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“जिस देश में पुलिसवाले मुस्लिमों को अपराधी मानते हैं, वहां न्याय की उम्मीद कैसे हो”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

“माई नेम इज़ खान, बट आई एम नॉट अ टेररिस्ट”

शाहरुख खान की मूवी का यह डायलॉग किसी खास धर्म की तरफ इशारा करते हुए संदेश देती है कि केवल नाम के पीछे खान होना या मुस्लिम होना मतलब यह नहीं कि कोई आतंकवादी है। जब मैंने यह मूवी देखी थी, तब मुझे अंदाज़ा नहीं था कि लोगों में ऐसी धारनाएं होंगी।

सवाल तब उठने शुरू हुए जब CSDS की रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि 50 प्रतिशत पुलिसवाले मानते हैं कि मुसलमानों का झुकाव अपराध की ओर स्वभाविक तौर पर होता है।

इस रिपोर्ट में कई खुलासे किए गए हैं, जैसे- 72% पुलिसवाले मानते हैं कि किसी भी मामले की जांच में उन्हें राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है। गौरतलब है कि यह सर्वे दिल्ली में स्थित संस्थान CSDS यानि (Centre for Study of Developing Societies) ने 21 राज्यों के 12,000 पुलिसकर्मियों के साथ बातचीत के आधार पर तैयार किया है।

इतना ही नहीं, 14% पुलिसवालों का यह भी मानना है कि किसी भी अपराध से मुस्लिम ज़रूर जुड़े होते हैं, जबकि 36% पुलिसवालों का मानना है कि किसी भी अपराध में कहीं ना कहीं मुसलमानों की संलिप्तता ज़रूर होती है।

बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तराखंड के दो-तिहाई पुलिस अधिकारी यह मानकर चलते हैं कि मुस्लिम तो अपराध कर ही सकते हैं। उत्तराखंड में हर पांच में से चौथा पुलिसकर्मी यह सोचता है कि मुस्लिम मतलब अपराधी।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

ऐसे आकड़े केवल हमें सोच में ही नहीं डालते, बल्कि पुलिसवालों के प्रति कहीं ना कहीं हमारा विश्वास भी कम कर देते हैं। ऐसे पूर्वाग्रह से ग्रसित पुलिसवाले क्या कभी भी मुस्लिम समुदाय के साथ न्याय कर पाएंगे?

देश में जहां हमारा संविधान धर्म के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव की इजाज़त नहीं देता, उस देश में ऐसी मानसिकता का होना एक बेहतर समाज के लिए खतरा है। सवाल केवल ऐसी सोच या मानसिकता की नहीं है, बल्कि हमें सोचना पड़ेगा कि हम अपने समाज को किस ओर ले जा रहे हैं।

वर्दी में बैठे पुलिसवाले जब पहले से ही किसी खास वर्ग के लिए अपनी सोच बना चुके होंगे, तो क्या वे अपने काम, अपने देश और अपनी वर्दी के साथ न्याय कर पाएंगे?

अगर एक बड़ा तबका ऐसी सोच रखता है, तो हमें समझना होगा कि हम न्याय करने के नाम पर केवल शीशे को साफ करने में लगे हैं और खुद के चेहरे की धूल को जान बुझकर नहीं देख रहे हैं, जो घातक है।

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