नौकरी के बारे में जब भी कल्पना करता हूं, तो लगता है कि एक ऐसी दुनियां जहां सभावनाएं तो अनंत हैं मगर आपको बाज़ी पहले मारनी होगी। चलिए मान लेते हैं कि आप बहुत भाग्यशाली हैं और पहली ही दफा में आपको अच्छी नौकरी मिल गई लेकिन इतने बड़े मुल्क में सभी लोग तो भाग्यशाली नहीं हैं ना!
जी हां, नौकरी का मुद्दा लगभग हर राजनीतिक दल के इलेक्शन मेनिफेस्टो में प्राथमिकता के तौर पर होता है। यह बात अलग है कि नौकरी के संदर्भ में सरकारी दावे अकसर फेल हो जाते हैं। बीते कुछ दिनों से ऑटोमोबाइल सेक्टर की मंदी की चर्चा ज़ोरों पर है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में पिछले 19 साल बाद इतनी बड़ी मंदी देखने को मिली है।
मारुति सुजुकि ने 6% कर्मचारियों को काम से निकाला
भारतीय ऑटो इंडस्ट्री ने लगभग दो दशक में पहली बार पैसेंजर व्हीकल की बिक्री में रिकॉर्ड 30.98% कमी दर्ज़ की है। इससे पहले साल 2000 में भी पैसेंजर वाहनों की बिक्री में ऐसी ही मंदी देखने को मिली थी। इस मंदी का असर साफतौर पर आम लोगों के रोज़गार पर पड़ रहा है।
इससे पहले भी एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कई लाख लोगों की नौकरी जाने के दावे किए गए थे। आंकड़ों की माने तो मारुति सुजुकि ने 6% कर्मचारियों को काम से हटा दिया है। निसान इंडिया ने अभी हाल ही में 1710 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया है। गौरतलब है कि इस मंदी की वजह से अबतक 3 लाख 50 हज़ार लोगों ने अपनी नौकरी गवााई है।
बेरोज़गारी दर शीर्ष पर
बेरोज़गारी की समस्या को उजाकर करती एक रिपोर्ट 2019 लोकसभा चुनाव से पहली भी आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि साल 2016 के बाद बेरोज़गारी शीर्ष पर पहुंच गई है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद हर तरफ से सरकार की आलोचना होने लगी थी। गौरतलब है कि CMIE के आंकड़े देशभर के लाखों परिवारों में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित होते हैं।
दिसंबर 2018 में एक अन्य रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया था कि साल 2017-18 में बेरोज़गारी का स्तर 45 वर्षों के सारे रिकॉर्ड को पार कर चुकी है। इन सबके बीच दावा यह भी किया गया कि यह एनएसएसओ की लीक रिपोर्ट है।
अब सवाल यह है कि जिस देश में युवाओं के समक्ष बेरोज़गारी बड़ी समस्या बनी हुई है, वहां की सरकार इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से ले रही है?
आपको बता दें कि साल 2019 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने जो मेनिफेस्टो जारी किया था, उसमें रोज़गार को लेकर गंभीरता से कोई बात नहीं की गई थी। सवाल यह भी उठता है कि सरकारी नौकरियों के अवसर यदि कम हो गए हैं, प्राइवेट सेक्टर में मंदी के कारण लोगों की नौकरियां जा रही हैं तो देश के युवा आखिर क्या करें?
चलिए मान लेते हैं कि देश के युवा अपना खुद का काम शुरू कर लेंगे लेकिन इससे क्या परेशानियां कम हो जाएंगी? यदि सभी लोग खुद का व्यापार शुरू कर लेंगे, तो ग्राहक कौन होंगे? इन सवालों पर हमें मंथन करने की ज़रूरत है।
आइए कुछ ज़रूरी सुझाव के ज़रिये बताता हूं कि बेरोज़गारी से निपटने के लिए क्या करना चाहिए।
- ग्रामीण स्तर पर रोज़गार सृजन करने के लिए सरकार को उचित प्रयास करने की ज़रूरत है।
- ग्रामीण इलाकों में कॉल सेंटर्स की शुरुआत करते हुए बेरोज़गारी की दिशा में सराहनीय कार्य किया जा सकता है।
- महिलाओं के लिए उनकी सुविधा के अनुसार नज़दीकी प्रखंड स्तर पर रोज़गार सृजन हो।
- सरकारी सर्वेक्षण के तमाम कार्य शिक्षकों को ना देकर बेरोज़गार युवाओं को देने पर ज़ोर दिया जाए।
- स्किल डेवलमेंट प्रोग्राम को ईमानदारी से संचालित करने की ज़रूरत।
- ग्रामीण इलाकों में खेती कैसे मज़बूत हो, इसपर सरकार कोई ठोस प्लान के साथ आए।
- एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज सिर्फ ज़िला स्तर पर ही नहीं हो, बल्कि प्रखंड और पंचायत से भी इन्हें जोड़ा जाए।
मुझे आशा है कि इन सुझावों के बल पर हम बेरोज़गारी को कम करने की दिशा में सराहनीय कार्य कर सकते हैं। यदि हमने समय रहते ऐसा नहीं किया, तो ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री की मंदी के साथ भारतीय युवाओं का सपना भी चूर हो जाएगा।