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राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री बनने से लेकर उनकी हत्या की कहानी

राजीव गाँधी

राजीव गाँधी

21 मई 1991 की रात तमिलाडु के श्रीपेरंबदूर में काँग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार राजीव गाँधी एक रैली को संबोधित कर रहे थे। इतने बड़े राष्‍ट्रीय नेता को अपने बीच देखकर श्रीपेरंबदूर के लोगों में काफी उत्‍साह था। वहां मौजूद हर इंसान राजीव गाँधी की सुरक्षा व्‍यवस्‍था में लगे सिपाहियों के सुरक्षा घेरे को तोड़कर उनके पास पहुंचने की कोशिश में लगा था।

लोगों के इसी हुजूम में तकरीबन तीस साल की लड़की भी हाथों में माला लेकर राजीव गाँधी की तरफ बढ़ रही थी। वहां तैनात सुरक्षा गार्ड्स इस लड़की को रोकने की कोशिश करते हैं और अचानक राजीव गाँधी की नज़र उस लड़की पर पड़ती है। वह सुरक्षा गार्ड्स की तरफ इशारा करते हुए उस लड़की को अपने करीब आने की इजाज़त दे देते हैं।

लड़की राजीव गाँधी के करीब आकर उनके गले में माला प‍हनाते हुए नीचे की तरफ झुकती है। इसी बीच एक बेहद तेज़ आवाज़ में धमाका होता है। कुछ देर तक इंसानों की चीखें और धुंये के अलावा कुछ दिखाई और सुनाई नहीं देता है।

कुछ देर बाद जब यह धुंआ छटता है, तब वहां मौजदू ज़िंदा बचे लोगों को इंसानी शरीर के लोथड़े इधर-उधर बिखरे दिखाई देते हैं। इन जले और कटे हुए शरीर के लोथड़े के बीच राजीव गाँधी का जला हुआ सिर भी वही ज़मीन पर पड़ा हुआ होता है।

भारत में डिजिटल इंडिया की नींव रखने वाले राजीव गाँधी को क्‍यों और किन लोगों ने बम का निशाना बनाया, इसे समझने और जानने से पहले आइये जानते है कि अपने स्‍वभाव से बेहद विनम्र और गैर-राजनीतिक राजीव गाँधी क्‍यों और कैसे देश की सियासी दलदल में धंसते चले गए।

घरेलू ज‍हाज़ कंपनी इंडियन एयरलाइन्‍स के पायलट थे राजीव गाँधी

देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के छोटे बेटे राजीव गाँधी को बचपन से ही काँग्रेस पार्टी और उसकी सियासत में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इंदिरा गाँधी यह बात काफी अच्‍छी तरह से जानती थी इसलिए उन्‍होंने अपने राजनीतिक विरासत की सारी ज़िम्‍मेदारी अपने बड़े बेटे संजय गाँधी को सौप दी थी।

राजीव गाँधी। फोटो साभार: Getty Images

राजीव गाँधी पायलट बनना चाहते थे और अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्‍होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से स्‍नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्‍ली फ्लाइंग क्‍लब की प्रवेश परीक्षा उत्‍तीर्ण की। इस परीक्षा को पास करने के बाद उन्‍हें घरेलू जहाज़ कपंनी इंडियन एयरलाइन्‍स में पायलट की नौकरी मिल जाती है।

इस दौरान वह अपने कॉलेज के दिनों की गर्लफ्रेन्‍ड एंटोनियों माइनो यानि सोनिया गाँधी से शादी भी कर लेते हैं। एक मनपसंद नौकरी, शादीशुदा ज़िन्‍दगी, बेहिसाब दौलत, शोहरत और इज्‍ज़त के बल पर राजीव गाँधी की ज़िन्‍दगी उनके हिसाब से चल रही थी। वह अपनी पत्‍नी सोनिया गाँधी के साथ ज़िन्‍दगी को भरपूर आनंद के साथ जी रहे थे।

संजय गाँधी की मौत ने बदल दी राजीव गाँधी की ज़िन्‍दगी

23 जून 1980, वह दिन जिसने राजीव गाँधी की ज़िन्‍दगी हमेशा-हमेशा के लिए बदल दी। इस दिन उनके भाई और इंदिरा गाँधी के उत्तराधिकारी संजय गाँधी की एक विमान हादसे में मौत हो गई। अपने भाई की मौत के बाद राजीव गाँधी को ना चाहते हुए भी राजनीति में आना पड़ा।

संजय गाँधी की मौत के बाद अमेठी की सीट खाली हो गई थी। राजीव गाँधी ने उसी साल अमेठी की सीट से उपचुनाव लड़ा और आसानी से वह जीत भी गए। एक साल बाद यानि सन् 1981 में उन्‍हें युवा काँग्रेस का अध्‍यक्ष बना दिया गया। इस तरह राजीव गाँधी के कदम पायलट से एक बड़े राजनेता बनने की तरफ अग्रसर होने लगे।

अपनी माँ की मौत के बाद बने भारत के प्रधानमंत्री

31 अक्‍टूबर 1984, वह तारीख जिसने भारत की राजनीति को हमेशा-हमेशा के लिए बदल दिया। इस दिन ईस्‍ट पाकिस्‍तान को जीतकर उसको एक नए देश में तब्‍दील कर देने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को उनके अपने ही सुरक्षा गार्ड्स ने गोली मार दी। ये सुरक्षा गार्ड्स सिख थे और इंदिरा गाँधी के गोल्डन टेंपल में आर्मी भेज देने के फैसले से नाराज़ थे।

इंदिरा गाँधी। फोटो साभार: Twitter

इन गोलियों से इंदिरा गाँधी पुरी तरह ज़ख्‍मी हो गईं। उन्‍हें तुरन्‍त दिल्‍ली के एम्‍स अस्‍पताल में भर्ती किया गया। उस वक्‍त इंदिरा गाँधी की हालत को देखकर सबको यह अंदाज़ा हो गया था कि उनके बचने के चांस बहुत कम हैं। ऐसे माहौल में काँग्रेस पार्टी के बड़े नेता एम्‍स में ही इस बात पर चर्चा करने लगे कि इंदिरा गाँधी की कुर्सी कौन सभालेगा?

पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं ने मिलकर यह फैसला किया कि राजीव गाँधी को देश का अगला प्रधानमंत्री बनाया जाया। जब राजीव गाँधी के पास प्रधानमंत्री बनने का यह प्रस्‍ताव पहुंचा, तब तक इंदिरा गाँधी की मौत हो चुकी थी। राजीव गाँधी ने काँग्रेस पार्टी के नेताओं से कुछ वक्‍त मांगा।

जब उन्‍होंने इस प्रस्‍ताव को लेकर अपनी पत्‍नी सोनिया गाँधी से बात की, तब सोनिया ने राजीव गाँधी को देश का प्रधानमंत्री ना बनने की बात करते हुए यह समझाने लगी कि अगर वह पीएम बनते हैं तो लोग उन्हें भी मार देंगे मगर राजीव ने उनकी बात नहीं मानी। इस तरह राजीव गाँधी को 31 अक्‍टूबर 1984 को ही प्रधानमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी। जब वह देश के प्रधानमंत्री बनें, उस वक्‍त उनकी उम्र मात्र 40 साल थी।

ऐसे हुई राजीव गाँधी की हत्या की साज़िश

राजीव गाँधी की हत्‍या क्यों हुई, इसका जवाब जानने के‍ लिए श्रीलंका की राजनीति को समझना पड़ेगा। 4 फरवरी 1948 को सिलोन (अब श्रीलंका) आज़ाद हुआ। तत्पश्चात 12 मई 1972 में यह श्रीलंका गणराज्य बना और बहुसंख्यक सिंहली भाषी बौद्ध धर्म को राष्ट्र का प्राथमिक धर्म माना। सिंहलियों को आरक्षण व अन्य सुविधाएं दी गईं।

श्रीलंका में 70% सिंहली बौद्ध तथा 13% तमिल हिन्दू थे। गणराज्य बनने के बाद तमिल हिंदुओं को दूसरे दर्जे़ का नागरिक माना गया। आज भी उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं है।

श्रीलंका में उस वक्‍त तमिल अल्‍पसंख्‍यक अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे थे। ये अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोग अपनी सरकार से सिंहली भाषा को अधिकारिक भाषा का दर्ज़ा देने, विश्वविद्यालय में तमिल स्टूेडेंट्स के प्रवेश को कठिन करने और ज़मीन पर मालिकाना हक आदि देने की मांग कर रहे थे।

राजीव गाँधी। फोटो साभार: Getty Images

इन्‍हीं मांगों की वजह से लिट्टे का जन्‍म हुआ। लिट्टे ने अपनी सरकार के खिलाफ गृह युद्ध शुरू कर दिया। इस गृह युद्ध को रोकने के लिए श्रीलंका सरकार ने भारत की सरकार से मदद मांगी। भारत ने भारत-श्रीलंका शांति समझौते के तहत श्रीलंका में भारतीय शांति रक्षा सेना को भेज दिया।

इस सेना ने लिट्टे को श्रीलंका में लगभग खत्‍म कर दिया। बाद में जब राजीव गाँधी की सरकार गिरी और वी.पी.सिंह प्रधानमंत्री बने, तब उन्‍होंने इस शांति सेना को वापस बुला लिया लेकिन 1991 में देश में फिर चुनाव होने थे। लिट्टे को डर था कि राजीव गाँधी दोबारा भारत में सरकार बना लेंगे और फिर से शांति सेना को वापस श्रीलंका भेज देंगे।

इसी डर की वजह से लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण ने श्रीलंका से मानव बम के लिए धनु और शुभा को शिवरासन के साथ भारत भेजा। शिवरासन ने ही राजीव गाँधी की हत्या की रणनीति बनाई। राजीव गाँधी को मारने का प्‍लान तयशुदा तारीख पर तय हो गया। धनु नाम की लड़की ने खुद को मानव बम में बदलकर राजीव गाँधी की हत्‍या कर दी।

नोट: लेख में प्रयोग किए गए कुछ तथ्य रामचंद्र गुहा की किताब इंदिरा आफ्टर इंडिया से लिए गए हैं।

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