो वह कहते हैं,
प्राणी मात्र को चोट पहुंचाना ही हिंसा की श्रेणी में नहीं आता, बल्कि मन और वचन से भी किसी के बारे में ऐसा सोचना हिंसा ही है।
हिंसा एक बुराई होती है, जो अस्थिर होती है, इसलिए हिंसा की बजाए अहिंसा का मार्ग उचित है। विरोध एक अच्छा कार्य होता है, जिसमें हम पुराने या असंंवैधानिक मूल्यों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।
बौद्ध धर्म के प्रवर्त्तक एवं निर्माता ने शांति के विषय में कहा है,
दुष्कर्म की शुरुआत व्यक्ति के मस्तिष्क से होती है, इसलिए इसका निवारण भी व्यक्ति के मस्तिष्क से होना चाहिए।
प्रेम और प्रार्थना पर मदर टेरेसा के विचार।
मदर टेरेसा अपने भाषण में कहती हैं,
प्रेम कहां से शुरू होता है?
- अपने परिवार से
- अपने घर से
प्रेम कैसे शुरू होता है?
- एक साथ प्रार्थना करने से।
- यदि आप लोग साथ रहेंगे, तो आप भी एक दूसरे को प्रेम करने लगेंगे, जैसे ईश्वर या प्रभु या भगवान हम सभी को करते हैं।
- आज संसार में अत्यधिक दुख है, इसलिए हमें परिवार में प्रार्थना और एकता को बनाए रखना चाहिए।
- हमें एक साथ होने की ज़रूरत है, तभी हम एक मज़बूत सुधार ला सकेंगे।
- जब हम एक परिवार के रूप में होंगे तो हमें अलग-अलग प्रार्थना करने की ज़रूरत नहीं होगी, क्योंकि उस समय हम एक ही परिवार होंगे।
- तब हम अपने बच्चों को प्रार्थना के बारे में बताएंगे और उनके लिए प्रार्थना करेंगे।
- तब हम देखेंगे कि आनंद, प्रेम और शांति हमारे हृदय में होगी, क्योंकि प्रार्थना की पुकार हमारे विश्वास पर निर्भर करती है।
- प्रार्थना की पुकार प्रेम है, प्रेम की पुकार सेवा है और सेवा की पुकार शांति है।
- आप प्रेम के लिए कार्य करते हैं तो भी वह शांति का ही कार्य है।
संघर्ष निवारण से पहले संघर्ष क्या है?
दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच आपसी हितों के टकराव के कारण होते हैं। प्रत्येक संघर्ष हिंसा नहीं होती है। हिंसा से जब संघर्ष का समाधान नहीं निकाला जाता है, तो वह संघर्ष हिंसा का रूप ले लेती है।
हिंसा का नाम लेते ही हमारे दिमाग में एक छवि बन जाती है, जिसे हम इन रूपों में समझ सकते हैं।
- अप्रत्यक्ष हिंसा
- संरचनात्मक हिंसा
- सांस्कृतिक हिंसा
- प्रत्यक्ष हिंसा
मदर टेरेसा के शांति संबंधित विचारों ने किस प्रकार संघर्ष निवारण के संबंध में कार्य किया है, अगर हमें यह समझना है, तो हमें मदर टेरेसा के कार्यों को देखना होगा। देखने पर हम पाते हैं कि उन्होंने बिना किसी भेदभाव के समाज में स्थापित जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हुए हर धर्म और जाति के लोगों की सेवा की। इस सेवा ने ना केवल जातिवाद, अशिक्षा, गरीबी जैसे संघर्षों से जमकर मुकाबला किया, बल्कि उस पर लगभग विजय भी प्राप्त की।
उन्होंने गरीबी से आए दिन हो रही लोगों की मौत, भूखमरी, अशिक्षा के खिलाफ काम किया और लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
संघर्ष निवारण संरचनात्मक हिंसा का एक साक्षात प्रमाण है, जिसे उन्होंने खत्म करने की कोशिश की। इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी शांति को हम संघर्ष निवारण का पर्यायवाची भी कह सकते हैं।
दयानन्द सरस्वती अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में कहते हैं,
सत्य को ग्रहण करना और असत्य का परित्याग करना ही सत्यार्थ प्रकाश का मूल उद्देश्य है और यही सभी सुधारों का मूल मंत्र भी है।
वह भूमिका में लिखते हैं कि सत्योपदेश के बिना किसी जाति का विकास नहीं हो सकता है। मदर टेरेसा ने वही काम किया। उन्होंने अन्याय के सूचक असत्य को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।