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कविता: “देखो मेरे गॉंव के जंगल जल रहे हैं”

देखो मेरे गॉंव के जंगल जल रहे हैं

और जल रहे हैं, उस जंगल के देवता भी।

देखो वह धू-धू कर उठती लपटों को

जैसे उस जंगल की आछरियों के खुले बाल आसमान में

उड़ रहे हो।

 

देखो मेरे गॉंव के जंगल जल रहे हैं,

और जल रही हैं मेरे बचपन की फ्योंली की कहानी भी।

देखो वो बिखरे हुए बुरांश के लाल जले फूल

जैसे जंगल का रक्त बहता हुआ

सूख गया हो।

 

देखो मेरे गॉंव के जंगल जल रहे हैं

और जल रहे हैं माओं के फुर्सत के पल।

देखो वो काफल के जले पेड़

जैसे समाधि में बैठे दधीचि की हड्डियां

फैली पड़ी हो।

 

देखो मेरे गॉंव के जंगल जल रहे हैं

और जल रही हैं हज़ारों आत्माएं भी।

देखो भूमि पर जले गुलदार को

जैसे किसी माँ ने अपने मरे बच्चे को

खुद में समेटा हो।

 

देखो मेरे गॉंव के जंगल जल रहे हैं

और अब वो जलाएंगे तुम्हें और मुझे भी।

फैलेंगे वो कंक्रीट के जंगलों तक

धू-धू करके जलोगे तुम और मैं।

आखिर एक माँ कब तक अपने बच्चों का कत्ल

माफ करती रहेगी।

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