ऐसे दोराहे पर खड़ा हूं,
लाशें हैं दोनों ओर,
जो गवाह है कि अब,
सब खत्म हो चुका है।
तर्क और उम्मीद की लाशें,
बेचारगी ही है एक मात्र सहारा
और लाशों में ख्वाहिशें कहां होती है?
वो तो बस चलती जाती है,
शिकार होकर शिकार बनाती जाती हैं।
कुतर्क और अंधराष्ट्रवाद का
लाशों के नसों से खून बह रहा है,
निकल चुका है अब
प्रेम और भाईचारे का हर बून्द,
जो इंसानो को लाशों में
तब्दील करती जा रही हैं।