आज 15 अगस्त 2019 को हर्षोल्लास के साथ हमारा देश 73वां स्वाधीनता दिवस मना रहा है। यह दिन हमारे भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। इस गौरव दिवस पर हम उन महापुरुषों को याद करते हुए उन्हें श्रंद्धाजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने हमारे देश को आज़ाद कराने में अथक योगदान दिया।
हमारा देश युगों से सोने की चिड़ियां के नाम से मशहूर था। 16वीं सदी में व्यपार करने के लिए भारत आए ब्रिटिश ने यहां ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ की स्थापना की और अपना अपना धाक जमाना शुरू कर दिया। उन्होंने कभी हमारे राजाओं को हराकर तो कभी लोभ-लालच देकर उनके क्षेत्र को कब्ज़ा करना शुरू कर दिया और 19वीं सदी के प्रारंभ से वे हम भारतीयों पर घिनौने अत्याचार करने शुरू कर दिए।
वे अक्सर हमारे किसानों को कर के जाल में फंसाकर उनसे ज़बरदस्ती खेती करवाते थे। इतना ही नहीं, वे फसलों को किसानों को ही अधिक भाव में देते थे।
ज़़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं
नाव, सदा कागज़ की चलती नहीं।
उनके इस बढ़ते अत्याचार ने भारतीयों के दिलों में स्वतंत्रता की ललक पैदा कर दी, जिसका परिणाम हमें 1857 के सिपाही विद्रोह के रूप में देखने को मिलता है। बेशक हम किसी चूक एवं आधुनिक उपकरण ना होने की वजह से यह जंग नहीं जीत पाए मगर हमारे वीर योद्धाओं ने उन्हें धूल चटाने में थोड़ी भी कमी नहीं की।
1857 की हार के बाद अंग्रेज़ों ने अपना दबदबा और बढ़ा लिया मगर यह सियासत ज़्यादा दिनों की मेहमान नही थीं। हमारे इस स्वतंत्रता आंदोलन में कई महापुरुषों ने खुशी से अपने सीने पर गोलियां खाई और हसते-हसते फांसी के फंदों पर लटक गए। कई ने तो जेल की काल कोठरी में ही अपनी अंतिम सांस ली। किसी ने बहुत खूब कहा है,
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
जिस पथ से जाए वीर अनेक।
महात्मा गाँधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाला लाजपत राय, लाल बहादुर शास्त्री, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, वीर कुंवर सिंह, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे कई वीर योद्धाओं के अथक प्रयास एवं बलिदान के पश्चात हमें अंग्रेज़ों से छुटकारा मिली।
14 अगस्त 1947 की आधी रात हमारे वीर सपूतों ने अंग्रेज़ों को यहां से सात समंदर पार जाने को मजबूर कर दिया और इसी के साथ हमारा देश आज़ाद हुआ। उसी रात हमारे देश ने आज़ादी का जश्न मनाया।
इस स्वतंत्रता संग्राम के एक-एक दिन हमारे लिए महत्वपूर्ण एवं अविस्मरणीय हैं। यह दिन हमारे लिए एक धरोहर के समान है। हमें इस दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए।
क्या वाकई में हम आज़ाद होने के बाद अपने पूर्वज़ों के सपनों वाले भारत में जी रहे हैं? आज आज़ादी के 73 साल बाद भी हम धर्म और जाति जैसे तत्त्वों के आधार पर एक दूसरे से दूरी बनाने पर तुले हैं। क्या हमें नहीं लगता कि कोई दूसरा इसका फायदा उठा सकता है?
क्यों ना हम इस सुनहरे अवसर पर तिरंगे के नीचे शपथ लें कि संपूर्ण भारत में एकता और अखंडता कायम रखेंगे ताकि इस मुल्क की तरफ कोई आंख उठाकर देखने की भी हिम्मत ना करे।
एक काव्यांश जिसने बचपन से ही ना सिर्फ मुझे प्रभावित किया है, बल्कि मेरे अंदर देशप्रेम की भावना को भी जगाने का काम किया है, वह इस प्रकार है,
मर जाएंगे रण में
या मिटा देंगे गोरे गद्दारों की हुकूमत,
मरते दम तक यही कहूंगा
‘जय हिंद’, ‘जय भारत’।
समस्त भारतीयों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|