खेल व्यक्तित्व विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। इस हेतु सरकारी विद्यालयों मे जमीन भी उपलब्ध करवायी गयी है। प्रश्न है क्या ईमानदारी से इन खेल मैदानों का समय से विकास हुआॽ नहीं हुआ है। आजादी के इतने सालों बाद भी इस देश के नौनिहाल खेल सुविधाओं को तरसते है। विकास न होने के कई कारण सामने आ रहे है जैसे जमीन पर धार्मिक स्थल बना कब्जा कर लेना। २॒ खेल जमीन पर अतिक्रमण कर खेती करना। ३॒ खेल जमीन पर प्राइवेट शौचालय बना बाहर के लोगो द्वारा कब्जा कर लेना। ४॒ जमीन पर माॅल बना पैसा कमाने के उद्देश्य से साजिश के तहत विकास न होने देना। ५॒ प्रशासन द्वारा स्वयं पैसे लेकर जमीन को प्राइवेट हाथो मे देने को तैयार हो जाना। समय से यदि खेल मैदान विकसित हो जाये तो अतिक्रमण की नौबत ही क्यों आये। प्रशासन को चाहिए कि वो एक एप बनाये व पूरे देश से खेल भूमि अतिक्रमण के मामलों पर रिसर्च करे व एक्शन प्लान बनाये कि सरकारी स्कूलों की खेल भूमि को कम समय मे कैसे अतिक्रमण मुक्त किया जा सकता है। इसका सही हल तो यही है सार्वजनिक रूप से सभी पक्षो को एक साथ बुलाया जाये। अतिक्रमण करने वाले, शिक्षा विभाग के अधिकारी, कलेक्टर, नगर निगम, पुलिस अधिकारी व जमीन हाउसिंग बोर्ड या डिवलप अथॉरिटी जिसके द्वारा जमीन शिक्षा विभाग को मिली है। इसका फायदा होगा समय बचेगा। समझाइश से मामला सुलझेगा । नहीं तो शिक्षाा की जमीन साल दर साल अतिक्रमण का दंश ही सहती रहेगी और अतिक्रमण हटाने की फाइल एक विभाग से दूसरे विभाग चक्कर ही काटती रहेगी। विशेष मिशन की जरूरत है कि सरकारी स्कूलों के खेल मैदानों से अतिक्रमण हटे व बजट देकर खेल मैदान का विकास कर खेल गतिविधि को प्रोत्साहन मिले।