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“CBSE परीक्षा शुल्क 24 गुना बढ़ाकर SC-ST को शिक्षा से वंचित करना चाहती है”

एक ओर जहां देश में सर्व शिक्षा अभियान के ज़रिए शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर CBSE जैसी संस्था SC-ST स्टूडेंट्स की फीस में 24 गुना वृद्वि करके उनके साथ मज़ाक कर रही है।

SC-ST के लिए फीस 50 रुपए से बढ़ाकर 1200 रुपए कर दी गई है, वहीं सामान्य वर्ग के स्टूडेंट्स के लिए फीस 750 रुपए से बढ़ाकर 1500 रुपए कर दी गई है। CBSE ने SC-ST के लिए 24 गुना फीस वृद्धि करके इस वर्ग के गरीब बच्चों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या वे अपनी पढ़ाई जारी रख पाएंगे?

इस तरह बाबा साहब अंबेडकर का “सबको शिक्षा का अधिकार” मिलने का सपना धूमिल होता दिख रहा है। देश जहां एक ओर प्रगति के नए आयाम की ओर अग्रसर है, कई योजनाओं पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, मूर्तियों के नाम पर हज़ारों करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर दलित और पिछड़े समाज के बच्चों की फीस में 24 गुना वृद्वि करके उनसे पढ़ाई का अधिकार छीनने की तैयारी है।

आप ही बताइये क्या एक गरीब और वंचित समाज का बच्चा 1200 रुपये फीस भर पाएगा? जिस परिवार की महीने की आमदनी ही मुश्किल से 3 या 4 हज़ार होती है, ऐसे परिवार के बच्चे के लिए 1200 रुपये फीस देना, वह भी सिर्फ परीक्षा शुल्क यह कहां का न्याय है?

CBSE का यह तुगलकी फरमान यही संदेश देता है कि पिछड़े दलित और गरीब बच्चे पढ़ाई से वंचित रहें, वे समाज की मुख्य धारा में ना आ पाएं। आज भी दलित सबसे पिछड़े समुदाय में शामिल हैं। शैक्षणिक रूप से भी वे सबसे अधिक वंचित हैं। आर्थिक और सामाजिक रूप से सदियों तक असमानता झेलते आए दलितों को समाज में सम्मानजनक स्थान पर पहुंचाना आसान काम नहीं है।

अभी हाल ही में  टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (टिस) के मुंबई, हैदराबाद, गुवाहाटी, तुलजापुर (महाराष्ट्र) कैंपस के स्टूडेंट्स ने 21 फरवरी से सांस्थानिक बंद का ऐलान किया था। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के स्टूडेंट्स को संस्थान से मिलने वाली आर्थिक मदद रोके जाने के बाद से ही स्टूडेंट्स में रोष हैं, जिसके चलते उन्होंने अनिश्चितकाल बंद का रास्ता चुना।

अब CBSE का यह फैसला भी यही इशारा करता है कि गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग के स्टूडेंट्स शिक्षा से वंचित रह जाएं।

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