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क्या अमेरिका की तर्ज़ पर यौन अपराधियों की सूची को सार्वजनिक कर देना चाहिए?

आप जब मकान किरए या खरीदने के लिए जाते हैं तो किन बातों का ध्यान रखते हैंयही ना कि उसकी कीमत आपके बजट में होबिल्डर अच्छा हो और मकान देखने में अच्छा होउसको बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया सामान सही हो। 

यह सब बातें ज़रूरी हैं लेकिन इन सब से ज़रूरी जो बात है उसे हम अक्सर भूल जाते हैं या उन पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता।

वे बाते हैं

हमारे आस पास कौन रह रहा है या हम जिस इलाके में घर लेने का सोच रहे हैं वो अपराधिक दृष्टिकोण से कैसा है? हमें नहीं मालूम हमारे पड़ोस में युवक है या कोई बुजुर्गकलाकार है या बैंकरऔर सबसे अहम कहीं वह कोई अपराधी तो नहीं कितनी बार होता है कि हम अपने पड़ोस में रहने वाले का नाम भी नहीं जानते हैं और ना ही यह जानते हैं कि वह क्या करता हैकहां से आया है

यह सब तो छोड़ ही दीजिएहम तो अपनी भागदौड़ भरी ज़िंदगी में अपने आसपास रहने वाले या हम जिनसे मिलते हैंउनके बारे में तक जानकारी नहीं रखते।

ऐसे में tinder और cupid जैसे एप पर प्यार ढूंढ रहे लड़के-लड़कियां, किसी दुर्घटना के शिकार होने के लिए ज़्यादा असुरक्षित होते हैं। सोशल मीडिया पर बने दोस्त के द्वारा लड़की के बलात्कार की कई खबरें हमें पढ़ने को मिल ही जाती हैं।

यौन अपराधियों की सूची

अमेरिका में आप डेट पर जाने से पहले यह पता कर सकते हैं कि आप का डेट कहीं यौन अपाराधी तो नहीं। आप यहां तक पता लगा सकते हैं कि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड तो नहीं है। अगर आप किसी कॉलोनी में घर लेने की सोच रहें हैं तब भी आप सरकारी एप पर देख सकते हैं कि आपके आस-पास कोई रजिस्टर्ड अपराधी रहता है या नहीं।

ये बातें मुझे एक कॉमेडी शो (कॉमिकस्तान) देख कर पता चली, जिसमें एक प्रतियोगी ने अपने स्टैंड अप के लिए इस मुद्दे को चुना था। अपने एक्ट में ही प्रतियोगी ने बताया की भारत विश्व का 9वां ऐसा देश बना है जहां की सरकार ने यौन अपराधियों की सूची बनाई है।

सूची जारी होने के साथ ही इस लिस्ट में 4.4 लाख अपराधियों के नाम शामिल थे। नेशनल सेक्स ऑफेंडर रजिस्ट्री में यौन अपराध में शामिल लोगों के बायोमेट्रीक रिकॉर्ड दिए हुए हैं।

सरकार ने यौन अपराधियों की लिस्ट बना कर एक शुरुआत तो की है लेकिन समाज को सुरक्षित रखने की यह कोशिश अभी भी अधूरी है। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि अमेरिका की तरह यह सूची, आम नागरिक के लिए मौजूद नहीं है। यानी, सरकार के पास यौन अपराधियों की सूची तो है लेकिन आप उसे देख नहीं सकते।

सरकार ने भी इसे सार्वजनिक ना करने की वजह नहीं बताई है। सूची के बारे में भी सरकार ने लोगों को जागरूक नहीं किया, जैसा की दूसरी किसी व्यवस्था के साथ किया जाता है।

मीडिया का सुस्त रवैया

सिर्फ सूची तैयार करने से क्या फायदा अगर आम जनता को पता ही नहीं कि उनके हित के लिए ऐसी कोई सूची भी है। यह सिर्फ यौन शोषण के लिए नहीं होना चाहिए। आज कल बहुत सी लड़कियां नौकरी और पढ़ाई के लिए घर से दूर रहती हैं। नए शहर में अपने लिए घर देखते समय, उनकी सबसे बड़ी चिंता होती है सुरक्षा।

सरकार को ऐसे एप लाने की ज़रूरत है जिसमें आप जिस कॉलोनी में रहने का सोच रहे हों, वहां का क्राइम रेट देख सकें। आप के आस-पास यौन शोषण अपराधी कौन है? उस एरिया में चोरी या दूसरे किसी भी अपराध का आंकड़ा क्या है? या जो भी उस एरिया के बारे में आप जाना चाहते हों। सुरक्षा के लिए सिर्फ सख्त कानून ही नहीं, साथ में सावधानी भी ज़रूरी है।

यहां मुद्दा केवल यह नहीं है कि ये लिस्ट सार्वजनिक नहीं की गई है। मुद्दा यह भी है कि इस लिस्ट के बारे में आम जनता को कोई जानकारी क्यों नहीं है? हमारी मीडिया और सरकार ने इस एहमियत क्यों नहीं ? मीडिया ने इस पर चर्चा के बार में क्यों नहीं सोचा? रेपिस्ट के धर्म और जाति की बेफिज़ूल बातों से उठकर, मीडिया कब ऐसे मुद्दों को उठाएगी जिनसे समाज पर वाकई असर हो।

सरकार ने इस सूची को बनाने के लिए तब ज़ोर दिया जब दिल्ली के अशोक नगर से पीडोफाइल सुनील रस्तोगी को गिरफ्तार किया गया। सुनील ने पुलिस से 700 बच्चों के साथ यौन शोषण करने की बात कबूली। इसके बाद तत्कालीन महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस लिस्ट को बनाने के लिए प्रस्ताव रखा और सितंबर 2018 में सरकार ने इस सूची को जारी किया लेकिन ये खबर एक-दो अखबारों की वेबसाइट के अलावा कहीं नहीं छपी और ना ही इसे न्यूज चैनलों में हेडलाइन या डिबेट में जगह मिली।

यौन शौषण केस में अपराधी के धर्म और जाति पर चर्चा होती है लेकिन इस मुद्दे को किसी चैनल ने नहीं उठाया। चर्चा का मुद्दा बना कि यौन शोषण करने वाला हिंदू है या मुस्लिम, दलित है या ब्राह्मण लेकिन यह नहीं बन पाया कि इस लिस्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए या नहीं। 

किसी चैनल ने सरकार से लिस्ट जारी होने के बाद इसके बारे में कोई सवाल नहीं किया। किसी ने इस लिस्ट को सार्वजनिक नहीं किए जाने पर सवाल नहीं उठाए।

अपनी सुरक्षा खुद भी सुनिश्चित करें

यहां हमारी सुरक्षा का सवाल केवल मीडिया और सरकार तक सीमित नहीं है। हम खुद अपनी सुरक्षा को लेकर सचेत नहीं हैं। क्या हम कभी यह जानने के कोशिश करते हैं कि हमारे साथ के मकान में कौन रह रहा है?

हमें बस अपनी ज़िंदगी से मतलब होता है। हम अपनी भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इतने मशगूल हैं कि हमे पता ही नहीं होता कि हमारे आस-पास क्या हो रहा है।

सुरक्षा के लिए भले ही आप अपने पास पेपर स्प्रे या कोई और सामान क्यों ना रख लें लेकिन अगर आप को पता होगा कि आप के आस-पास कौन है या आप किसके साथ उठते बैठते हैं तो आप ज़्यादा सतर्क रहते हैं। यह बात सही है कि आप सबके बारे में जानकारी नहीं हासिल कर सकते लेकिन आप सतर्कता बरतने के लिए अपने एरिया या आपके नज़दीक में रहने वालों के बारे में तो जान ही सकते हैं।

वैसे कहने को तो मकान मालिक को घर किराए पर देने से पहले पुलिस जांच करानी ज़रूरी है लेकिन ऐसा कराने वालों की संख्या बहुत कम होती है। आप किराएदार की जांच तो करवा सकते हैं लेकिन मकान खरीदते समय बिल्डर, खरीदने वाले का बैकग्राउंड चेक नहीं करता। तो ऐसे में आप को पता ही नहीं चलता की आपके बगल वाले घर में कौन रह रहा है।

अपने आस-पास की जानकारी रखना या अपनी सुरक्षा को लेकर सतर्कता बरतना हमारी खुद की ज़िम्मेदारी है। हम मीडिया या सरकार के भरोसे अपनी ज़िंदगी नहीं छोड़ सकते। हम कब तक अवाज़ उठाने के लिए किसी घटना के होने का इंतजार करते रहेंगे?

शायद अब हमारी  फितरत हो गई है कि हम छांछ को फूंक कर पीने से पहले मूंह के दूध से जलने का इंतजार करते हैं। जिसे जल्द से जल्द बदलने की ज़रूरत है।

हां, हमारी सरकार ने हमें ऐसा कोई ज़रिया मुहैया नहीं कराया है जिससे हम हमारे आस-पास के खतरों को भांप सकें लेकिन सरकार अगर इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है, तो यह हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि अपनी सुरक्षा पर हम खुद ध्यान दें और अपने आस-पास रह रहे लोंगो और गतिविधियों को लेकर चौकन्ने रहें।

खुद भी सतर्क रहें और दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करें।

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