राज्यसभा में एक ओर माननीय गृह मंत्री अमित शाह अपने प्रस्तावित संकल्प को राज्यसभ में सभापति महोदय के समक्ष रख रहे थे वहीं गुलाम नबी आज़ाद ऐसी प्रतिक्रिया दे रहे थे मानो कश्मीर से उनकी ज़मीनदारी छीनी जा रही हो।
बहरहाल, ये मुद्दा धारा 370 और अनुच्छेद 35 A की समाप्ति पर ही टिका था और आज भारत सरकार ने उसे भी राष्ट्रपति से अनुमोदित कर, निष्क्रिय कर दिया है।
कश्मीर से जुड़ी हैं भावनाएं
केंद्र सरकार की इस पहल का समर्थन हमें ज़रूर करना चाहिए मगर कुछ ऐसे सवाल अब भी हमारे देश में मौजूद हैं, जिनको दिखाने की गुंजाइश ना तो मीडिया से है और ना ही पिछली किसी सरकार ने उस पर से पर्दा हटाया है।
इसके पीछे कारण यह है कि देश की जनता की भावना कश्मीर से आज़ादी के वक़्त से जुड़ी है और जब-जब बात देश की अखंडता पर आती है तब-तब भारत की सरकार (चाहे वो किसी भी पार्टी की रही हो) लोगों की भावनाओं पर मरहम लगाने का काम करती है।
आज़ाद भारत में अनुच्छेद 370 की समाप्ति हमें यह सोचने को मजबूर करती है कि देश के अन्य राज्य, जिन्हें भारत सरकार द्वारा विशेष पहचान प्राप्त है, उन्हें सरकार कब तक मिटा पाएगी? क्या वहां एकता और एक देश, एक कानून की विचारधारा काम नहीं करती? वो राज्य और कानून जिनका मैं ज़िक्र करने जा रहा हूं क्या वे हमारे देश की एकता और अखंडता में विश्वास नहीं रखती?
अनुच्छेद 370 के अलावा 370 भी देता है विशेष अधिकार
जहां जम्मू-कश्मीर पर अनुच्छेद 370 लागू था वहीं देश के कुछ अन्य राज्य हैं जिन पर अनुच्छेद 371 लागू हैं। अनुच्छेद 371 के अंतर्गत महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं पूर्वोत्तर के राज्य हैं। इन राज्यों को अनुच्छेद 371 के आधार पर विशेष दर्जा मिलता है।
जिन राज्यों पर अनुच्छेद 371 लागू है उन्हें कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं जो कि देश के बाकी राज्यों को नहीं दिए गए। जैसे-
- अनुच्छेद 371 राष्ट्रपति को महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्य के कुछ क्षेत्रों के लिए अलग विकास बोर्ड के गठन की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 371 (A) नागालैंड राज्य के नागाओं की धार्मिक प्रथाएं, प्रशासन,भूमि और संपत्ति का स्वामित्व में विशेष अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 371 (B) असम के लिए विशेष प्रावधान उपलब्ध कराता है।
- अनुच्छेद 371 (E) और 371 (D) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य में प्रशासन एवं सिविल रोजगार में विशेष प्रावधान प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 371 (G) मिज़ोरम के लिए विशेष प्रावधान तय करता है जिसके मुताबिक, मिज़ोरम में सिर्फ वहां के आदिवासी ही ज़मीन के मालिक होंगे। बता दें कि यहां प्राइवेट सेक्टर उद्योग करने के लिए ज़मीन ले सकता है लेकिन वह सिर्फ राज्य सरकार मिज़ोरम (भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन और पुनर्स्थापन) एक्ट 2016 के तहत ऐसा कर सकते हैं।
इसके अलावा देश में गोआ, अरुणाचल और कर्नाटक में भी विशेष प्रावधान है मगर सवाल यह है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव का क्या?
अमूमन जम्मू प्रान्त पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी है और दुनिया इस क्षेत्र को एक आग के गोले की नज़र से देखती है।
इसके अलगाववादी सिद्धान्त परस्त नेता और पाकिस्तान समर्थक नारे, हमें यह सोचने को विवश करते हैं कि क्या यह सचमुच अपने ही हैं? देर आये दुरुस्त आये मगर हम हमेशा इतनी देर में ही क्यों आते हैं?