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अनुच्छेद 370: “क्या केन्द्र सरकार ने राज्य के लोगों पर अपना फैसला थोप दिया है?”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटना चाहिए या नहीं, यह सही सवाल नहीं है। सही सवाल यह है कि क्या कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया जा सकता है? कम-से-कम न्यायालय के फैसले तो इसका जवाब ना में देते हैं।

1969 में संपत प्रकाश केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि अनुच्छेद 370 अस्थाई नहीं, बल्कि स्थाई प्रावधान है। 2015 में जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 370 नहीं हटाया जा सकता क्योंकि इसका तीसरा क्लॉज़ यह अधिकार जम्मू कश्मीर की संविधान सभा को देता है।

संविधान सभा 1957 में ही भंग हो चुकी है। इसलिए अनुच्छेद 370 अपने आप ही स्थाई हो जाता है। इसी तरह 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने और 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसलों में अनुच्छेद 370 को स्थाई बताया।

मोदी सरकार ने संविधान सभा को बदल कर विधान सभा कर दिया। अब यहां पर दिक्कत यह है कि जम्मू कश्मीर में 2018 से राष्ट्रपति शासन लगा है। मतलब जम्मू कश्मीर विधान सभा की सारी शक्तियां केंद्र के पास ही है। राष्ट्रपति ने अपने ऑर्डर में कहा कि इसमें राज्यपाल की सहमति है। राज्यपाल केंद्र के प्रतिनिधि होते हैं, राज्य की जनता के नहीं। मतलब केंद्र ने ही राष्ट्रपति को सिफारिश कर दी। इसमें राज्य की मर्ज़ी कहां है? 

फेडरल सिस्टम पर हमला है कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाना

जहां तक राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का सवाल है, यह देश के फेडरल सिस्टम पर हमला है। आर्टिकल 3 के अनुसार किसी राज्य को खत्म करने के लिए पहले राष्ट्रपति को बिल राज्य की विधानसभा को भेजना पड़ता है। लेकिन राज्य में तो अभी विधानसभा है ही नहीं। विधानसभा की सारी शक्तियां केंद्र सरकार के पास है।

यह खतरनाक ट्रेंड है। मतलब अगली बार किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगे तो मोदी सरकार उस राज्य को ही खत्म करके केंद्र शासित प्रदेश बना सकती है। मायावती और केजरीवाल जैसे क्षेत्रीय नेता जो इस बिल का समर्थन कर रहे हैं, कल को उनके साथ भी ऐसा हो सकता है।

ये सारे सवाल मुख्यधारा की मीडिया नहीं पूछेगी। वह बधाई देने में व्यस्त है। पत्रकारिता से फैक्ट्स और सवाल निकाल दो तो सिर्फ बधाई बचती है। 

जो लोग मोदी सरकार के इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं, वे एक राज्य में इंटरनेट, फोन सारे कनेक्शन काट के उसे देश से अलग करके, राज्य के सारे नेताओं को नज़रबंद करके उन पर केंद्र का फैसला थोपने का समर्थन कर रहे हैं।

पूरा देश जश्न मना रहा है लेकिन कश्मीरी क्या सोचते हैं यह किसी को पता ही नहीं है, ना ही कोई जानना चाहता है। शायद अब कश्मीर में भी रोज़गार बढ़ जाए। वैसे ही जैसे पूरे देश में मोदी सरकार ने इतना रोज़गार दिया है कि काम करने के लिए लोग कम पड़ रहे हैं।

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