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मोबाइल का अधिक इस्तेमाल कहीं हमें अपनों से दूर तो नहीं कर रहा?

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

आजकल इंसान से बड़ा मोबाइल हो गया है। लोग घंटों मोबाइल पर दूसरों से चैट या बातें करते हैं। मोबाइल फोन और सोशल मीडिया का आलम यह है कि लोग अंजान लोगों के बारे में बगैर पता लगाए ही उनसे बात करना शुरू कर देते हैं। हमारे बिस्तर के सबसे करीब यदि कुछ होता है, तो वह है मोबाइल फोन।

आज की तारीख में शायद ही हम कभी अपने पड़ोसी से पूछते होंगे, “और बताओ भाई आज का दिन कैसा रहा?” मोबाइल फोन के ज़रिये एक तरफ जहां हम सोशल मीडिया की दुनिया के ज़रिये नए रिश्तों का तानाबाना बुन रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर वास्तविक दुनिया के कई रिश्ते दूर होते चले जा रहे हैं।

कभी-कभी तो समझ ही नहीं आता कि मोबाइल लोगों को जोड़ रहा है या तोड़ रहा है। बच्चे भी रात-दिन इस मशीन को ही अपना सबसे अच्छा दोस्त मान लेते हैं। उन्हें किसी और खेल में कोई दिलचस्पी नहीं रहती है। बस मोबाइल में गेम्स और कार्टून उनके मनोरंजन का साधन बन गए हैं।

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हो गया है। 24*7 सिर्फ और सिर्फ मोबाइल के ही दर्शन होते हैं। यहां तक कि नींद खुले तो सबसे पहले मोबाइल ही हमारे पास होता है और रात को आंखें बंद होने से पहले भी मोबाइल के दर्शन कर ही हम सोते हैं।

अब तो दिल के रिश्ते भी मोबाइल से निभाये जाने लगे हैं। पर्व और त्यौहारों में ज़्यादातर लोग मैसेज से ही एक-दूसरे को विश कर देते हैं। एक मैसेज भेज दो कहानी खत्म, क्या पता कहां गुम हो गए वो पुराने दिन जब लोग अपनी भावनाओं को आपस में शेयर करते थे।

इन दिनों हमारे पास दूसरों की तस्वीर को निहारने, लाइक और कमेंट करने का वक्त ज़रूर होता है मगर कई लोग ऐसे भी हैं जो शायद ही कभी अपनों की तारीफ करते हैं। जब लोग कहीं घूमने जाते हैं, तब सबसे पहले अपनी फोटो या वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं, जिसका ज़रिया आमतौर पर मोबाइल ही होता है।

फोटो साभार: Getty Images

हमारा सारा ध्यान तो बस सेल्फी लेने में ही बीत जाता है। ज़िन्दगी को अपनी आंखों से देखना शायद हम भूल ही गए हैं। फेसबुक या इंस्टाग्राम पर अपडेट डाल लाइक और कमेन्ट्स देखकर ही हम खुश होने लगते हैं। काश लोग इस मशीन की जगह पहले की तरह आपस में बातें करते तो ज़्यादा अच्छा होता।

लोगों को कम्युनिकेशन का वास्तविक अर्थ शायद फिर से याद करना पड़ेगा। दिखावे की दुनिया रंगीन तो होती है मगर इस मशीन ने हमारे असली रंग को कहीं पीछे छोड़ दिया है। आप मोबाइल द्वारा दूर दराज़ के लोगों से तो कनेक्ट हो रहे हैं मगर अपने सबसे करीबी लोगों से दूर होते चले जा रहे हैं।

मुझे फिक्र है कि एक बेजान सी चीज़ को पाने के लिए कहीं अपनों की हंसी को हमेशा के लिए ना खो बैठे आप।

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