दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें अपील की गई कि लड़की और लड़के की शादी की न्यूनतम उम्र को एक समान कर दिया जाए। याचिका अभी विचाराधीन है।
हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के तहत लड़की की शादी के लिए न्यूनतम तय उम्र 18 साल और लड़के की शादी के लिए न्यूनतम तय उम्र 21 साल है। चाइल्ड मैरिज एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी अमान्य होगी।
लेकिन यहां एक और स्थिति पर गौर कीजिए, जहां लड़कियों की शादी की उम्र सीमा ही 18 साल है, वहां 16-17 साल की लड़कियों के साथ पति द्वारा किए गए बलात्कार को कानूनी कवच पहनाया गया है। इन तमाम विषमताओं के बीच ही शादी के लिए दोनों की उम्र एक समान करने का प्रस्ताव रखा गया है।
हमारे देश में प्राचीन काल से ही बाल विवाह की परंपरा रही थी, जिसमें लड़की की शादी काफी कम उम्र में कर दी जाती थी। कई बार तो यह विवाह ऐसे बेमेल होते थे कि लड़की और लड़के की उम्र में बहुत ज़्यादा अंतर होता था, इस रिवाज़ के अपने तर्क थे।
आज भी ऐसा माना जाता है कि लड़कियां, लड़कों की तुलना में शारीरिक और मानसिक तौर पर ज़्यादा जल्दी विकसित हो जाती हैं। लड़की की उम्र से ज़्यादा बड़े लड़के को आदर्श और मज़बूत जीवनसाथी समझा जाता है। आमतौर पर प्यूबर्टी के बाद लड़की को प्रजनन के लिए तैयार माना जाता है लेकिन जिन लड़कों के साथ उन्हें ता-उम्र बांधने की तैयारी चल रही होती है, वे या तो इस उम्र में पढ़ रहे होते हैं या फिर आत्मनिर्भर ना होने के कारण अपना दांपत्य जीवन ठीक से चलाने में सक्षम नहीं होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि लड़के 20 साल की उम्र में अपने सेक्स की इच्छाओं के साथ चरम पर होते हैं, तो वहीं लड़कियों का 30 साल की उम्र में सेक्स के प्रति रुझान चरम पर होता है। चूंकि हमारे पुरुषप्रधान समाज में महिलाओं की पसंद- नापसंद, यौन इच्छाओं को कोई महत्त्व ही नहीं दिया जाता है और एक औरत को बस मर्द की जिस्मानी ज़रूरतें पूरी करने का एक साधन समझा जाता है, इसलिए शादी की उम्र तय करते हुए इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
मैंने फेसबुक के ज़रिए इस मुद्दे को लेकर लोगों की राय जाननी चाही, जिनमें से कुछ प्रतिक्रियाएं यहां ज़रूर शामिल करना चाहूंगी-
मीनाक्षी श्रीवास्तव ने कहा,
“मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र लड़की हूं और उस उम्र में हूं कि हर परिस्थिति के लिए एक परिपक्व निर्णय ले सकती हूं। मेरे हिसाब से शादी के लिए उम्र ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है। शादी तभी करनी चाहिए, जब एक लड़का यह सीख जाए कि उसे एक परिपक्व पुरुष की तरह एक औरत के साथ सम्मानपूर्वक कैसे पेश आना है, उसे हर मोड़ पर कैसे संभालना है, उसका कैसे ख्याल रखना है? जब एक लड़की यह समझ जाए कि उसे कैसे एक परिपक्व स्त्री की तरह हर मिलने वाली चीज़ की कद्र करनी है।”
अंशुल मेहरा के अनुसार,
“लड़कियां हमेशा लड़कों से ज़्यादा परिपक्व होती हैं, इसलिए दोनों की शादी में उम्र का फासला रिश्ते को बेहतर बनाने, अच्छे से निभाने, आपसी सामंजस्य बैठाने के लिए बेहद ज़रूरी है, क्योंकि बहुत बार एक शादीशुदा जोड़े में यह सब देखने को नहीं मिलते हैं।”
उमेश कुमार ने इसके तीन पहलू बताए,
कुदरती, कानूनी और सामाजिक। उनका कहना है कि कानूनी तौर पर तो 18 साल में लड़का-लड़की, दोनों ही बालिग हैं लेकिन एक शादी को निभाने के लिए यह उम्र सही नहीं मानी जा सकती है, क्योंकि इस उम्र में दोनों ही शिक्षा प्राप्त कर रहे होते हैं। चूंकि आज के परिवेश के अनुसार दोनों का आर्थिक रूप से सक्षम होना बेहद ज़रूरी है, इसलिए एक नए दांपत्य जीवन को सुखी रखने और सामाजिक ताने-बाने को दुरुस्त रखने के लिए लड़की की उम्र 21 साल और लड़के की 23 साल कर देनी चाहिए।
प्रत्यंश चौहान की टिप्पणी,
“बायोलॉजिकल तौर पर देखा जाए तो महिलाओ में पुरुषों की तुलना में अधिक मानसिक और शारीरिक स्थिरता होती है। हमारे यहां हमेशा से सामाजिक तौर पर पुरुषों की भागीदारी अधिक होने और बालविवाह प्रचलन में होने की वजह से आयु में अंतर रखना मजबूरी थी लेकिन आजकल इसका कोई महत्त्व नहीं रह गया है।”
गुमान सिंह शेखावत का कहना था कि लड़का हो या लड़की, हेल्थी रिलेशनशिप के लिए दोनों का शारीरिक और मानसिक तौर पर समझदार होना बेहद ज़रूरी है।
रिची बघेल,
“दोनों के बीच आपसी समझदारी और बेहतर सामंजस्य होना चाहिए। उम्र चाहे कुछ भी हो।”
रंजन सिंह-
“उम्र के फासले दोनों के बीच रिश्ते की साझेदारी को तय नहीं करते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि दोनों इसे कितनी खूबसूरती और प्यार से निभाते हैं।”
प्रसून पाण्डेय,
“सिर्फ उम्र का फासला कम कर देने भर से ज़्यादा बदलाव नहीं आएंगे, उनका आर्थिक रूप से सक्षम होना ज़रूरी है। ज़्यादा महत्वपूर्ण है, आर्थिक तौर पर सक्षम होना और ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार रहना।”
बेसिल फार्मर,
“हम किसी के लिए कुछ भी तय करने का हक नहीं रखते हैं। ये दोनों की आपसी समझदारी है कि वे एक रिश्ते को कैसे निभाते हैं।”
ये सारे कमेंट्स अलग-अलग विचारों को समझने का मौका देते हैं पर इन सभी में एक बात बेहद समान रही। वह यह थी कि एक लड़की के एक लड़के से पहले शारीरिक और मानसिक तौर पर मेच्योर हो जाने की वजह से शादी के लिए दोनों में उम्र के फासले जायज़ हैं।
मेरी अपनी राय में शादी के लिए लड़का-लड़की की उम्र में अंतर रखना ज़रूरी नहीं है। दोनों की उम्र में ज़्यादा अंतर रखने से दोनों की अलग-अलग सोच का प्रभाव दांपत्य जीवन पर पड़ने लगता है। बढ़ती उम्र के साथ दोनों की शारीरिक और मानसिक ज़रूरतें भी भिन्न होने लगती हैं। शुरू में तो यह दिखाई नहीं देता लेकिन एक उम्र के बाद यह उभरकर सामने ज़रूर आता है।