यह जो धमाका हुआ
यह जो धरती चारो तरफ लहूलुहान हो गई,
पल भर में ही मुस्कान चीख में तब्दील हो गई
वह जो लहराते हुए जिस्म चल रहे थे
सदा के लिए कोफीन में बंद हो गए।
क्या यही हमला था?
या यह हमला नहीं, बदला था
हमला हुआ कब था?
जब एक बच्चा स्कूल से घर आ रहा था तब?
या तब जब हमले के बाद स्कूल बंद करा दिया गया तब
या हमला बस्ते से हुआ
जिसमें किताबों की जगह बारूद ने ली।
या हमला तब हुआ, जब उसके अब्बाजान गोली का शिकार हो गए
तब जब शहर में फैली दहशत के डर से
अम्मी ने किवाड़ की कुंदी सरका दी थी,
या हमला खेल के मैदान में हुआ
जिसे लाशों के कब्रिस्तान में तब्दील कर दिया गया।
या हमला तब हुआ, जब दिखाए गए नौजवानों को आज़ादी के सपने
तब जब दहशत मंज़रे ए-आम हो गई,
जब उसके हर सवालों का जवाब जिहाद से दिया गया
जब उसे निर्दोष होकर भी दोषी करार दिया गया।
जब आदिल पैदा हुआ, तब आतंकी तो नहीं था ना
फिर उस पर हैवान की नज़र कब पड़ी?
बार-बार मेरे ज़हन में एक ही सवाल उठ रहा है
आखिर हमला हुआ कब?
आदिल मर गया, क्योंकि वह आतंकवादी था
मुझे उससे कोई हमदर्दी नहीं,
मुझे फिक्र है हर उस मासूम की, जो सड़क से निकलते हुए
अब्बा के हाथ की ऊंगली पकड़े हुए,
अपने सवालों की खामोशी से लड़ते हुए
हर रोज़ हमले के घावों को सहला रहा है।
किसी रोज़ कोई घावों को कुरेदेगा
और हैवान उसे भी फिदायीन बना देंगे।