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लोग सुषमा स्वराज से एक नेता की तरह नहीं बल्कि किसी अपने की तरह मदद मांगते थे

तुम्हें वफा याद नहीं,
हमें ज़फा याद नहीं।
ज़िन्दगी और मौत के दो ही तराने हैं,
एक तुम्हें याद नहीं,
एक हमें याद नहीं।

सन 2011 की लोकसभा में कुछ इसी तरह सुषमा स्वराज ने अपनी बात रखी थी। इसी तरह के शब्दों का चयन कर, जोश और ऊर्जा के साथ हमेशा अपनी बात लोगों तक पहुंचाने वाली सुषमा स्वराज ने मंगलवार शाम अपनी अंतिम सांस ली। इस इस खबर पर पूरे देश को यकीन करना मुश्किल हो गया था।

किसी भी राजनेता के निधन पर इस तरह करोड़ों लोगों की आंखों का नम होना पहली बार था। इस दुख से उनके विपक्षी तथा विरोधी तक अछूते नहीं थे।

सिंगर अदनान सामी की बेटी मदीना के साथ सुषमा स्वराज, फोटो क्रेडिट- सुषमा स्वराज का ट्विटर अकाउंट

आम जन की नेता थी 

राजनीति में लोगों के दिलों से जुड़ना, राजनेता की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी और चुनौती होती है और सुषमा स्वराज ने इस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया है।

पाकिस्तान के लोग भी सुषमा स्वराज के निधन पर अपना दुख व्यक्त कर रहे थे। सुषमा स्वराज की खास बात यह थी कि आम जन मानस ने उन्हें कभी भी केवल एक नेता के रूप में नहीं देखा। उनसे मदद मांगने वाले लोग उनको अपनी माँ, अपनी बेटी, अपनी बहन और अपनी दोस्त मानते थे।

सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर चुकी सुषमा स्वराज जब भारत की विदेश मंत्री बनीं, तो उन्होंने इस पद की परिभाषा ही बदल दी थी। उन्होंने जनता से जुड़ने का नया तरीका खोजा, जिसका नाम था ट्विटर। वह जानती थीं कि न्यू इंडिया सोशल मीडिया पर एक्टिव रहता है और यही वो ज़रिया है जिससे वो लोगों के बीच पहुंच सकती हैं। सुषमा स्वराज ने जनता और नेता के बीच की दूरियों को खत्म किया।

ट्विटर से लोगों की तकलीफों को जानकर उनको सुलझाने की कोशिश में लग जाना उनके स्वाभाव में था। उनके कार्यकाल में जब भी आम जन द्वारा मदद मांगी गई, उस पर विदेश मंत्रालय द्वारा तुरंत संज्ञान लिया गया।

राजनीति की असली परिभाषा बतला गईं

7 बार सांसद रहीं सुषमा स्वराज जब भी संसद में बोलती थीं, तो पूरा देश उन्हें सुनता था। संयुक्त राष्ट्र में पहुंच कर हिंदी में भाषण देकर उन्होंने हिंदी भाषा को एक नई पहचान दी। सुषमा स्वराज का ऐसा करना पाकिस्तान को सीधा-सीधा जवाब देना था। अपने तर्कों को इस तरह रखना कि सामने वाले को बुरा ना लगे और सन्देश भी साफ-साफ चला जाए, इस कला को वो भली-भांति जानती थी।

UNGA के 73 वें सत्र में भाषण देती सुषमा स्वराज, फोटो क्रेडिट-यूट्यूब

सुषमा स्वराज ने अपने काम के बलबूते बाकी नेताओं को एक सन्देश दिया है कि

ज़रूरी केवल पद में होना नहीं है बल्कि पद में रहकर लोगों के लिए जीना है। राजनीति केवल कुर्सी पाने की दौड़ नहीं है, केवल कुर्सी पाने की साज़िश करना नहीं है, चुनावों में जीतने के लिए रणनीति बनाना नहीं है बल्कि मुस्कुराते हुए लोगों की समस्यों को हल करना है।

राजनेता तो आते ही रहेंगे, महिला भी राजनीति में आती रहेंगी लेकिन जो पहचान सुषमा जी ने बनाई है, उसको अब कोई नहीं बना सकता और शायद इसी वजह से उनके निधन पर कोई भी अपनी आंखों को भीगने से रोक नहीं पाया।

भले ही सुषमा स्वराज जी हम सबके बीच से चली गई हों लेकिन  18 अगस्त 2011 को 4 बजकर 7 मिनट पर किया हुआ उनका ट्वीट, हम सबको जीवन जीने का सन्देश दे गया,

दुश्मनी जम कर करो पर
इतनी गुंजाईश रहे
फिर कभी हम दोस्त बन जाएं तो शर्मिंदा न हों।

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