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कविता: “मौत होती एक सच्चाई, सुन आंखे मेरी भर आईं”

सौरभ सिन्हा

सौरभ सिन्हा

मौत होती एक सच्चाई

सुन आंखे मेरी भर आईं।

 

जब जन्म लेता है इंसान

मिलता खूबसूरत यह जहान।

 

बड़े होते-होते ही की अपने लिए पढ़ाई

इस उम्र में खुशी और दुःख दोनों आई।

 

धीरे-धीरे बढ़ती गई ज़िम्मेदारी

सब चीज़ों की देखी हिस्सेदारी।

 

काम-काज में इतना रहता था ध्यान

कई बेहत्तरीन लम्हों का होता बलिदान।

 

कई अंजान चेहरों का मिलता साथ

अच्छे बुरे समय में रहता जिसका हाथ।

 

एक समय फिर सबकी ज़िन्दगी में आता

पारिवारिक दुनिया में खुद रच बस जाता।

 

फिर इस लम्हें में कई उतार-चढ़ाव भी आते

कभी मनाते, कभी चिढ़ाते, कभी हंसते-हंसाते।

 

धीरे-धीरे प्रौढ़ अवस्था का समय आया

ज़िन्दगी के रस्मो-रिवाजों को संजोया।

 

सुना है जब अंतिम मोह से सबकी होती विदाई

यही सत्य है, यही शाश्वत, यही सच्चाई।

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