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“महिलाओं की फ्रीडम ऑफ च्वाइस पर हमला करने वाला हमारा तथाकथित संस्कार”

हमारे देश की महिलाओं ने हर स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गॉंधी से लेकर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने देश का नेतृत्व किया है। मंगलयान से लेकर चंद्रयान तक महिलाओं की लीडरशिप अपना कमाल दिखा रही है।

फिर भी हमारे समाज की मानसिकता ऐसी है कि महिलाओं को पुरुषों से कम ही आंका जाता है। आज भी एक महिला को अपनी आज़ादी के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती है।

बचपन से घर में ही शुरू होता है फ्रीडम ऑफ च्वाइस का कत्ल

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- Getty

बचपन से ही लड़कियों की परवरिश यह सोचकर की जाती है कि तुम लड़की हो तुम्हें हर स्तर पर समझौता करना सीखना चाहिए चाहे वह घर हो या कार्यस्थल। यही सोच कई बार महिलाओं को एक सफल लीडर नहीं बनने देती है। पुरुष प्रधान देश में महिलाओं की काबलियत को हमेशा ही कम आंका जाता है, महिलाओं को नाज़ुक और कमज़ोर समझा जाता है और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे आगे बढ़कर किसी भी काम में अपनी राय ना रखें।

मर्यादा के नाम पर उनकी बुलंद आवाज़ को उनके कार्यस्थल में दबा दिया जाता है। ज़्यादातर पेरेंट्स भी नहीं चाहते कि उनकी बेटी अपनी आवाज़ बुलंद करे। वे अपनी बेटी की परवरिश ही यह सिखाते हुए करते हैं कि तुम चुप रहना और किसी की नज़र में आने से बचना क्योंकि तुम्हें दूसरे घर जाना है।

हर जगह दबाया जाता है महिलाओं की आवाज़ को

महिलाओं की आवाज़ को हर जगह ही दबाया जाता है, चाहे वह उसका पहनावा हो, करियर चुनने की आज़ादी हो या फिर घर परिवार में अहम फैसले लेने की आज़ादी।

देश की लाखों महिलाएं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। संस्कारों के नाम पर महिलाओं की इच्छा की बलि दे दी जाती है, ज़्यादातर महिलाएं अपने जीवन से समझौता कर लेती हैं मगर कुछ महिलाएं अपनी आज़ादी के लिए आवाज़ भी उठाती हैं। हालांकि उन महिलाओं के लिए यह लड़ाई आसान नहीं होती, उन्हें कई स्तर पर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

आज भी हमारे समाज में महिलाएं कहीं घूंघट से आज़ादी की मांग रही हैं, कहीं उनको मंदिर में जाने की आज़ादी नहीं है, उन्हें अपनी पसंद की शादी करने की आज़ादी नहीं है, तो कहीं उनकी लड़ाई शादी के बाद नौकरी करने की की है।

कई ग्रामीण इलाकों में तो आज भी लड़कियों को घर से बाहर निकलने तक की आज़ादी नहीं है, उनको स्कूल कॉलेज नहीं भेजा जाता है। कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती है, उनको अपनी मर्ज़ी से अपना जीवनसाथी चुनने की आज़ादी भी नहीं है।

आज़ाद भारत में आज भी कुछ महिलाएं अपनी आज़ादी के लिए तरस रही हैं, जहां वे चाहती हैं खुद के फैसले लेने की आज़ादी, अपना जीवनसाथी चुनने की आज़ादी, नौकरी करने की आज़ादी, अपना पोशाक चुनने की आज़ादी और अपनी बात कहने की आज़ादी।

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