Site icon Youth Ki Awaaz

गणेश सिद्धि के देवता हैं…

कहते हैं कि गणेश सिद्धि के देवता है । इनकी पूजा के बिना कोई काम पूरा नहीं हो पाता । यही वजह है कि हमारे देश, हमारे भारत में हर शुभ कार्य से पहले “श्री गणेश” करने की परम्परा है । गजराज का सिर रखने वाले इतने महाबलशाली देवता की सवारी है एक मूषक…। कभी आपने सोचा कि ऐसा क्यों…? गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? क्या है इसके पीछे की इसकी कहानी ? हिन्दू धर्म के सिद्धि विनायक की कहानी कैसे है विज्ञान से प्रभावित और क्या है इसके पीछे का विज्ञान..? कैसे भगवान गणेश ने दिलाई थी आजादी दिलाने में अहम भूमिका… आइए आपको बताते हैं , जरा विस्तार से… ।
बड़ो के गणपति गणेशा, बच्चो के My friend Ganesha…जिसपर बॉलीवुड ने न जाने कितने गाने, फिल्में और धारावाहिकों की लंबी झरिया लगाई है वो भी एक से बढ़कर एक… रितिक से लेकर अमिताभ तक…
एक ऐसा त्योहार जिसे हर धर्म हर जात और मजहब मनाता है और इसमें शरीक होता है । त्योहार के भक्ति और मस्ती में खोने से पहले आइए जानते है , क्या है इसके पीछे की मान्यताएं… ?
गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था । जन्म के पीछे की भी कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है । कहा जाता है कि माता पार्वती एक बार स्नान करने जाने से पहले चंदन लेप का उपटन लगाए थी । उस उपटन और अपने शरीर के मैल से उन्होंने एक प्रतिमा गढ़ी और उसकी सुंदरता पे मुग्ध होकर अपने शक्तियों से उसमें प्राण डाल दिये और उन्हें पुत्र स्वीकार किया । प्रकार जन्म हुआ बाल गणेश का । लेकिन उनका ये हाथी का सिर बचपन से नहीं है । हुआ यूं कि गणेश को पार्वती जी ने द्वार पाल बना कर स्नान करने चली गयी । इसी बीच भगवान आ पहुंचे । भगवान भोलेनाथ को गणेश ने द्वार पे रोक दिया । सच से अनजान दोनों में भीषण युद्ध हुआ और गणेश भोलेनाथ के हर प्रहार को विफल करते चले गए क्योंकि थे तो आदिशक्ति के अंश । अंततः भगवान शिव ने क्रोधित होकर त्रिशूल से उनका सर काट दिया । जब पार्वती को अपने पुत्र वध पता चला तो उन्होंने गुस्से में प्रचंड काली का रूप घारण कर तीनो लोक पर अपनी क्रोध की ज्वाला झोंक दी । घबरा कर शिव ने एक दूत भेजा और आदेश दिया कि जो भी उत्तर दिशा की तरफ सिर कर के सो रहा हो, उसका मस्तक ले आओ… ।
पुरातन हिन्दू धर्म के अनुसार उत्तर की दिशा में सर कर के सोना अशुभ है, इसलिए कोई मानव नहीं मिला । अंततः उत्तर दिशा में सो रहे एक गज का सर काट कर लाया गया और गणेश के शरीर मे प्रत्यारोपित किया गया ।
एंकर- अब वैज्ञानिक विचारधारा के लोग इसे मजाक मानते हैं और उत्तर दिशा ही क्यों इसपे खासा सवाल करते हैं ।  पहले तो शीश प्रत्यारोपण का मजाक उड़ाया…लेकिन चिकित्सा विज्ञान में ट्रांसप्लांट सर्जरी जैसी चीज का आविष्कार हो गया तो उनके मुंह पर ताले लग गयें  और लोगों ने विज्ञान आधारित भारतीय संस्कृति और मान्याताओं को तवज्जो देना शुरू किया । विज्ञान ये भी कहता है कि उत्तर दिशा की तरफ सिर करने सोने से ध्रुवों के चुम्बकीय प्रभाव शरीर पर विपरीत पड़ते हैं और बीमारियों को बुलावा देते हैं । गणेशा के जन्म की कहानी भी इस दिशा में ना सोने की बात कहता है । बस दिक्क्त ये है कि तब के आम लोगो को विज्ञान समझाना मुश्किल था तो सभी तथ्यों को उस दौर के हिसाब से पिरोया गया ।
एक दुसरी मान्यता है कि चंद्र देव और भगवान गणेश में विवाद हो गया । और अपनी सुंदरता पर अहंकार करते हुए चंद्रदेव नें गणेश का मजाक उड़ाया । जिसके बाद गणेश ने श्राप दे दिया कि भाद्रमास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को कोई चंद्र का दर्शन नहीं करेगा और जो करेगा उसे आयु दोष होगा । इसलिए हिन्दू धर्म में गणेश चतुर्थी को चाँद देखना वर्जित है ।
धर्म से आगे बढ़ कर अब इसके समाजिक और राजनैतिक इरादों पर प्रकाश डालतें हैं । हो सकता है आप भगवान और धर्म मे कम विश्वास रखते हो, या हो सकता है कि आप नास्तिक हो । लेकिन जब आप इसके राजनैतिक और सामाजिक पहलू को जानेंगे तो आप भी कहने से नहीं चूक पाएंगे….”गणपति बप्पा मोरया”
दरअसल इतिहास की सुने तो गणेश चतुर्थी शिवाजी के दौर में मनाने के साक्ष्य मिलतें हैं लेकिन इसका असल योगदान आजादी के लड़ाई में हैं । लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा तमाम देशवाशियों को एकता के सूत्र में बांधने और उनकी रगों में चेतना और अपनी सांस्कृतिक सम्पन्नता के स्वाभिमान का खून दौड़ाने के लिये इस पर्व को देशभर में बड़े हुंकार से शुरू किया गया । हर बड़े कार्य से पहले गणपति बप्पा मोरिया का नारा राष्ट्रवाद का प्रतीक सा बनने लगा । लेकिन अफसोस साम्प्रदायिक मनोविकार और अंग्रेजी हुकूमत के सियासी दांव पेंच ने इसे उत्तर पूर्व भारत मे विकराल रूप से फैलने नहीं दिया वरना हिंदुस्तानी अवाम के गणपति अंग्रेजी हुकूमत का विसर्जन करने ही वाले थे ।

तो ये थी कथा, गणेश भगवान की गाथा और गणेश चतुर्थी की महिमा… । शायद आपको इतना तो यकीन हो ही गया होगा कि भारतीय संस्कृति में पिरोए गए धार्मिक रिवाज असल में किसी न किसी खास कारण से है जिसका वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व अद्भुत है ।

Exit mobile version