Site icon Youth Ki Awaaz

तर्कहीन है साध्वी का BJP नेताओं की मौत का ज़िम्मेदार काँगेस को ठहराना

प्रज्ञा ठाकुर

प्रज्ञा ठाकुर

बीजेपी के केंद्रीय और क्षेत्रीय नेतृत्व के शीर्ष नेताओं की मृत्यु की खबरें दुखद हैं। इन घटनाओं पर भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर का बयान, “भाजपा नेताओं को नुकसान पहुंचाने के लिए विपक्ष मारक शक्तियों का प्रयोग कर रहा है” काफी तर्कहीन है।

थोड़ी बहुत तर्क बुद्धि रखने वाला व्यक्ति प्रज्ञा ठाकुर के बयान को खारिज़ कर सकता है। हालांकि भारतीय राजनीति में ऐसे बयान पहले भी कई दफा सुनने को मिले हैं।

कर्नाटक में पूर्व की काँग्रेस और महाराष्ट्र में भाजपा सरकार ने तो ‘अंधविश्वास विरोधी बिल’ (अमानवीय प्रथाओं और काला जादू पर रोक और उनकी समाप्ति के लिए विधेयक) पास कराया था। स्वयं को राजनीति में सुरक्षित करने का यह शायद पहला प्रयास होगा, जिसका जन-सरोकार भी बहुत बड़ा है।

अंधविश्वास के खिलाफ साध्वी को कदम उठाने की ज़रूरत

सासंद प्रज्ञा ठाकुर को इस दिशा में नेतृत्व करते हुए पूरे देश में एक केंद्रीय कानून की पहल करनी चाहिए ताकि जाति और जेंडर आधारित अपमानजनक व्यवहारों पर रोक लगने के साथ-साथ बिल के मानवीय प्रावधान, समस्या के मूल कारण का समाधान कर सके। साध्वी को यह भी समझना होगा कि बीजेपी नेताओं की मौत की वजह मारक शक्तियां नहीं, नियति है।

प्रज्ञा ठाकुर। फोटो साभार: Getty Images

मूल समस्या यह है कि प्रज्ञा ठाकुर ने मारक शक्तियों के प्रयोग पर बयान तो दे दिया मगर इसके विरोध में या अफवाहें फैलाने के खिलाफ  कुछ कर नहीं सकती हैं, क्योंकि पूर्व में जब कर्नाटक और महाराष्ट्र में अंधविश्वासों के विरोध में बिल लाया गया था, तब हिंदुत्ववादी संगठनों ने यह कहकर इसका विरोध किया था कि यह एक ‘हिंदू विरोधी बिल’ है, जबकि बिल का फोकस सभी धर्मों की कुप्रथाओं पर था।

समाज में स्वीकार्य हैं मारक शक्तियां

आज भारत भले ही मंगलयान और चंद्रयान जैसे सफल अभियानों के वैज्ञानिक प्रयोगों से अपने साइंटिफिक टेंपर का परिचय दे चुका हैं मगर अंधविश्वासों को दूर करने की दिशा में कोई सराहनीय पहल नहीं की गई है।

इस बात से कोई भारतीय इंकार नहीं कर सकता है कि सामाजिक जीवन में शुभ-अशुभ व्यवहारों और आचारों से जुड़े तर्कों की अनेक व्याख्याएं मौज़ूद हैं, जो आधारहीन अधिक हैं और तर्कपूर्ण कम। अपनी तमाम आधारहीन व्याख्याओं के बाद भी यह समाज में समान्य रूप से स्वीकार्य हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: Getty Images

अगर विश्वास नहीं हो, तो किसी भी गर्भवती महिला से पूछ लीजिए कि उन्हें बच्चे को जन्म देने तक किन-किन आधारहीन बातों का पालन करना पड़ता हैं। मसलन, शाम के वक्त नहीं निकलना, लोहे का कोई सामान हाथ में लेकर कहीं जाना, तकिया के नीचे पत्थर या लोहा रखकर सोना आदि इनमें शामिल होता है। महिलाओं को ना चाहते हुए भी इन चीजों का पालन करना पड़ता है।

अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित और सभी जाति-वर्ग में ऐसी मान्यताएं हावी हैं। इन मान्याताओं का सबसे बड़ा खमियाज़ा महिलाओं को भुगतना पड़ता है।

25,000 महिलाओं को डायन या चुड़ैल कहकर मार दिया गया

सयुंक्त राष्ट्र संघ ने कुछ साल पहले एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें भारत में 1987 से 2003 तक 25,000 महिलाओं को डायन या चुड़ैल कहकर मार देने के दावे किए गए थे। इस तरह की घटनाओं में झारखंड सबसे आगे है, ओडिशा दूसरे और तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 ‘ए’ में मानवीयता और वैज्ञानिक चितंन को बढ़ावा देने में सरकार को प्रतिबद्ध रहने की बात की गई है। मसलन, बच्चों को कांटे पर फेंकना या महिला को नग्न करके घुमाना, धारा 307 और 354 ‘बी’ के तहत अपराध है मगर ये धाराएं अधिक प्रभावी रूप से सक्रिय नहीं हैं।

हर राज्य अपनी आवश्यकता के अनुसार महिलाओं और बच्चों को संरक्षण देने के संदर्भ में कानून बनाने के लिए स्वतंत्र है। महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकार द्वारा इससे संबंधित बिल के ज़रिये इस दिशा में पहल की गई है, जिसे मील का पत्थर कहा जा सकता है।

हालांकि दोनों राज्यों के प्रस्तावित बिल की आलोचनाएं भी हैं, जिसपर ध्यान देना ज़रूरी है। इन दोनों राज्यों के बिल की प्रासंगिकता को देखते हुए पूरे देश में इस तरह के अपराध के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने के साथ-साथ मज़बूत केंद्रीय कानून के पक्ष में महौल बनाने की ज़रूरत है ताकि वंचितों को छल से बचाया जा सके।

Exit mobile version