पहाड़ों से भागी हुई लड़कियां
नहीं पहुंच पाई मैदानों तक।
कुछ जो मैदानों तक पहुंची भी
वो गंगा हो गई
तो कुछ हो गई
धर्मशाला।
पहाड़ों से भगाई गई लड़कियां भी
नहीं पहुंच पाई मैदानों तक।
कुछ जो मैदानों तक पहुंची भी
वो मैदानी हो गई
तो कुछ हो गई
जीतू बगड्वाल।
पहाड़ों से जो लड़कियां नहीं भागी
और जिन्हें नहीं भगाया।
वो पेड़ों का करती रहीं आलिंगन,
और गाती रही जागर।
और जब नहीं जागे देवता
तो दरांती से काटने लगी पहाड़,
पहाड़ को मैदान बनाने के लिए।
(नोट: जीतू बगड्वाल गढ़वाली लोक कथा का किरदार है, जिसे पहाड़ी परियां अपने साथ ले गई थी और फिर वो वापस कभी नहीं लौटा।)