झिझकते हुए कब तक किनारा करेंगे
उड़ते पंखों को कब तक काबू में रखेंगे,
वक्त है बदलने का समाज को
केवल दलीलों से कदमों को कब तक रोकेंगे?
किसी भी देश के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति की एक अलग भूमिका होती है, क्योंकि इसी पर राष्ट्र का विकास निर्भर करता है। आने वाले भविष्य को हम कैसी शिक्षा देने जा रहे हैं, यह सब इसी पर निर्भर है।
लंबे समय से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का इंतज़ार पूरा देश कर रहा था और आखिरकार इस वर्ष मई में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल को राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा दिया गया। आर के कस्तूरीरंगन की अगुवाई वाली समिति ने मसौदा नीति तैयार की, जिसका गठन पिछली भाजपा सरकार ने किया था।
मौजूदा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में बेहतर समाज निर्माण के लिए कुछ खास मुद्दों को रखा गया है, जिसमें सेक्स एजुकेशन भी शामिल है लेकिन बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने की बातों के बीच अब चर्चा का बाज़ार गर्म हो गया है।
ऐसा इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक शैक्षणिक संगठन ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ (एसएसयूएन) ने कहा कि स्कूलों में यौन शिक्षा की आवश्यकता नहीं है, इसे केंद्र द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे के अनुसार सेक्स एजुकेशन को माध्यमिक विद्यालय में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे बच्चों को सहमति, उत्पीड़न, महिलाओं के लिए सम्मान, सुरक्षा और परिवार नियोजन के विषय का ज्ञान हो सके।
आज कल के समय में यह कहना गलत होगा कि बच्चों को सेक्स के विषय में ज्ञान नहीं होता है क्योंकि बच्चे जिस परिवेश में रहते हैं, उन्हें तरह-तरह के लोगों का सामना करना पड़ता है। ये लोग अलग-अलग कम्युनिटी से होते हैं, जो जाने-अनजाने में कई विषयों पर बच्चों की समझ बढ़ा देते हैं।
मसला यह है कि आज के बच्चों को जिन अलग-अलग माध्यमों से सेक्स संबंधित जानकारियां मिलती हैं, वे सही हैं या नहीं, इस पर मंथन करने की ज़रूरत है।
- स्कूलों में सेक्स एजुकेशन के ज़रिये बच्चों को इस विषय की गंभीरता के बारे में बताया जा सकता है, जिससे वे अन्य जानकारियों से भ्रमित ना होकर यह समझ पाएं कि महिलाएं केवल एक ऑब्जेक्ट नहीं हैं।
- सेक्स एजुकेशन को हम केवल अश्लीलता का बहाना देकर दरकिनार नहीं कर सकते हैं। हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में किसी ना किसी के साथ हर 13 मिनट में बलात्कार होता है।
- NCRB के आंकड़ों के मुताबिक 2016 के दौरान रोज़ाना बलात्कार के 106 मामले दर्ज़ किए गए।
यह आकड़े बेहद परेशान करने वाले हैं। इसलिए ज़रूरी है कि हम बुनियादी तौर पर कुछ परिवर्तन की बात करें। ऐसे में सेक्स एजुकेशन को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शैक्षणिक संगठन का बयान बेहद निंदनीय है। हमें यह समझना पड़ेगा कि स्कूलों में सेक्स एजुकेशन बैन करके आखिर बच्चों को हम क्या शिक्षा देंगे?