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“भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब के नायक हैं कृष्ण”

मैं नास्तिक हूं, धर्म और धार्मिक मान्यताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है परंतु भारतीय देव परंपरा में कृष्ण एक ऐसे आराध्य के रूप में भारतीय समाज में स्थापित हैं कि वह मोहक लगते हैं।

हिंदू आस्था के कौन से वह देव हैं, जिनके दीवाने मुस्लिम और दूसरे धर्मालंबी भी हो। अमीर खुसरो, रखसान, नज़ीर अकबराबादी, वाजिद अली शाह से हसरत मोहानी तक कृष्ण की स्तुति का गान करते हैं और उनपर फिदा हो जाते हैं। हिंदी फिल्मों में कई मुस्लिम शायरों ने कृष्ण पर शब्द खर्च किए और लोगों को खासे पसंद भी हैं।

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- Getty

हिंदू आस्था का ऐसा नायक जो जनजातीय परंपरा में खेलता-कूदता, बांसुरी बजाता और गाय चराते हुए बड़ा होता है, कई रानी-पटरानीयों से घिरा रहता है, छल-प्रपंच का मोहपाश रचता है फिर भी हिंदू आस्था का अराध्य हो जाता है। इन सारे प्रसंगों से क्या यह सवाल नहीं उपजता मन में कि कौन है यह कृष्ण। मुझे तो लगता है कि भारतीय गंगा-जमुनी तहज़ीब का नायक है कृष्ण।

कृष्ण को लेकर राम मनोहर लोहिया की विवेचना

मुझे कृष्ण और भारतीय समाज के संदर्भ में राम मनोहर लोहिया की विवेचना ज़्यादा सटीक लगती है, जिसकी चर्चा वह अपने निबंध राम, कृष्ण और शिव में करते हैं, उनके निबंध का संशोधित अंश-

कृष्ण हैं कौन? गिरधर, गिरिधर गोपाल! वैसे तो मुरलीधर और चक्रधर भी हैं लेकिन कृष्ण का गुह्यतम रूप तो गिरधर गोपाल में ही निखरता है। कान्हा को गोर्वधन पर्वत अपनी कानी उंगली पर क्यों उठाना पड़ा था? इसलिए ना कि उन्होंने इंद्र की पूजा बंद करवा दी और इंद्र का भोग खुद खा गए।

इंद्र नाराज़ होकर पानी, ओला, पत्थर बरसाना शुरू करवा दिया, तभी गोवर्धन उठाकर अपने गो और गोपालों की रक्षा करनी पड़ी। कृष्ण के पहले भारतीय देव आसमान के देवता हैं। निस्संदेह अवतार कृष्ण के पले से शुरू हो गए। किंतु त्रेता के राम वह मनुष्य हैं, जो निरंतर देव बनने की कोशिश करते रहें, इसलिए उनमें आसमान के देवता के अंश कुछ अधिक हैं।

दापर में कृष्ण वह देवता हैं, वह बराबर मनुष्य बनने की कोशिश करते रहें, उसमें उन्हें सफलता भी मिली। राम त्रेता के मीठे, शांत और सुसंस्कृत युग के देव हैं। कृष्ण पके, जटिल, तीखे और प्रखर बुद्धि युग के देव हैं। राम गम्य हैं, कृष्ण अगम्य हैं। कृष्ण ने इतनी अधिक मेहनत की कि उनके वंशज उनको अपना आदर्श बनाने से घबराते हैं, यदि बनाते भी हैं तो उनके मित्रभेद और कूटनीति की नकल करते हैं, उनका अथक निस्व उनके लिए असाध्य रहता है। इसलिए कृष्ण हिंदुस्तान के कर्म के देव नहीं बन सके। कृष्ण ने कर्म राम से ज़्यादा किए हैं।

कितने संधि, विग्रह और प्रदेशों के आपसी संबंधों के धागे उन्हें पलटने पड़ते थे। यह बड़ी मेहनत और बड़ा पराक्रम था। इसका मतलब यह नहीं है कि प्रदेशों में आपसी संबंधों में कृष्ण नीति चलाई जाए। कृष्ण जो पूर्व-पश्चिम की एकता दे गए, उसी के साथ-साथ उस नीति का औचित्य खत्म हो गया। बच गया कृष्ण का मन और उनकी बाणी और बच गया राम का कर्म। अभी तक हिंदुस्तानी इन दोनों का समन्वय नहीं कर पाए हैं। राम का कृष्ण और गीता का कृष्ण एक है।

हम कृष्ण को अपना अराध्य क्यों नहीं मान लेते हैं?

जब राम के कृष्ण और गीता के कृष्ण एक ही हैं और राम समाज में वैम्नष्य का कारण बन रहे हैं, तो सामाजिक समरसता के लिए हम कृष्ण को अपना अराध्य क्यों नहीं मान लेते हैं? कृष्ण तो हिंदू मुस्लिम ही नहीं कई धर्मालंवियों के बीच पुल का काम करते हैं। हिंदू धर्म के अलावा इस्लाम, ईसाई, जैन और सिख मज़हबों के अनुयायी तक कृष्ण की लीला से विस्मित रहते हैं, उन्हें भारतीय समासिक गंगा-जमुनी तहज़ीब संस्कृति का अराध्य कहना कहीं से गलत नहीं होगा।

राजनीतिक ध्रुवीकरण का फायदा उठाने वाले राजनीतिक दल तो इसके बारे में कभी सोचेंगे नहीं। समाज को ही इसके लिए आगे आना होगा, क्योंकि समाज ही कृष्ण भजन और कृष्ण के ऊपर लिखे गए गीतों पर एक साथ झूमता है। नज़ीर अकबराबादी लिखते हैं,

तू सबका खुदा, सब तुझ पे फिदा, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी

है कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी

तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा

तू बहरे करम है नंदलला, ऐ सल्ले अला, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी।

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