छोटे शहरों से बड़े शहरों की तरफ आने वाली ट्रेनें साधारण नहीं होती हैं। वे सपनों का रथ होती हैं। उनमें सवार युवा ना जाने कितनी चुनौतियों का सामना करके इस उम्मीद से बड़े शहरों की तरफ आते हैं कि यहां उनकी ज़िंदगी आसान हो जाएगी।
छोटे शहरों के युवा पढ़ने में किसी मामले में बड़े शहरों के युवाओं से कम नहीं होते हैं लेकिन फिर भी नौकरी के मामले में पीछे रहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप आज किसी भी कॉलेज में कोई भी पढ़ाई करें लेकिन नौकरी मिलने के लिए अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान ज़रूरी हो गया है। उसमें भी अंग्रेज़ी का सिर्फ किताबी ज्ञान ज़रूरी नहीं है, बल्कि अंग्रेज़ों की तरह उच्चारण भी आना चाहिए। यही कारण है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में अंतिम साल में स्टूडेंट्स को इंटरव्यू के लिए अलग से ट्रेन किया जाता है।
अब दिक्कत यह है कि बड़े शहरों के कॉलेजों में यह सुविधा है कि वे अपने स्टूडेंट्स को इंटरव्यू के लिए तैयार कर सकें लेकिन छोटे शहरों के कॉलेजों में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। छोटे शहरों के कॉलेजों में स्टूडेंट्स को शुद्ध उच्चारण और उचित हाव-भाव के साथ अंग्रेज़ी बोलने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती है।
ऐसे में जब ये स्टू़डेंट्स बड़े शहरों में नौकरी की तलाश में आते हैं, तो इनका सीधा मुकाबला यहां के फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने वाले स्टूडेंट्स से होता है। अब भले ही ये स्टूडेंट्स पढ़ने में ज़्यादा बेहतर हो लेकिन इंटरव्यू में अंग्रेज़ी के कारण बड़े शहरों के स्टूडेंट्स से पिछड़ जाते हैं।
इन युवाओं की दोषी है राज्य सरकार
उनके लिए यह एक असमान कॉम्पटीशन है। एक तो पहले ही छोटे शहर नौकरी और मौकों के मामलों में असमानता झेल रहे हैं। अगर वहां भी समान रूप से मौके उपलब्ध होते तो इन स्टूडेंट्स को अपना घर छोड़कर बड़े शहरों की तरफ नहीं आना पड़ता। इसके लिए राज्य की सरकारें दोषी हैं, जो अपने राज्य के युवाओं को रोज़गार नहीं दे पाई।
आप पढ़े-लिखे भी तभी लगते हैं जब आप अंग्रेज़ी बोलते हैं
दरअसल, यह कोलोनियल सोच है जो अंग्रेज़ी को आत्मविश्वास से जोड़ देती है। नौकरी के लिए इंटरव्यू ले रहे लोगों के अनुसार आपके अंदर आत्मविश्वास तभी झलकता है जब आप अंग्रेज़ी बोलते हैं। अंग्रेज़ी को साक्षरता के स्तर से भी जोड़ दिया गया है। आप पढ़े-लिखे भी तभी लगते हैं जब आप अंग्रेज़ी बोलते हैं।
हमें यह समझना होगा कि बाकी भाषाओं की तरह अंग्रेज़ी भी एक भाषा है, पढ़े-लिखे होने की निशानी नहीं। हम काबिलियत को दरकिनार कर अंग्रेज़ी को अधिक महत्व देकर छोटे शहरों के स्टूडेंट्स (खासकर सरकारी स्कूल-कॉलेजों से पढ़े स्टूडेंट्स) को हीन भावना से ग्रसित कर रहे हैं। बड़े शहरों को अपना दिल और बड़ा करने की ज़रूरत है। हर भाषा के काबिल युवाओं को जगह देने की ज़रूरत है।