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“आज की आर्थिक मंदी के लिए जेटली भी दोषी थे”

अरुण जेटली

अरुण जेटली

सोशल मीडिया के माध्यम से जब मुझे जानकारी मिली कि देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का निधन हो चुका है, तब मुझे काफी दु:ख हुआ। हालांकि जब से जेटली एम्स में अपना इलाज करा रहे थे, तभी से यह कयास लगाए जा रहे थे कि शायद वह अब सेहतमंद होकर राजनीतिक पटल पर वापसी नहीं कर पाएंगे।

एक और बड़ी अजीब बात है कि बीते कुछ वक्त में हमने कई शानदार राजनेताओं को खो दिया। शीला दीक्षित ने हमें अलविदा कह दिया, सुषमा स्वराज भी नहीं रहीं और अब अरुण जेटली ने भी अंतिम सांस ले ली।

मसला सिर्फ यह नहीं है कि तमाम कुशल राजनेताओं का इंतकाल हो रहा है, बल्कि सवाल यह है कि हमने या इनकी राजनीतिक पार्टियों ने इनसे क्या सिखा?

अरुण जेटली के राजनीतिक नेतृत्व क्षमता का उदय जयप्रकाश नारायण के ‘संपूर्ण क्रांति आंदोलन’ से हुआ था। वित्त मंत्रालय, कॉरपोरेट मामले के मंत्रालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, कानून और रक्षा जैसे मंत्रालयों में भी जेटली ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई है।

जेटली और जीएसटी

अरुण जेटली का इस दुनिया को अलविदा कहना वाकई में भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी क्षति हो सकती है। देश के नागरिक या एक व्यापारी के तौर पर आप जेटली से असहमत हो सकते हैं मगर पार्टी के नज़रिये से सोचकर देखने पर कतई नहीं।

ऐसा इसलिए क्योंकि 2014 में जब पहली बार अपार बहुमत के साथ बीजेपी ने सरकार बनाई थी, तब अरुण जेटली को वित्त मंत्री का प्रभार मिला था और उसी दौरान लंबी जद्दोजहद के बाद उन्होंने जीएसटी को लॉन्च किया था, लेकिन आम लोगों की असहमति और भाजपा के लिए जेटली का योगदान दोनों अलग चीज़ें हैं।

अरुण जेटली, फोटो साभार: Getty Images

मेरे कई व्यापारी दोस्त अरुण जेटली को पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि जीएसटी के कारण कहीं ना कहीं उनके व्यापार में घाटा हो रहा है मगर हमें यह भी समझना होगा कि भले ही जेटली के जीएसटी वाले फैसले से देशवासियों को परेशानियां हो रही हैं मगर पार्टी के लिए तो ब्रह्मास्त्र थे ना जेटली! हां मैं यह ज़रूर मानता हूं कि मौजूदा वक्त में देश की अर्थव्यवस्था जिस ढलान पर है, इसके लिए कहीं ना कहीं जेटली भी दोषी हैं।

बीजेपी के पास आर्थिक मामलों के जानकार नेताओं की कमी

जेटली के बारे में अलग-अलग न्यूज़ चैलनों पर विभिन्न चीज़ें दिखाई जा रही हैं मगर मैं उनके राजनीतिक जीवन पर प्रकाश नहीं डालना चाहूंगा, क्योंकि यह काम तो न्यूज़ एंकर्स तीन-चार दिनों तक बखूबी कर देंगे। मेरी चिंता भारतीय जनता पार्टी को लेकर है और वह इसलिए क्योंकि भाजपा में अर्थशास्त्र या कानून मामलों के जानकार नेताओं के नाम उंगलियों पर आप गिन सकते हैं।

संबित पात्रा को मैं इस श्रेणी का नेता नहीं मानता हूं, क्योंकि उनका काम बस टीवी डिबेट को भड़काऊ बनाना है। यानि कि वह भी दिग्विजय सिंह जैसे काँग्रेस के चापलूस नेताओं की तरह हैं। फर्क केवल इतना है कि पात्रा बीजेपी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

राजनीति में कम दिलचस्पी रखने वाले लोगों के सामने भी यदि मैं भाजपा का नाम लेता था, तो तमाम नेताओं में एक नाम जेटली का भी होता था। जेटली को मैंने तो कभी उग्र भाषण देते नहीं सुना है और उनकी यही चीज़ उन्हें औरों से अलहदा पहचान दिलाती है।

जानकार नेताओं के मामले में अव्वल है काँग्रेस पार्टी

पी.चिदंबरम के मामले से अनुमान लगाया जा सकता है कि पार्टी के अंदर कद्दावर नेताओं का होना कितना ज़रूरी होता है। भले ही ईडी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां चिदंबरम को उनके आवास से पूछताछ के लिए लेकर गई और बाद में गिरफ्तारी की भी घोषणा हुई लेकिन काँग्रेस नेताओं की एकता सराहनीय है।

पी चिदंबरम। फोटो साभार: Getty Images

काँग्रेस के कानून मामलों के जानकार नेताओं जैसे- कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और शशि थरूर जिस तरीके से कागज़ी तौर पर चिदंबरम के मामले को समझने की कोशिश कर रहे थे या प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ बैठकर यह हौसला दे रहे थे कि हम आपके साथ है, यह वाकई राजनीतिक दलों के अंदर की एकता का प्रतीक है।

हर किसी की अपनी-अपनी राजनीतिक समझ होती है और मेरी यह समझ मुझे बताती है कि बीजेपी में अभी रविशंकर प्रसाद के अलावा शायद ही कानून मामलों के जानकार कोई हैं और यदि हैं भी तो सही वक्त पर सही निर्णय लेने के मामले में वे कच्चे ही होंगे।

जेटली के जाने से मेरी चिंता केवल यह है कि कहीं बीजेपी दिशाहीन ना हो जाए या जब पार्टी के अंदर कोई संकट जैसी स्थिति हो, तब संबित पात्रा जैसे नेता सिर्फ बयानबाज़ी तक ही सीमित नहीं रहें, पार्टी को इसपर मंथन करने की ज़रूरत है।

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