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YKA Converge: पावरफुल स्पीकर्स ने ज़रूरी मसलों पर रखी अपनी बात

Youth Ki Awaaz Converge 2019

Youth Ki Awaaz Converge 2019

दिल्ली के अंबेडकर इंटरनैश्नल सेंटर में शनिवार को जोश से लबरेज़ युवाओं की उपस्थिति के बीच ‘Youth Ki Awaaz Converge’ 2019 का शानदार आगाज़ हुआ। इस एकदिवसीय कार्यक्रम को होस्ट करते हुए Youth Ki Awaaz के फाउंडर अंशुल तिवारी ने वहां मौजूद युवाओं को बताया कि किस उद्देश्य के साथ Converge की शुरुआत हुई थी।

Youth Ki Awaaz के फाउंडर, अंशुल तिवारी

‘सेव द चिल्ड्रेन’ और ‘इंटरनैश्नल जस्टिस मिशन’ की साझेदारी में आयोजित इस इवेंट में कुल चार स्पीकर्स ने दमदार स्पीच के ज़रिये अंबेडकर सेंटर में मौजूद युवाओं का ध्यान ज़रूरी मुद्दों की तरफ आकर्षित किया। पहले स्पीकर के तौर पर Our Democracy.in के को- फाउंडर बिलाल ज़ैदी मंच पर आए।

गौरतलब है कि उनकी संस्था उन स्वतंत्र लोगों को क्राउड फंडिंग के ज़रिये मुख्य धारा की राजनीति से जोड़ने का काम करती है, जो वाकई इस व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहते हैं।

उन्होंने मंच पर आते ही जेंडर और फूड कल्चर जैसे मुद्दों का उदाहरण देते हुए युवाओं से कहा कि इन मुद्दों पर यदि आप अपने पेरेन्ट्स से बात करेंगे, तो आपकी उम्मीदों के मुताबिक शायद ही आपको जवाब मिले। उन्होंने कहा इसके पीछे की वजह है जेनरेशन गैप।

बिलाल ज़ैदी, को-फाउंडर, Our Democracy.in

बिलाल कहते हैं कि अकसर ऐसा होता है, जब राजनीति या सामाजिक मुद्दों पर जेनरेशन गैप हावी होने लगते हैं। हमने देखा है डिसिज़न मेकिंग में हमेशा उन लोगों की भागीदारी होती है, जिन्होंने ज़िन्दगी में उम्र का एक पड़ाव पार कर लिया होता है।

प्रधानमंत्री मोदी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि लगभग 40 वर्ष भारतीय राजनीति में देने के बाद वह देश के पीएम बन पाए। आखिर पॉलिटिकल सिस्टम में क्या दिक्कत है कि इतने लंबे वक्त तक इंतज़ार करने के बाद आपको डिसिज़न मेकिंग में एक अच्छा पद मिल पाता है। आपके एंट्री प्वॉइंट्स इतने बंद क्यों हैं? ऐसा क्यों है कि कुछ परिवारों के लिए राजनीति में आगे बढ़ना बहुत आसान होता है लेकिन आप जब उसी सिस्टम में पहुंचना चाहते हैं, तब कई चुनौतियां सामने आती हैं।

वह कहते हैं, “राजनीति के बारे में जब हम सोचते हैं, तो अकसर यह ख्याल ज़हन में आता है कि यहां पहुचने के लिए तो ‘Muscle Man’ बनना पड़ेगा। यहां तो बाहुबली टाइप लोग होते हैं, जो बहुत पावरफुल माने जाते हैं। हमें लगता है कि वे इलेक्शन में जा सकते हैं, हमलोग भला कैसे वहां जा सकते हैं!”

राजनीति में जाने के लिए ‘Money Power’ का होना ज़रूरी

बिलाल इस बात को मानते हैं कि राजनीति में जाने के लिए ‘Money Power’ का होना भी बेहद ज़रूरी है। वह कहते हैं कि होर्डिंग्स और अखबार में विज्ञापन के अलावा मोटरसाइकिल की रैलियों के लिए भी पैसे चाहिए होते हैं। यदि पांच साल इलेक्शन नहीं भी है, तो आपको वहां दबदबा बनाए रखना पड़ता है। ये तमाम चुनौतियां राजनीति में आने का सपना देखने वाले लोगों के दिलों में सर चढ़कर बोलती हैं।”

बकौल बिलाल, “इंडिया की डेमोक्रेसी के अभी 70 ही साल हुए हैं। दूसरे देशों की डेमोक्रसी के सामने हमलोग बहुत छोटे हैं। हम कई दफा जब शॉर्ट टर्म के लिए राजनीति को देखते हैं, तब हमें इसमें कोई खास स्कोप नहीं  दिखाई पड़ता है लेकिन जब हम इसे लंबे वक्त के लिए समझने की कोशिश करेंगे, तब हमें अंदाज़ा होगा कि यहां कितनी संभावनाएं हैं।”

वह बताते हैं, “हमने साल 2017 में गुजरात चुनाव के दौरान जिग्नेश मेवानी के लिए कैंपेन किया था। कई सारे लोग कहते थे कि जिग्नेश तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे सााथ हैं। हमने क्राउड फंडिंग के ज़रिये उन लोगों को भी इस मुहीम के साथ जुड़ने के लिए कहा, जिन्होंने ‘हम तुम्हारे साथ हैं’ का नारा बुलंद किया।”

सिस्टम में रहकर योजना स्तर पर काम

चर्चा के आरम्भ में बिलाल ने राजनीति में आने के लिए ‘Muscle Power’ की प्रासंगिकता पर भी बात की थी। इन तमाम पहलुओं पर बात करने के बाद वह कहते हैं कि क्राउड फंडिंग के ज़रिये ‘Muscle Power’ की ज़रूरत भी थोड़ी कम महसूस होती है

वह कहते हैं, “कई दफा हमें लगता है कि राजनीति में आना कोई सही फैसला नहीं हो सकता है, यदि हम एनजीओ की शुरुआत करें तो शायद बेहतर हो लेकिन हमें कुछ चीज़ों पर विचार करने की ज़रूरत है। जैसे- 100 एनजीओ मिलकर यदि स्थानीय लोगों के लिए 100 स्कूल्स भी बना देंगे, तो वे ऐसे विद्यालय होंगे, जहां से केवल उन्हीं इलाकों के बच्चों को फायदा पहुंचेगा।”

फोटो साभार- Youth Ki Awaaz

इसी कड़ी में बिलाल कहते हैं, “ठीक इसके विपरीत यदि हम देश को एक अच्छा शिक्षा मंत्री दे पाएंगे, जिन्हें शिक्षा व्यवस्था की अच्छी समझ हो, तो वह बेहतर काम कर पाएंगे। एनजीओ में आप ‘X’ लेवल तक ही काम कर सकते हैं लेकिन आप यदि सरकार में जाते हैं, तो शायद आप अच्छी शिक्षा नीति के ज़रिये 1000 स्कूल खोल सकते हैं।”

आपको बता दें बिलाल की संस्था ने क्राउड फंडिंग के ज़रिये बिहार से कन्हैया कुमार, समाजवादी पार्टी से घनश्याम तिवारी के अलावा कई उम्मीदवारों के लिए ऑनलाइन फंड रेज़ किया गया है।

बिलाल अपनी बात खत्म करते हुए कहते हैं कि इस देश में 35 साल से कम उम्र के लोग दो तिहाई मेजॉरिटी में हैं। पार्लियामेंट में उनकी मौजूदगी बहुत कम देखने को मिलती हैं। वह कहते हैं, “आप देखेंगे कि आपके तमाम मुद्दे नज़रअंदाज़ हो रहे हैं। आज ज़रूरत है कि राजनीति में एक नई ऊर्जा लाई जाए और यह तभी संभव है जब हम और आप मिलकर साथ आने का संकल्प लेंगे।”

सेव द चिल्ड्रेन की चाइल्ड चैंपियन लूसी

दूसरे नंबर पर कोलकाता से ‘सेव द चिल्ड्रेन’ की चाइल्ड चैंपियन लूसी मंच पर आईं। लूसी कोलकाता में झुग्गियों के बच्चों के साथ शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य जैसे मसलों पर काम करती हैं। उनके पिता पेशे से कारपेंटर हैं। अपने बारे में बात करते हुए लूसी कहती हैं कि वह एक स्ट्रीट चाइल्ड हैं और वह इस पर काम भी करती हैं। लूसी का घर कोलकाता में बिल्कुल सड़क किनारे है, जहां से हमेश रेलगाड़ी गुज़रती है।

लूसी, चाइल्ड चैंपियन, सेव द चिल्ड्रेन

लूसी कहती हैं, “जब हमने सेव द चिल्ड्रेन ज्वॉइन किया, तब हमें पता चला कि आग लगने पर या भूकंप आने पर क्या किया जाता है। रेलवे लाइन के सामने हालत ऐसी हो जाती है कि बारिश का पानी वहां जमा हो जाता है। हमें सेव द चिल्ड्रेन ने बताया कि ऐसे हालात में क्या करना चाहिए।”

बकौल लूसी, “हमें शौचालय की बहुत दिक्कत होती थी, कई समस्याएं जैसे शौचालय का दरवाज़ा टूटा होता था। लड़के तो कहीं भी चले जाते थे लेकिन सबसे ज़्यादा दिक्कत लड़कियों को होती थी। जब हम ये समस्याएं लेकर काउंसलर के पास जाते हैं, तो वे कहते हैं कि बच्ची लोग क्या समस्या लेकर आ जाते हैं।”

स्ट्रीट चिल्ड्रेन क्रिकेट व्लर्ड कप में खेलने का मौका

2019 के स्ट्रीट चिल्ड्रेन क्रिकेट व्लर्ड कप में खेलने के लिए लूसी को चुना गया। कनवर्ज के दौरान अपने अनुभवों को साझा करते हुए लूसी बताती हैं, “मुझे लगा कि एक लड़की होने के नाते मैं नहीं खेल सकती हूं। पहले घर की गलियों में खेलती थी लेकिन सभी लोग कहते थे कि लड़की है क्या खेलेगी! मुझे नहीं पता था कि मेरा यह सपना एक रोज़ पूरा हो जाएगा लेकिन हमने स्ट्रीट चिल्ड्रेन क्रिकेट वर्ल्ड कप के लिए प्रैक्टिस करना शुरू कर दिया। मैं लंदन के लॉर्ड्स में भी खेलकर आई हूं।”

लूसी टीम की वाईस कैप्टन है और जब वह लॉर्ड्स में खेलने गई, तब वहां उनकी तरह अलग-अलग देशों से और भी स्ट्रीट चिल्ड्रेन आए थे। उन्होंने जब वहां बताया कि वह भारत में स्ट्रीट चिल्ड्रेन पर काम करती हैं, तब लोगों ने उनकी काफी सराहना की थी। लूसी के अलावा वहां कई देशों से बच्चे आए थे। लूसी को वहां के पार्लियामेंट में भी बोलने का मौका मिला। उन्होंने Youth Ki Awaaz कनवर्ज में अपनी बात समाप्त करते हुए कहा कि मैं सारे बच्चों की आवाज़ बनकर आपके पास बोलने के लिए आई हूं।

इंटरनैश्नल जस्टिस मिशन (IJM) की पब्लिक पॉलिसी ऑफिसर दिव्या

लूसी के बाद मंच पर आईं  इंटरनैश्नल जस्टिस मिशन (IJM) की पब्लिक पॉलिसी ऑफिसर दिव्या। उन्होंने रोज़मर्रा के जीवन में झेली जाने वाली तमाम तरह की हिंसा के बारे में बात की। उन्होंने बस में यात्रा करने के दौरान एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताया, “बस में यात्रा करने के दौरान एक बार मैंने देखा कि मेरे आस-पास की सभी सीटें खाली थीं मगर एक आदमी मेरे पास आकर कहता है कि मैं उसे मेरी बगल वाली सीट में बैठने दूं।”

दिव्या बताती हैं, “सबसे अजीब बात यह थी कि बस में जो भी थोड़े बहुत लोग थे, वे इन चीज़ों को देखकर भी नज़रअंदाज़ कर रहे थे। मैंने महिला कंडक्टर से जब इस बारे में बात की, तो उन्होंने मुझे ही महिला सीट पर जाकर बैठने के लिए कह दिया। मुझे बहुत गुस्सा आया कि उस व्यक्ति को किसी ने कुछ क्यों नहीं कहा।”

वह आदमी गलत होते हुए भी आत्मविश्वास से लबरेज़ क्यों था? आखिर क्या वजह थी कि उसका आत्मविश्वास इतना अधिक था। उसे सज़ा का भी डर क्यों नहीं था?

इन वजहों से लड़कियां नहीं जाती हैं स्कूल

दिव्या कहती हैं, “एक ग्रामीण इलाके में काम करने के दौरान जब मैंने कई लड़कियों से उनके स्कूल नहीं जाने का कारण पूछा, तब उन्होंने बताया कि स्कूल जाने के दौरान उनके साथ सेक्शुअल हैरेसमेंट होता है, इसलिए वे स्कूल नहीं जाती हैं। कई लड़कियों से बात करने पर पता चला कि स्कूल जाने के दौरान लड़के उनपर तंज कसते हैं या किसी तरह से उन्हें परेशान करते हैं।”

दिव्या, पब्लिक पॉलिसी ऑफिसर, IJM

इसी कड़ी में वह कहती हैं, “मुझे पता है कि जितने भी लोग यहां बैठे हुए हैं, आपके पास भी रोज़मर्रा की हिंसा को साझा करने के लिए कोई ना कोई कहानी ज़रूर होगी। रोज़मर्रा के जीवन में जो भी हिंसा होती है, उनको हमारे समाज ने इस कदर एक्सेप्ट कर लिया है कि कई दफा उनकी पहचान भी नहीं हो पाती।”

छोटे बच्चे जो ईंट ढोते हैं, क्या वह हिंसा नहीं है? हमें यह भी समझना होगा कि छोटे बच्चे को इसलिए ईंट ढोना पड़ता है, क्योंकि उसके दादाजी ने कहीं से कर्ज़ लिया हुआ है, जिस कारण बच्चे के पिता को भी यही काम करना पड़ता है।

प्रेरणादायी है रूबी की कहानी

फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी के ‘Girls In STEM’ प्रोग्राम में बतौर प्रोग्राम असिसटेंट अपनी सेवाएं देने वाली रूबी कहती हैं कि दिल्ली में बहुत सारी मार्जिनलाइज़्ज कम्युनिटी हैं, उन्हीं में से एक मैं भी हूं। आज भी मैं जिस समाज में रहती हूं, वहां लड़कियों को पीछे करने के लिए बहुत से तरीके ढूंढे जाते हैं।

रूबी, प्रोग्राम असिसटेंट, Girls In STEM

रूबी के मुताबिक उनकी सोसाइटी में किसी भी तरह का मौका लड़कों को पहले दिया जाता है। उनके समुदाय में किसी भी तरह की सुविधाएं अन्य जगहों के मुकाबले बहुत विलम्ब से आती हैं।

रूबी कहती हैं, “हमारी कम्युनिटी में लड़कियों को पॉकेट मनी नहीं दी जाती है। इस कारण लड़कियां अपनी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाती हैं। पीरियड्स के दौरान पैड के लिए भी हमारी कम्युनिटी की लड़कियो को बहुत सफर करना पड़ता है।”

रूबी को कम्प्युटर, कैमरा, पितृसत्ता और जेंडर जैसे मसलों पर भी ट्रेनिंग दी जाती थी। वह कहती हैं, “धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि मेरे बड़े भाई को अधिकार है कि वह पूरा का पूरा मेरे राइट को दबा सकता है। मेरे बड़े भाई की सारी इच्छाएं पूरी होती थी, चाहे वह घर से बाहर भी क्यों नहीं जाए।”

जुगाड़ लैब

रूबी बताती हैं, “जुगाड़ लैब में इंटर्नशिप के दौरान ‘Girls in STEM’ प्रोग्राम के तहत मैंने ड्रिल मशीन को टच किया था, बहुत अजीब बात है ना यह? क्योंकि हमने इसके इर्द-गिर्द हमेशा पुरुषों को ही देखा है। मैं बहुत डरी हुई थी, क्योंकि पहले भी मुझे करंट लग चुका है। हमारे समाज में लड़की अगर ड्रिल मशीन टच भी करती है, तो उसे अजीब निगाहों से देखा जाता है। खैर, मुझे प्रोत्साहन दिया गया फिर मैंने यह काम किया।”

इंटर्नशिप के दौरान मुझे समझने का अवसर मिला कि मेरी इच्छाएं क्या हैं। यदि मैं लड़की हूं, तो क्या मुझे सूट पहनना ज़रूरी है? मुझे अपनी कम्युनिटी में बदलाव लाना था। कई लड़कियों ने सोसाइटी के खिलाफ जाकर अपने हित में फैसले लिए थे। हमें तो यहां तक कहा जाता था कि अगर हम जुगाड़ लैब जाएंगे, तो हमारे पैर काट दिए जाएंगे।

आपको बता दें कि रूबी उन लड़कियों के साथ काम करती हैं, जो डेली लाइफ में हिंसा सहकर चुप रहती हैं। Youth Ki Awaaz कनवर्ज के अपने टॉक के अंतिम पड़ाव में रूबी कहती हैं कि उन लड़कियों के साथ काम करने का मकसद यह नहीं है कि वह अपनी लाइफ में लीडरशिप ले सके, बल्कि हम चाहते हैं कि अपने साथ-साथ अपनी कम्युनिटी में अन्य लड़कियों को भी साथ लेकर चले। अंत में वह कहती हैं कि सिर्फ बात करने से समानता नहीं आती, उसके लिए काम करना पड़ता है।

रूबी के सेशन के बाद अंबेडकर इंटरनैश्नल सेटर में मौजूद युवाओं ने अपने-अपने सवाल स्पीकर्स के समक्ष रखे, जिनका एक-एक कर उत्तर दिया गया। गौरतलब है कि अगले 12 महीनों में देश के 12 अलग-अलग शहरों में Converge का आयोजन किया जाएगा।

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