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ICAR के नए नियमों से लाखों कृषि विद्यार्थियों का भविष्य अधर में

अभी तक यूजीसी की अनुमति से कई कॉलेजों में एफीलिएटिंग यूनिवर्सिटी की डिग्री द्वारा एग्रीकल्चर की पढ़ाई होती थी। पर इस साल एक नया नियम आ गया है जिसने स्टूडेंट्स के भविष्य को अधर में डाल दिया है।

उत्तर प्रदेश के चार साधारण राजकीय विश्वविद्यालयों (एक केन्द्रीय और तीन राज्य) और अधिकतर निजी विश्वविद्यालय एवं निजी कॉलेजों के कृषि स्टूडेंट्स के करियर को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने बर्बाद कर दिया है।

क्या है नया फरमान?

परिषद के नए फरमान के अनुसार हर विश्वविद्यालय अथवा कॉलेज को राष्ट्रीय कृषि शिक्षा प्रत्यायन बोर्ड (NAEAB), जो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत शिक्षण संस्थाओं का मूल्यांकन करने वाली इकाई है, उससे मान्यता लेनी है।

फैसला यह लिया गया हे कि गैर-मान्यता प्राप्त कॉलेजों के कृषि स्टूडेंट्स, वर्ष 2019-20 से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के किसी भी सरकारी कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय से परास्नातक और पीएचडी करने के लिए मान्य नहीं होंगे।

अनुमान है कि केन्द्र सरकार और सरकारी संस्थानों में भी इस साल से उन स्टूडेंट्स को नौकरी नहीं मिलेगी। कुछ ऐसा ही ITI के स्टूडेंट्स के साथ भी पिछले दिनों हो चुका है, इसलिए अब कोई छूट मिलने की सम्भावना भी नहीं है।

विश्वविद्यालय का आलसी प्रशासन

फिलहाल, ऐसे कई सरकारी विश्वविद्यालय हैं जो NAEAB की मान्यता के बिना चल रहे हैं। जैसे-

इन विश्वविद्यालयों से पढ़े स्टूडेंट्स, आगे सरकारी कॉलेजों में प्रवेश तथा केंद्र की सरकारी योग्य अब केवल इसलिए नहीं है क्योंकि विश्वविद्यालय का प्रशासन आलसी है।

एक तरफ सरकारी विश्वविद्यालय आराम से स्टूडेंट्स का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं, वहीं विपक्षी नेताओं के कॉलेज भी बिना नए नियम के अनुसार मान्यता पाए,  Bsc Agriculture और यहां तक Msc Agriculture का संचालन कर रहे हैं।

इनमें विपक्षी कद्दावरों जैसे बेनी प्रसाद वर्मा का बाराबंकी और शिवपाल सिंह यादव के इटावा स्थित कॉलेज भी पीछे नहीं है।

राजकीय सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है और बिना मान्यता के Bsc Agriculture कोर्स चला रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ केन्द्रीय, निजी और केवल कृषि/पशुपालन विभाग के अंतर्गत राज्य विश्वविद्यालय जैसे बीएचयू, एमयू, बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वेटनरी विश्वविद्यालय आदि मान्यता प्राप्त कर चुके हैं।

मज़े की बात यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से भेजी गई हर सही-गलत सूचना तथा स्टूडेंट्स को दी जाने वाली धमकी छापने वाले अखबारों को अब तक इसकी खबर नहीं हुई है।

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