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जल विहीन हो चुकी है 150 किलोमीटर तक बहने वाली महावा नदी

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

महावा नदी अभियान, 150 किलोमीटर लंबी भूमि नदी को फिर से जीवित व प्रवाहमान बनाने का अभियान है। यह उसी प्रकार है जैसे गंगा को अवतरित करना। आदिम युग से इन नदियों ने मानवीय संस्‍कृति व सभ्‍यता का पालन किया है मगर आज यह नदियां समाप्‍त होती जा रही हैं।

महावा नदी की हालत भी कुछ ऐसी ही है। महावा नदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन ज़िलों, अमरोहा, संभल और बदायूं में प्रवाहित होती थी। महावा नदी अमरोहा ज़िले के पिपरिया घाट पर गंगा से निकलकर गुन्‍नौर तहसील के मेदपुर डांडा और निरयावली में प्रवेश करती है।

करीब 150 किलोमीटर लंबाई में बहने के बाद यह बदायूं के कछला घाट पर गंगा में मिल जाती थी। 15 वर्ष पूर्व सदा नीरा रहने वाली नदी आज जल विहीन है।

हालात काफी भयावह हैं, क्योंकि नदियां और कुएं लगातार सूखते जा रहे हैं। भूमिगत जल स्‍तर नीचे जा रहा है। कई राज्‍यों में कुछ जगहों पर 40 मीटर तक ग्राउंड लेवल नीचे चला गया है। चेन्‍नई में तो भूमिगत जल प्राय: समाप्‍त ही हो गए हैं।

आज़ादी के बाद पानी प्रति वर्ष 3 मीटर नीचे जा रहा है। हम 72% पानी का अतिरिक्त दोहन कर रहे हैं मगर जल संचय के नाम पर हम उदासीन हैं। बारिश का जल अमेरिका में 6000 मीटर क्‍यूब/प्रति व्यक्ति संचय किया जाता है। ऑस्‍ट्रेलिया में 5000, चीन में 2500, जबकि भारत में यह आंकड़ा सिर्फ 200 है।

सूखी नदियों के पुर्नजीवन का महत्व

सूखी नदियों को यदि पुर्नजीवित किया जाता है, तो इससे बाढ़ व सूखे की समस्‍या को कम किया जा सकता है। देश में कहीं बहुत अधिक जल से बाढ़ आ जाती है, तो कहीं बिल्कुल सूखा रहता है। अधिकांश छोटी नदियां वर्षा काल में मुख्‍य नदी के अतिरिक्‍त पानी को अपने साथ ले जाती हैं। इससे भू जल स्‍तर में वृद्धि होती है, सिंचाई में लाभ होता है, आसपास के क्षेत्रों में हरियाली आती है और जैव विविधता रहती है। 

पानी का सर्वाधिक इस्तेमाल खेती में होता है, जो कि कुल उपयोग का 76% है। यदि सूखी नदी प्रवाहमान होती है तो भूमिगत जल को पीने के लिए बचाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में 1947 के समय 1 लाख 77 हज़ार कुएं थे। सात साल में 77 हज़ार कुएं सूख गए तथा 5 साल में 1045 तालाब कम हो गए।

मैं जब भी अपने गाँव जाता हूं, तब विभिन्न स्‍थानों पर सूखी महावा नदी को देखता हूं। ऐसा लगता है मानो महावा नदी सूखे नयनों से अपनी व्यथा प्रकट करती है। मेरे पिताजी ने वर्षा काल में इस नदी में लहरें देखी थी मगर आज यह नदी पूरी तरह सूख चुकी है। यही नहीं, बहुत सारे स्‍थानों पर नदी की ज़मीन पर लोगों ने कब्ज़ा कर लिया है।

क्षेत्र के लोगों ने इस नदी के लिए कार्य करने को कहा

वर्ष 2017-18 में मैंने इस नदी को पुर्नजीवित करने के लिए प्रयास आरंभ कर दिया। मैंने इस नदी का भौगोलिक विश्लेषण किया तथा रिपोर्ट बनाई। मैंने उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग तथा अन्‍य विभागों में शिकायत कर इस नदी से अवैध कब्ज़ा हटवाने तथा खुदाई करने के लिए प्रयास किए।

बंदायू के सिंचाई विभाग ने मुझे अवगत कराया कि कई स्‍थानों पर नदी का पूरा मार्ग खो गया है, जिसके लिए सर्वेक्षण ज़रूरी है तथा बजट का अभाव है। मैंने इस बजट को उपलब्ध करवाने के लिए उत्तर प्रदेश प्रशासन से बात की।

जनवरी, 2019 में सिंचाई विभाग ने मुझे अवगत कराया कि शीघ्र ही नदी के सर्वेक्षण और खुदाई का कार्य आरंभ किया जाएगा। जनवरी, 2019 में जल व नदी संरक्षण के लिए जल संजीवनी अभियान भी प्रारंभ कर दिया गया था, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण के लिए अधिक से अधिक युवाओं को जोड़ना है। महावा नदी के पुर्नजीवन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा। इन सब कार्यों के लिए अंतरराष्‍ट्रीय संस्था विश्व युवा संसद ने एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया है।

नदियां हमारी धरोहर हैं। जब खुदाई के लिए स्‍थानीय प्रशासन के पास बजट नहीं था, तब मैंने युवाओं को श्रम दान करने के लिए आमंत्रित करते हुए ‘एक हाथ, एक परात’ का नारा दिया। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक व्‍यक्ति दो परात भरकर मिट्टी खोदेगा। निरंतर लोग जुड़ते जा रहे हैं। विशाल जागृति के लिए एक पद यात्रा का भी आयोजन किया जाएगा। वह दिन दूर नहीं जब यह सूखी नदी सदा के लिए नीरा हो जाएगी।

इस नदी पर एक कविता भी है, जिसके मुख्‍य बोल हैं,

चलो पुकारे तुम्‍हें महावा, कर्ज़ चुकाना बाकी है,

जिसके जल से अन्‍न उगा था, उसे बचाना बाकी है।

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