Site icon Youth Ki Awaaz

किसान की खोई हुई पहचान पर एक कविता

फोटो साभार- pixabay

फोटो साभार- pixabay

जिस देश की है पहचान, जय जवान-जय किसान

दुर्भाग्य से उन्हीं पर नहीं है, किसी का भी ध्यान।

 

कहने को तो है हमारा देश समृद्ध और महान

किस्मत के मारे हैं हमारे अन्नदाता और उनकी पहचान।

 

कर्ज़ मे डूबे, करते वे आत्मदाह और अपने परिवार का बलिदान

जिनके बच्चे भी भूखे सोते, कोई नहीं करता उनपर एहसान।

 

जो इस धरातल को बनाते हरा-भरा और बढ़ाते इसकी सौंदर्य व शान

लेकिन उनके परिवार पर आती विपत्ति और संकट व जाती है जान।

 

दिनभर मेहनत कर खेतों में उगाते गेहूं, गन्ना, दाल और धान

प्राकृतिक आपदा और ज़मींदारो के कर्ज़ तले ज़िदंगी बन जाती है शमशान।

 

फटे-चिटे वस्त्रो में, बासी रोटी खाकर करते गुज़ारा, रहकर अंजान

चिंता और कष्टों में भी सहते हैं आंधी और तूफान।

 

कोई तो समझे उनकी वेदना को और बांटे सुख-दु:ख व अपना ज्ञान

इज्ज़त करो उनकी, बचाओ उनकी जान, फिर होगा खुद पर अभिमान।

 

कर्ज़ तो हमें अदा करनी चाहिए, उनको बनाकर समृद्ध, मत हो हैरान

उन्हीं के कारण हम खाते हैं, ना मिटाने दो उनका नामों-निशान।

 

चलो उठो और कदम बढ़ाओ उनको देने शिक्षा, धन और ज़रूरत का सामान,

चाहे वे किसी भी धर्म के हों, मदद करने कहता हमारा वेद और कुरान।

 

ध्यान रहे अगर किसान नहीं तो अन्न नहीं

गुम ना होने दो उन्हें, करो उनका सम्मान,

तब जय जयकार होगी सही मायने में, जय जवान-जय किसान।

Exit mobile version