शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग आम बात है, जिसे सीनियर स्टूडेंट्स अपना सम्मान समझते हैं। उनकी भाषा में इसे डिसीप्लिनरी पोर्टफोलियो कहते हैं। कई सीनियर स्टूडेंट्स का कहना है कि यह रैगिंग नहीं, बल्कि स्टूडेंट्स को अनुशासन में रखने का तरीका है।
स्टूडेंट्स की दलीलों के बीच हमें समझना होगा कि इस अनुशासन के नाम पर सीनियर स्टूडेंट्स द्वारा जिस तरीके का शोषण किया जाता है, वह इस देश के लोकतांत्रिक और संवैधानिक मानवीय अधिकारों पर हमला है।
रैगिंग के मामलों में जूनियर स्टूडेंट्स जब कॉलेज प्रबंधन से शिकायत करते हैं, तब ज़्यादातर मामलों में कोई कठोर निर्णय नहीं लिया जाता है। कई संस्थानों में तो रैगिंग की घटनाओं के बाद केवल एक नोटिस बोर्ड टांगकर मामला शांत कर दिया जाता है।
हमने देखा रैगिंग का विभत्स चेहरा
साल 2013 की बात है जब मैसूर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान मुझे भी रैगिंग का समाना करना पड़ा था। एक दिन मेरे मित्र आशीष के साथ कॉलेज के सामने वाली चाय की दुकान पर गया। हम चाय पीने लगे और इसी बीच मेरे मित्र ने एक सिगरेट भी लिया। इस दौरान कुछ सीनियर स्टूडेंट्स ने हमें देख लिया और हमारे करीब आकर चाय फेंकते हुए मेरे मित्र के गाल और होठ को सिगरेट से जला दिया।
यह घटना सहने के बाद हमें काफी तकलीफ हुई। मुझसे पूछा गया, “तुम्हें अंग्रेज़ी में बात करना आता है?” जब मैंने ना में उत्तर दिया, तब उन्होंने मुझे गाली दी। मेरे गले में तुलसी की माला थी, जिसे देखकर सीनियर स्टूडेंट्स बौखला गए और कहा, “यह माला जल्दी से खोल दो।”
मैंने जब उनका विरोध किया और कहा कि यह माला मैं नहीं खोल सकता हूं, तब सीनियर स्टूडेंट्स ने ज़बरदस्ती मेरे गर्दन से तुलसी की माला को तोड़ दिया। आपको बता दूं कि तुलसी का माला हिंदू धर्म में अति महत्वपूर्ण होता है। इसे पहनने के बाद इसकी मर्यादा का पालन करना बहुत ज़रूरी होता है।
सीनियर स्टूडेंट्स ने मेरे गर्दन से तुलसी की माला तोड़ने के साथ-साथ हम दोनों की जमकर पिटाई भी की। उन स्टूडेंट्स ने हमें इस कदर पीटा कि हम घायल ही हो गए थे। हमलोग रोते हुए हॉस्टल गए, फिर हमें डॉक्टर के पास ले जाया गया जिसके बाद हमारी शिकायत दर्ज़ हुई। इन सबके बीच सबसे दुखद यह है कि कॉलेज प्रशासन ने उन स्टूडेंट्स के खिलााफ कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने कहा कि यदि हम अनुशासन में रहेंगे, तो हमारे साथ कुछ भी गलत नहीं होगा।
इसके बाद अगले साल मैं भी सीनियर स्टूडेंट बन गया। धीरे-धीरे स्टूडेंट पॉलिटिक्स के साथ जुड़कर मैंने अपने कॉलेज से रैगिंग जैसी प्रथा को खत्म करने का काम किया।
मैंने स्टूडेंट पॉलिटिक्स के दौरान कॉलेज प्रशासन से लगातार अनुरोध किया कि वे रैगिंग के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें ताकि ऐसी चीज़ें फिर ना हो सके।
मुझे याद है एक बार मेरे बैच के कुछ लड़कों ने जूनियर स्टूडेंट्स को रैगिंग के नाम पर परेशान किया। मुझे जब जूनियर स्टूडेंट्स ने फोन के ज़रिये इस बात की जानकारी दी, तब हमने उनसे कहा कि वे जल्द से जल्द इस मामले की शिकायद दर्ज़ कराएं। उन्होंने ऐसा ही किया और तमाम दबावों के बीच कॉलेज प्रशासन ने रैगिंग में संलिप्त 15 सीनियर स्टू़डेंट्स को 10 दिनों के लिए सस्पेंड कर दिया।
इसके बाद जब भी रैगिंग की घटनाओं पर हमें शिकायत मिली, हमने तुरन्त इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद किया। इन चीज़ों का परिणाम यह हुआ कि कॉलेज से रैगिंग नाम की बीमारी खत्म हो गई।
कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है-
- एंटी रैगिंग ऐक्ट के अनुसार प्रत्येक कॉलेज में ‘एंटी रैगिंग स्क्वॉड‘ का गठन अनिवार्य है।
- इस कमेटी को कठोर निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाए ताकि जूनियर स्टूडेंट्स के साथ रैगिंग के नाम पर कुछ गलत ना हो।
- रैगिंग के मामलों में हमें पूर्वाग्रह से भी बचने की ज़रूरी है, क्योंकि कॉलेजों में मानवतावादी स्टूडेंट्स भी होते हैं।
- यदि जूनियर स्टूडेंट्स को अनुशासन में रहने की सलाह दी जाती है, तो यह चीज़ सीनियर स्टूडेंट्स पर भी लागू हो।
मैं अंत में यह कहना चाहूंगा कि रैगिंग का समाधान सभी को मिलकर निकालने की ज़रूरत है। जब तक स्टूडेंट्स यूनियन, विद्यालय प्रशासन और स्टूडेंट्स के बीच आपस में समन्वय ना हो, तब तक रैगिंग का हल निकालना मुश्किल है।
उदाहरण के तौर पर आप मेरे कॉलेज का मामला ही देख लीजिए, जहां मेरे द्वारा विरोध करने के बाद कम-से-कम रैगिंग के मामले बंद तो हुए। मैं जब वहां से पढ़कर निकला तो देखा कि वह रैगिंग शून्य कैंपस बन चुका था।