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क्या कश्मीर घाटी में आएगी बदलाव की बयार?

कश्मीर

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अनुच्छेद 370 के परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। बहुत सारी चीज़ें थी जो देश के बाकी राज्यों पर लागू होती थी लेकिन जम्मू-कश्मीर पर नहीं। जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान था। जब तक राज्य सरकार अपनी सहमति नहीं देती थी, तब तक संसद द्वारा पारित कोई कानून राज्य पर लागू नहीं होते थे।

राष्ट्रपति को यह तय करने का अधिकार था कि भारत के संविधान के कौन से प्रावधान राज्य पर लागू होंगे और अपवाद क्या रहेंगे लेकिन राज्य सरकार की सहमति से।

ध्यान रहे कि जम्मू-कश्मीर अद्वितीय नहीं है। कई राज्यों के लिए विशेष प्रावधान हैं, जो अनुच्छेद 371 और अनुच्छेद 371 ‘ए’ से 371-I में सूचीबद्ध हैं। संविधान (जम्मू-कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश 1954, जम्मू-कश्मीर पर लागू होने वाले लेखों और प्रावधानों को सूचीबद्ध करता है।

इसके अलावा, राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 35 ‘ए’ के तहत अपवादों का एक समूह भी सूचीबद्ध किया है। यह अनुच्छेद भारत के संविधान के पाठ में नहीं, बल्कि केवल जम्मू-कश्मीर के संविधान में शामिल है। जबकि 1954 के राष्ट्रपति के आदेश ने जम्मू-कश्मीर के लिए एक कानूनी दस्तावेज़ तैयार किया था।

अनुच्छेद 370 का मतलब क्या है?

इस अनुच्छेद के तहत केंद्र को यहां रक्षा, विदेश, वित्त तथा संचार मामलों में ही फैसले लेने का अधिकार है। अन्य मामलों से जुड़े संसद के कानून एवं फैसलों को लागू करने के लिए राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होगी।

इसका अर्थ यह है कि इस राज्य के निवासी कानूनों के एक अलग समूह के तहत रहते हैं, जिनमें अन्य भारतीयों की तुलना में नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकार शामिल हैं। इस प्रावधान के परिणामस्वरूप, अन्य राज्यों के भारतीय नागरिक, जम्मू-कश्मीर में भूमि या संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं।

अनुच्छेद 370 के कारण केंद्र के पास राज्य में अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल घोषित करने की कोई शक्ति नहीं है। केंद्र केवल युद्ध या बाहरी आक्रमण के दौरान राज्य में आपातकाल की घोषणा कर सकती है।

अनुच्छेद 370 की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

महाराजा हरि सिंह और जवाहरलाल नेहरू द्वारा नियुक्त जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने 1947 में इस प्रावधान का मसौदा तैयार किया गया था। अब्दुल्ला ने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 370 को अस्थायी प्रावधानों के तहत नहीं रखा जाना चाहिए। इसके बजाए वह राज्य के लिए ‘स्वायत्तता’ चाहते थे। हालांकि, केंद्र ने उनकी इच्छा को मंज़ूरी नहीं दी।

फोटो साभार- Getty Images

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35 ‘ए’ जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को, राज्य के ‘स्थायी निवासियों’ को परिभाषित करने और उन स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता है। यह 14 मई 1954 को राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था। यह अनुच्छेद 370 का हिस्सा था और इस अनुच्छेद (370) के खंड द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करता था लेकिन भारतीय संविधान और जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार की सहमति से।

क्या है अनुच्छेद 35 ‘ए’?

अनुच्छेद 35 ‘ए’ के तहत जम्मू-कश्मीर के लिए स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के विशेष अधिकार तय होते थे। इस अनुच्छेद के अनुसार 14 मई 1954 के पहले जो नागरिक कश्मीर में बस गए थे, उन्हीं को वहां का स्थायी निवासी माना जाता था।

कुछ अन्य बिंदु भी इस अनुच्छेद के तहत शामिल हैं, जैसे संविधान में जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा, राज्य के स्थायी निवासियों की पहचान, जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग संपत्ति नहीं खरीद सकते, बाहरी लोग राज्य सरकार की नौकरी नहीं कर सकते।

साल 1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बना जिसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया। जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 सालों से राज्य में रह रहा हो और उसने वहां संपत्ति हासिल की हो।

अनुच्छेद 35 ‘ए’ का विरोध क्यों?

इस अनुच्छेद के खिलाफ कई लोग कई सालों से विरोध कर रहे थे, क्योंकि इसके अंतर्गत ऐसी कई बातें थी जो लैंगिक भेदभाव और वहां रहने वाले निवासियों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित कर रही थी।

अनुच्छेद 35 ‘ए’ के विरोध में कई तर्क दिए जाते हैं। जैसे- कुछ लोगों को वहां रोज़गार एवं सरकारी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का लाभ नहीं मिल रहा है। 1947 में जम्मू में बसे हिंदू परिवार अब तक शरणार्थी हैं एवं इन्हें नौकरी हासिल करने का कोई अधिकार नहीं है।

कुछ लोगों को निकाय एवं पंचायत चुनावों में वोटिंग का अधिकार नहीं है। राज्य की किसी महिला द्वारा बाहरी व्यक्ति से शादी करने पर उसे संपत्ति के अधिकार से वंचित करने का प्रावधान है।

अनुच्छेद 35 ‘ए’ एक महिला को उसकी मर्ज़ी के पुरुष के साथ शादी करने पर उसके बच्चों को जायदाद में हक ना देकर उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। अगर कोई महिला किसी ऐसे पुरुष से शादी करती है जिसके पास कश्मीर की नागरिकता नहीं है तो उत्तराधिकारियों को भी नागरिकता नहीं मिलेगी और ना संपत्ति में हिस्सा।

कश्मीरी महिलाएं। फोटो साभार- Getty Images

यह अनुच्छेद महिला विरोधी तो था ही लेकिन दलितों के साथ भी इस अनुच्छेद ने बहुत अन्याय किए। 1950-60 के बीच जिन दलितों को जम्मू-कश्मीर राज्य में लाया गया था, उन्हें इस शर्त पर नागरिकता दी गई थी कि वे और उनकी आने वाली पीढ़ियां राज्य में तभी रह सकती हैं, जब तक वे मैला ढोते रहेंगे।

आज राज्य में छह दशक की सेवा करने के बाद भी उन मैला ढोने वालों के बच्चे सफाई कर्मचारी हैं और उन्हें कोई और पेशा चुनने का अधिकार नहीं है। इससे साफ है कि अनुच्छेद 35 ‘ए’ ने केवल भारतीय संविधान से ही नहीं, बल्कि कश्मीर की जनता के साथ भी कई सालों से सिर्फ धोखा ही किया है।

अब कैसा होगा कश्मीर?

अनुच्छेद 370 एवं 35 ‘ए’ हटने के बाद से अब जम्मू-कश्मीर की तस्वीर काफी हद तक बदल जाएगी। यह कहा जा सकता है कि कश्मीर अब वास्तव में भारत का अभिन्न अंग बन जाएगा। अब कश्मीर में निम्न बदलाव होंगे-

ये बदलाव धरातल पर आकर किस तरह दिखेंगे, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इस ऐतिहासिक फैसले के बाद यह कहना बिल्कुल सही होगा कि आखिरकार लोकतंत्र की जीत हुई। इन सारे तथ्यों के बीच हमें एक और बात समझने की ज़रूरत है कि कश्मीर को लेकर देश के औसत लोगों की समझ केवल इतनी ही है कि वहां अब वे ज़मीन खरीद पाएंगे और विवाह के ज़रिये रिश्तों का आदान-प्रदान भी होगा।

इसलिए मैंने अपने लेख में तमाम ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर बात की है, ताकि कश्मीर को लेकर हमारी समझ विवाह और ज़मीन तक ही सीमित ना रह जाए।

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