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“मंडल कमीशन की सिर्फ 2 सिफारिशें लागू होना दुखद है”

बीपी मंडल तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपते हुए।

बीपी मंडल तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपते हुए।

शुरुआत बी.पी. मंडल के कोटेशन से,

समानता केवल समान लोगों के बीच होती है। असमान लोगों को समान स्तर पर रखने का मतलब है, असमानता को बनाए रखना।

हम सभी को ज्ञात है कि दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, बिहार के पूर्व यशस्वी मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की 101 जयंती कल थी, जिसे देश के तमाम पिछड़े वर्ग के लोगों ने हर्षोल्लास के साथ मनाया।

सामान्य परिचय

‌25 अगस्त, 1918 को मधेपुरा के मुरहो गाँव के ज़मींदार परिवार में जन्में बी.पी. मंडल अविभाजित 1979 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। मोरारजी देसाई की सरकार ने उन्हें बैकवर्ड क्लास कमीशन का अध्यक्ष नियुक्त किया था। 1980 में इंदिरा गाँधी के सत्ता में दोबारा आने के बाद उनके कार्यकाल में मंडल आयोग की रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई। 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का फैसला किया था।

कल बी.पी. मंडल की 101वीं जयंती मनाई गई। वर्तमान मधेपुरा ज़िले के मुरहो गाँव के बड़े ज़मींदार रास बिहारी मंडल के बेटे बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल 31 दिनों तक अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके पौत्र और जदयू नेता निखिल मंडल बताते हैं कि बी.पी. मंडल के पिता रास बिहारी मंडल जब काशी में सपरिवार स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे, तब वहीं उनका जन्म हुआ था। 

कोई नहीं उठा सकता उंगली

‘शोषित दल’ नाम की उनकी पार्टी जितने दिन सरकार में रही, किसी के सामने झुकने को राज़ी नहीं हुई। बिहार विधानसभा के दस्तावेज़ों के मुताबिक, विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के दौरान मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने रामायण की एक चौपाई, ‘मन मलीन तन सुंदर कैसे, विष रस भरा कनक घट जैसे’ को उद्धृत करते हुए कहा था, “जब तक मैं मुख्यमंत्री रहूंगा और मेरा मंत्रिमंडल रहेगा, हमारा ध्येय यही होगा कि हम पर किसी तरह की उंगली नहीं उठे।”

भगवान को साक्षी मानकर बिहार की जनता की सेवा करना ही शोषित दल की सरकार का एकमात्र ध्येय है। बिहार विधानसभा में उन्होंने कहा, “शोषित दल की मेरी सरकार में जितने आदिवासी और दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व हुआ है, शायद बिहार के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ हो और ना भविष्य में होगा।”

राम मनोहर लोहिया। फोटो साभार- Twitter

उन्होंने आगे कहा, “डॉ. लोहिया साठ और चालीस की बात करते थे लेकिन इस सरकार में 85% बैकवर्ड मंत्री हैं। हमारी पार्टी में फारवर्ड भी हैं और बैकवर्ड भी़। राजपूत हैं, ब्राह्मण भी हैं और भूमिहार आदि सभी जाति के लोग हैं।”

सदन में विश्वास मत पर मतदान की प्रक्रिया आरंभ हुई। उस दिन सदन में कुल सदस्यों की संख्या 319 थी। पांच सदस्यों ने मतदान नहीं किया था। सरकार के पक्ष में 165 वोट पड़े और विपक्ष में 148 सदस्यों ने मतदान किया। काँग्रेस के ललितेश्वर प्रसाद शाही तटस्थ रहे और उन्होंने अपने मत पत्र पर हां और ना कुछ भी अंकित नहीं किया था। 

बेहद खास थे बी.पी. मंडल

बिहार की राजनीति में बी.पी. मंडल अपने समकालीन नेताओं में खास थे। शुरुआती दिनों में वह काँग्रेस में सक्रिय रहे। 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में वह काँग्रेस की टिकट पर ही विधायक निर्वाचित हुए थे। बाद में केबी सहाय की सरकार में मंत्री बने लेकिन राजनीतिक मतभेदों के चलते उन्होंने 1965 में काँग्रेस से इस्तीफा दे दिया और डॉ. लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।  

बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में गठित बैकवर्ड क्लास कमीशन की रिपोर्ट को लागू कर पाना इतना आसान नहीं था। इंदिरा गाँधी जैसी ताकतवर राजनीतिक हस्ती भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। 90 का दशक आरंभ होने वाला था और विश्वनाथ प्रताप सिंह की गठबंधन सरकार देश में चल रही थी।

काँग्रेस विरोध में इस सरकार को भाजपा और भाकपा का भी समर्थन हासिल था। इसके बावजूद गैर काँग्रेसी हुकूमत के जो साइड इफेक्ट होते हैं, वह भी साफ दिखने लगे थे। राष्ट्रीय स्तर पर हालात ऐसे बने कि वीपी सिंह की सरकार ने बड़ा दांव खेलते हुए मंडल कमीशन की अनुशंसाओं को कुछ सुधार के साथ लागू करने का फैसला कर लिया।

अधिकार लेने में लगे 60 वर्ष

इस तरह देश की सबसे बड़ी बहुसंख्यक आबादी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को अपने अधिकार प्राप्त करने में लगभग 60 वर्ष लग गए, जिसमें तमाम बड़े नेताओं का सहयोग रहा। इस लिस्ट में बी.पी. मंडल का नाम प्रमुख है।

बतौर अध्यक्ष जिनकी अगुवाई एवं निर्देशन में अन्य पिछड़े वर्ग के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए देशभर में घूम-घूमकर कर जहां जातियां, समूहों और वर्गों का निर्धारण किया गया, वहीं इनके विकास एवं सार्वजनिक सेवाओं में प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित कराने के लिए क्या-क्या ज़रूरी कदम उठाए जाने चाहिए, इसका भी मार्ग प्रशस्त किया गया।

आइए जानते हैं क्या थी अनुशंसा दूसरे अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की, जिसे मंडल कमीशन के नाम से जाना जाता है।  

मंडल कमीशन की अनुशंसाएं

मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के अध्याय 13 में कुल 40 प्वाइंट में सिफारिशें की हैं। 

आइए कमीशन की सिफारिशों को बिंदुवार देखते हैं, जिन्हें लागू करने को लेकर चर्चा नहीं होती-

इनमें कई और ज़रूरी सुझाव भी हैं, जिन्हें यदि वक्त पर लागू कर दिया जाता तो वाकई में आज तस्वीर कुछ और होती।

हॉस्टलों के संदर्भ में भी कई ऐसी बातें हैं, जिनपर विचार करना बेहद ज़रूरी है। ना सिर्फ हॉस्टल, बल्कि खाने-पीने से लेकर तमाम ज़रूरतों की वकालत करती हैं कमीशन की सिफारिशें-

इस अनुशंसा में इस बात का भी ज़िक्र है कि छोटे और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बनी विभिन्न वित्तीय व तकनीकी एजेंसियों का लाभ सिर्फ प्रभावशाली तबके के सदस्य ही उठा पाने में सक्षम हैं। इसे देखते हुए यह बहुत ज़रूरी है कि पिछड़े वर्ग की वित्तीय व तकनीकी सहायता के लिए अलग वित्तीय संस्थान की व्यवस्था की जाए।

तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपते बी.पी. मंडल। फोटो साभार: Twitter

पेशेगत समूहों की सहकारी समितियां बनने पर भी ज़ोर है। इस बात का भी ज़िक्र है कि इनकी देखभाल करने वाले सभी पदाधिकारी और सदस्य वंशानुगत पेशे से जुड़े लोगों में से हो और बाहरी लोगों को इसमें घुसने और शोषण करने की अनुमति नहीं हो।

देश के औद्योगिक और कारोबारी ज़िंदगी में ओबीसी की नगण्य हिस्सेदारी को देखते हुए वित्तीय और तकनीकी इंस्टीट्यूशंस के अलग नेटवर्क तैयार करने की बात की गई है, जो ओबीसी वर्ग में कारोबारी और औद्योगिक इंटरप्राइजेज़ को गति देने में सहायक हो।

इसके अलावा और भी तमाम प्वॉइंट्स हैं-

दुखद यह है कि इनमें से मात्र दो ही अनुशंसाएं लागू की गई हैं, जिसके बल पर अन्य पिछड़े वर्ग के भीतर अपने अधिकारों को लेकर जागृति आई है। यदि यह सारी अनुशंसाएं लागू कर दी जाए, तो असल में इस वर्ग की समस्याओं का समाधान होगा। ऐसा करने से राष्ट्र निर्माण एवं विकास में भी सहयोग प्राप्त होगा।

नोट-  इस लेख को लिखने के लिए इस किताब “मंडल कमीशन: राष्ट्र निर्माण की बड़ी पहल” की मदद ली गई है।

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