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बिना खुद में सुधार किए, देश का भविष्य नहीं सुधार पाएंगे युवा

उस देश में जहां मॉब लीचिंग हो रही हो, जहां एक कोने में पत्थरबाज़ी आम हो, जहां 132 गाँवों में 3 महीनों में एक भी लड़की पैदा ना हुई हो, जहां हिन्दू मुसलमान बंट रहे हो वहां पर बिना आंकड़ों के भी हमारे एजुकेशन सिस्टम का इम्पैक्ट एनालिसिस समझा जा सकता है। कुछ आंकड़ों को चश्मे से देखें तो एस्पायरिंग माइंड के एनुअल इम्प्लाइबिलिटी सर्वे 2019 के अनुसार 80% इंजीनियर जॉब पाने के लायक नहीं हैं। 2018 में टेक. महिंद्रा के सी.ई.ओ और एम.डी सी.पी गुरनानी भी कह चुके हैं कि 94% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नौकरी पाने लायक नहीं हैं।

अब लौटते हैं सरकारी आंकड़ों पर जहां श्रम मंत्रालय के हर पांच साल में निकलने वाले आंकड़ों में सितंबर 2018 के अनुसार भारत में अभी 31 मिलियन (1 मिलियन में 10 लाख होते हैं अब आंकड़े खुद बना लीजिए) बेरोज़गार लोग हैं और केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों के अनुसार देश पिछले 45 सालों में सर्वश्रेष्ठ 6.1% की बेरोज़गारी दर से आगे बढ़ रहा है।

ऊपर बताए गए आंकड़े एक दिन में नहीं बने हैं। यह कई सालों की शिक्षा व्यवस्था का परिणाम है। हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था केवल सर्टिफिकेट वाले साक्षर पैदा कर रही है, जो देश को साक्षरता के आंकड़ों में तो आगे बढ़ा रहा है मगर देश के विकास को जिन शिक्षित लोगों की ज़रुरत है, वह नहीं दे पा रहा है। 

युवाओं के देश में बेरोज़गारी 

हमारा देश युवाओं का देश है। हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था को कमज़ोर करने की साजिश स्वयं सरकार द्वारा की गई है। बड़े स्तर पर खुलने वाले प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं ने शिक्षा को एक व्यवसायिक रूप दिया है, जो काबिलियत के भरोसे नहीं बल्कि पैसे के भरोसे चलती है। उन संस्थाओं से निकले हुए बच्चों से क्या उम्मीद की जा सकती है?

2013 में उत्तराखंड की राजधानी में एक प्राइवेट संस्थान (डीम्ड यूनिवर्सिटी) में बच्चों ने हड़ताल कर दी। उन्होंने लम्बा चौड़ा मांग पत्र यूनिवर्सिटी को दिया। जिसमें एक मांग यह भी थी कि MBA को ट्राई सेमेस्टर की जगह 6 महीने का ही रखा जाए। अंदरूनी खबर यह थी कि हड़ताल करने की मुख्य वजह यही थी।

बच्चों का कहना था कि हम इतने ही पढ़ने वाले होते तो यहीं रह गया था एडमिशन लेने को। बैग भरके पैसा भी हम दें और पढ़ें भी हम ही। एक तरफ से देखा जाए तो वह बच्चे भी गलत नहीं थे क्योंकि वह भी उसी सिस्टम का हिस्सा थे, जिसने एडमिशन के वक्त डिग्री की गारंटी दी थी।

12 अगस्त को “इंटरनैश्नल यूथ डे” मनाया जाता है। हमारे लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि हम 600 मिलियन युवाओं वाले देश हैं। हम चाहे तो क्या नहीं कर सकते हैं?

फोटो क्रेडिट- getty images

समस्याओं को खुद सुलझाना होगा 

हम एक ऐसी स्थिति में हैं, जब हमारा देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। वह समस्याएं केवल राजनैतिक नहीं बल्कि ऐसी हैं जिन्हें हम स्वयं सुलझा सकते हैं। यह सुलझाना केवल एक समस्या सुलझाना नहीं होगा बल्कि देश को आगे बढ़ाने में योगदान देना होगा।

हमें पता है, हमारे देश के एजुकेशन सिस्टम में खराबी है मगर क्या हम इसे खुद अपने लिए ठीक नहीं कर सकते? अगर हमारा स्कूल या कॉलेज हमें ढंग से नहीं सिखा पा रहा है तो क्या हम स्कूल या कॉलेज से बाहर उसे सीखने की कोशिश कर रहे हैं?

अभिनेता पंकज त्रिपाठी के एक इंटरव्यू में उन्होंने युवाओं को कहा है,

इस देश में बहुत विविधता है। बारहवीं के बाद लोकल ट्रेन में स्लीपर क्लास में कम-से-कम पैसे में पूरा भारत घूमें। वह यात्रा इस देश को घूमना आपको कुछ से कुछ बना सकता है। वह आपके नज़रिये को बदल देगा। मैं मानता हूं अगर विद्यालय स्तर से बच्चों में सवालों को खोजने की क्षमता आ गई तो उनका कदम उद्यमिता की तरफ अपने आप बढ़ जाएगा।

“इंटरनैश्नल यूथ डे” की इस साल की थीम “ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन” है। शिक्षा व्यवस्था एक जटिल तंत्र है, जिसे केवल स्कूल स्तर पर नहीं सुधारा जा सकता। उसे सुधारने के लिए माँ, बाप और समाज को पहले आगे आना होगा।

शिक्षा व्यवस्था को बदलना है तो सबसे पहले समझना होगा कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाना नहीं होता बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य एक व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास है। जिसमें मानसिक विकास एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

बच्चों को जीवन कौशल सीखना ज़रूरी 

अलग-अलग स्कूलों में घूमते वक्त एक सवाल अधिकतर शिक्षकों द्वारा मुझसे पूछा जाता है कि हमारे बच्चे कैसे लगे? और मेरा अधिकतर जवाब होता है कि पूरे भारत के बच्चे एक से ही दिमाग के होते हैं। फर्क इस बात से पड़ता है कि आप उन्हें कैसे संवार रहे हैं?

उत्तराखंड निवासी योगी, फोटो क्रेडिट- बिमल रतूड़ी

योगेश उर्फ योगी, उत्तराखंड के सुदूर जिले बागेश्वर में तकरीबन 2200 मीटर की ऊंचाई पर बसे एक छोटे से गाँव शामा में रहने वाला बच्चा है। वह खूब शरारती है। जैसा इसे अपनी उम्र के हिसाब से होना चाहिए। मुझे इस बच्चे की सबसे अच्छी आदत यह लगती है कि उसके अंदर हर एक चीज़ को देखने की चाहत है। यह बच्चा बिल्कुल भी नहीं डरता। अकेले ही गाँव के रास्तों में घूमता, गाना गाता और डांस करता है। 

मिट्टी और हमारे दिए हुए रबड़ भी खाता है। मैं कई बार खेलता भी हूं इसके साथ। मैं मानता हूं कि योगी का यह बचपन उसे बाकी शहर में रहने वाले बच्चों से काफी कुछ अलग सिखाएगा क्योंकि वह प्रकृति से ज्यादा सीख रहा है। शहर में एक तो मैदान खत्म हो रहे हैं। दूसरा मम्मी-पापा की नज़र बच्चों को सीखने के लिए एक बैरियर-सा लगाती है। यह बच्चा आगे चलकर पढा़ई में जैसा भी हो मगर आगे चलकर इस बच्चे की सर्वाइवल स्किल बाकी बच्चों से बहुत ज़्यादा होगी।

हम बच्चों को अपनी जागीर समझते हैं, जिसमें हम चाहते हैं कि बच्चे हमारे हिसाब से सीखें और नज़रिया बनाएं। हम बच्चे को कभी फेल होना नहीं सिखाते। बच्चे को जीवन कौशल (लाइफ स्किल) सिखाना बहुत ज़रूरी है और यह चीज़ें किताबों से नहीं सिखाई जा सकती।

युवाओं को रास्ते खुद बनाने होंगे 

युवाओं को अपने रास्ते खुद बनाने होंगे। भीड़ के साथ लेकिन भीड़ से हटकर चलना होगा। हमारे सपने भी तो हमारी इसी यात्रा का हिस्सा हैं। कभी दूसरों के सपनों को मत जियो। हां, लोगों को अपने सपनों का सहयात्री बनाने में कोई हर्ज़ नहीं है। 

डॉ. कलाम की ज़िंदगी की कई बातें बहुत ज़ोरदार हैं। उनका एक सपना था, प्लेन उड़ाने का। ज़िंदगी के अलग-अलग मौकों पर उन्होंने कोशिशें की लेकिन कामयाब नहीं हो सके। राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने इस सपने को नहीं छोड़ा और 2006 में सुखोई-30 एम.के.आई. उड़ाया। बचपन में पतंग उड़ाने से शुरू हुए एक सपने को उस उम्र के पड़ाव में जीना अलग किस्म के जज़्बे को हमारे सामने रखता है।

कोई भी सम्पूर्ण स्थिति नहीं होती मगर हम कोशिश उसी की करते हैं। ऐसा शायद ही कभी होगा कि ऑफिस की टीम के सारे लोग अच्छे हो जाएं। बॉस कभी डांटे नहीं, पहली बार में ही माँ-बाप सारी बातें मान लें, पहली गर्लफ्रेंड से ही बिना किसी प्रॉब्लम के शादी हो जाए या पहले ही राउंड में आई.ए.एस बन जाएं।

यह सब कुछ नामुमकिन भी नहीं है बस उन सपनों को मरने नहीं देना है। सपने देखो और उन्हें पूरा करने की पूरी कोशिश करो और अगर तुम इस दौरान हारे भी, तो वह अनुभव आपको ज़िंदगी की सीढ़ी में बहुत आगे खड़ा कर चुका होगा। जहां से दूसरी मंज़िल पाना बहुत आसान होगा। 

 

 

 

 

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