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उन्नाव कांड की आड़ में एक बार फिर बंटवारे की राजनीति

सच में हमारा समाज बंट गया है। आज हमको लगा कि वाकई कुछ तो है, जो हम लोगों को अलग कर रहा है। अरे, हम यहां हिंदू-मुस्लिम एकता की बात नहीं कर रहे हैं और हमको करने में कोई रुचि भी नहीं है लेकिन हां, ये समझ नहीं आता कि वे तथाकथित लोग जो कभी मुस्लिम को रगड़ते हैं, तो कभी हिंदू को, उनके ऐसा करने के पीछे स्वार्थ क्यों होता है?

“हम पत्रकार बनते ही नहीं तो ठीक रहता। हम भी ऐसा ही करते, जो मेरे स्वार्थ का होता उस पर लिखते और जो मेरे स्वार्थ का नहीं होता उस पर नहीं लिखते।” 

आज सुबह से लगभग 120 पोस्ट देख चुके हैं  इसलिए इस मुद्दे पर लिख रहे हैं। उन 120 पोस्ट में 80 पोस्ट मुसलमान का था, जो उन्नाव की बेटी के लिए दुहाई दे रहे थे और साफ-साफ लिख रहे थे। कुछ लोग मजे़ भी ले रहे होंगे कि देखो ना बीजेपी के एक नेता ने हिंदू का बलात्कार किया है, तो हिंदू लोग बोल ही नहीं रहे हैं। मैं यहां किसी एक आदमी के प्रति नहीं लिख रहा हूं। बस बता रहा हूं कि आज मुझे महसूस हुआ कि हां हम बंटे हुए हैं या हम बांट दिए गए हैं। इसका अंतर समझने की कोशिश कीजिएगा।

हम स्वार्थी कैसे हो सकते हैं?

हम तो बॉलीवुड फिल्मों में ऐसा देखे थे। बाप को मार दिया फिर पुलिस को सौंप दिया। बेटी चीफ मिनिस्टर के घर के बाहर जाकर आत्मदाह कर रही है। चाचा रायबरेली की जेल में बंद हैं। उसका एक्सीडेंट हो गया और एक्सीडेंट करने वाली गाड़ी के नंबर पर कालिख पुती हुई है। लोग कह रहे हैं कि सीबीआई जांच होगी।

फिल्मों में भी यही होता है, सिर्फ पैसा खिला दिया जाता है और खेल समाप्त हो जाता है। 25 साल के बाद फिर कोई डीएसपी आकर उसी खेल को शुरू करता है। उस वक्त तक कुलदीप साहब अपनी ज़िंदगी के सारे मजे़ लूट लिए होंगे। बचे कुछ 13 दिन जाकर वह जेल में बिता लेंगे फिर मर जाएंगे।

हमारा समाज, नियम और हम गए तेल लेने। जी, यही है हमारा नया भारत, डिजिटल भारत। अरे, मैं मोदी जी पर तंज़ नहीं कर रहा हूं। बस लिखने का मन कर रहा है तो लिख दिया। हो सकता है मेरा भी इसमें कोई स्वार्थ जुड़ा हो लेकिन आखिर हम इतने स्वार्थी हो कैसे सकते हैं?

पढ़ने से कोई फायदा नहीं है 

जानते हैं दिक्कत क्या है? दिक्कत यह है कि हम चाहते हैं कि हमारे समाज के किसी भी इंसान को कुछ भी ना हो। दिक्कत यह है कि राजनेता कुर्सी पर बैठकर कुछ भी कर सकता है और उसे संरक्षण मिलता रहेगा। दिक्कत यह है कि हम सिर्फ आम लोग हैं, जो वोट देकर अपनी मौजूदगी का सिर्फ सबूत दे सकते हैं लेकिन अपनी मौजूदगी का एहसास नहीं करा सकते हैं।

बहुत दिक्कत है और कितना लिखें। आपको पढ़ने का मन ही नहीं करेगा। वैसे भी लोग आजकल फेसबुक का तीन लाइन का पोस्ट पढ़ते हैं। चार पैराग्राफ का आर्टिकल पढ़ने की फुर्सत किसे है? और सही करते हैं आप मत पढ़िए, कोई फायदा नहीं है। कुछ नहीं होने वाला है

वह किसी पार्टी में चला जाएगा। भाजपा निकालेगी तो कोई और अपना लेगा। आप चिंता मत करिए। आपकी बेटी सुरक्षित है। आपको खाना मिल रहा है और हमारा देश पांच लाख ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है।

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नोट – यह लेख प्रशांत राय द्वारा लिखा गया है।

 

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