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कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (CSR

हाल ही में लोकसभा द्वारा कंपनी संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया गया है।कॉरपोरेट मामलों के मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि बिल को “कॉर्पोरेट प्रशासन के मानदंडों को मजबूत करने और कॉर्पोरेट क्षेत्र में अनुपालन प्रबंधन” को और अधिक जवाबदेही और बेहतर प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिए लाया जा रहा है।

इसके अनुसार, यदि कोई कंपनी अपने द्वारा निर्धारित कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (Corporate Social Responsibility-CSR) फंड की राशि एक निश्चित अवधि में खर्च नहीं करेगी, तो वह राशि स्वत: केंद्र सरकार के एक विशेष खाते (जैसे- क्लीन गगा फंड, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष) में जमा हो जाएगी।

ऐसे बदलाव आवश्यक भी थे एवं स्वागत योग्य है क्यो कि कानून में प्रावधान होने की बावजूद कंपनियां इस फण्ड में निवेश नहीं कर रही थी और इसके बजाये जरुरत पड़ने पर कर्मचारियों की सैलरी से कटौती करके गवर्नमेंट को सहायता देती रही हैं जब भी कोई आपदा आयी जैसे बाढ़ भूकंप या अन्य तो कम्पनिया वेतन कटौती कर रही है जबकि इसके लिए कम्पनीज एक्ट में अलग से प्रावधान है

भारत में बहुत कम कम्पनिया इस फण्ड का सही प्रबंधन कर रही है जैसे रिलायंस, TCS , HDFC, INFOSYS, ITC, Tata Steel, WIPRO

CSR क्या है?

CSR से अभिप्राय किसी औद्योगिक इकाई का उसके सभी पक्षकारों, जैसे- संस्थापकों, निवेशकों, ऋणदाताओं, प्रबंधकों, कर्मचारियों, आपूर्तिकर्त्ताओं, ग्राहकों, वहाँ के स्थानीय समाज एवं पर्यावरण के प्रति नैतिक दायित्व से है।

मुख्य बिंदु

CSR के तहत उपरोक्त कंपनियों को अपने पिछले तीन वर्षों के शुद्ध लाभों के औसत का 2% निम्नलिखित गतिविधियों पर खर्च करना पड़ता है:

भारत में सीएसआर के प्रावधान

• 2013 के कंपनी अधिनियम के तहत कंपनियों को उनके पिछले 3 वर्षों के औसत निवल मुनाफे का कम से कम 2 प्रतिशत सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करना पड़ता है।

• इस अधिनियम के अंतर्गत कंपनियों से यह आशा की गयी है कि वे जिस प्रकार अपने व्यवसाय के संचालन हेतु अपनी व्यवसायिक सूझबूझ तथा मूल दक्षताओं का उपयोग करते हैं, ठीक उसी तरह से वे सामाजिक मुद्दों को भी संबोधित करें।

• कंपनी अधिनियम 2013, दो या अधिक कंपनियों को एक पृथक कानूनी इकाई का प्रयोग करते हुए एक साथ कार्य करने की अनुमति प्रदान करता है।

• हालांकि ये नियम सीएसआर गतिविधियों की निगरानी के लिए तथा इसके दिशा-निर्देशों को पूरा करने में विफल रहने वाली कंपनियों के लिए किसी भी दंडात्मक कार्रववाई के लिए कोई प्रावधान प्रदान नहीं करते।

छह महत्वपूर्ण क्षेत्र जो सीएसआर आकर्षित करने में नाकाम रहे हैं
• स्लम विकास।

• शैक्षणिक संस्थानों में प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेटर (ऊष्मायित्र) ।

• ग्रामीण के रूप में अच्छी तरह से पैरा ओलम्पिक और ओलंपिक खेलों को बढ़ावा देना।

• प्रधानमंत्री राहत कोष।

• राष्ट्रीय विरासत, कला और संस्कृति का संरक्षण।

• सशस्त्र बलों के दिग्गजों और युद्ध विधवाओं का कल्याण।

द सेंटर फॉर एशियन फिलैन्थ्रोफी एण्ड सोसायटी (CAPS) ने हाल ही में एक अनोखा सर्वेक्षण किया है, जो ‘डुईंग गुड इंडेक्स‘ के नाम से जाना जाता है। इस सर्वेक्षण में निजी सामाजिक निवेश को सक्षम बनाने और उनमें बाधा डालने वाले तत्वों पर प्रकाश डाला गया है। इससे कई ऐसी दरारों का पता चलता है, जो परोपकार के कामों में रुकावट बनती हैं।

डुईंग गुड इंडेक्स‘ के अनुसार लगभग 100 विश्वविद्यालय ऐसे हैं, जो परोपकार अलाभकारी प्रबंधन और सामाजिक उद्यमिता की शिक्षा दे रहे हैं। दरअसल, ऐसे शिक्षण संस्थाओं की बहुत अधिक आवश्यकता उन कंपनियों को है, जो सीएसआर प्रयासों में जुटी हैं। अनेक गैर-सरकारी संगठनों को भी इनके विद्यार्थियों की जरूरत होती है। इसके बावजूद 72% संस्थाओं के पास स्टाफ की कमी है। दूसरी ओर, 41% संगठनों के पास बोर्ड में बैठने लायक कार्पोरेट अनुभव वाले व्यक्ति की कमी थी। समस्या वहीं आती है, जब आलमकारी संस्थाओं के पास सीएसआर का प्रबंधन करने के लिए कुशल व्यक्ति नहीं होते। अतः सीएसआर कानून ने कंपनियों को प्रबंधन के लिए अपनी रिपोर्ट में 5% प्रशासनिक शुल्क जोड़ने की छूट दे दी है।

अच्छा तो यही होगा कि कंपनियां ही अपने कर्मचारियों को टेक्निकल सहायता देने के लिए प्रोत्साहित करें, और वह भी शुल्करहित। ऐसे कामों में लगे कर्मचारी के समय को कंपनियों के 2% सी.एस.आर. में ही जोड़ा जाए। आर्थिक और तकनीकी संसाधनों के मेल से कंपनी द्वारा दिया गया दान वाकई सफल सिद्ध होगा। भारत ही एकमात्र देश है, जहाँ सी.एस.आर. जैसा शुभ-कार्य किया जा रहा है। समय-समय पर मिलने वाले प्रयोगों से सीखकर इसे और भी प्रभावशाली बनाया जा सकता है।

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