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फोन और इंटरनेट एक ज़रूरी माध्यम है, इसे डिप्रेशन का कारण ना बनाएं

एक सर्वे के मुताबिक भारत में हर पांचवा आदमी डिप्रेशन यानी अवसाद की बीमारी से ग्रसित है। वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में भी भारत का स्थान उसके पड़ोसी देशों से काफी नीचे है, भारत इस लिस्ट में अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से भी बहुत पीछे है।

अगर दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है, जो दुखी है या फिर उसे खुश रहने की कला नहीं आती है। भारत में फैलते मानसिक रोगों के कई कारण हैं। पहले लोगों का मानना था कि अवसाद अमीरों की बीमारी होती है, यानी जिसके पास जितने ज़्यादा पैसे उतनी ज़्यादा टेंशन।

अब यह अवधारणा धीरे-धीरे गलत साबित होने लगी है। अगर आप किसी मनोचिकित्सक की क्लीनिक पर विज़िट करें, तो आप देखेंगे कि वहां पर आपको हर तरीके के लोग मिल जाएंगे अमीर, गरीब, बूढ़े, बच्चे महिलाएं और नवयुवक।

मानसिक रोगों के कारण

यूं तो मानसिक रोगों के और भी कारण हैं मगर सबसे बड़ा कारण लोगों की जीवनशैली में भारी बदलाव का होना है। आज इस स्मार्टफोन और इंटरनेट के दौर में हम किसी से भी दुनिया के किसी भी कोने में जुड़ सकते हैं, उससे बात कर सकते हैं मगर इस फोन और इंटरनेट ने लोगों को खुद से और उनके सच्चे दोस्तों से काफी दूर कर दिया है।

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- pexels.com

एक आम आदमी आज के समय में अपने फोन को कम-से-कम 5 से 6 घंटे देता है। हालांकि कुछ लोगों के लिए ये 7 से 10 घंटे भी हो जाते हैं। यानी कि हम अपने ज़्यादातर फुर्सत के समय अपने फोन को दे देते हैं और हमारे पास समय ही नहीं बचता कि हम अपने परिवार, अपने बच्चों और अपने दोस्त जो हमारे पास हैं उनसे बातें करें।

इस तरह बच्चों के लिए मॉं-बाप के पास वक्त नहीं मिल पाता, पति-पत्नी एक-दूसरे को समय नहीं दे पाते हैं।। इंटरनेट और स्मार्टफोन की दुनिया में खोए हुए लोग वास्तविक जीवन मे चुनौतियों के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं। जब कोई चुनौती उनके दर पर दस्तक देती है तो वह बिखर जाते हैं और छोटी सी घटना भी उन्हें तोड़कर रख देती है, जैसे एक्ज़ाम में कम नंबर आना या फिर प्रेम संबंधों का टूटना जैसी आम घटना भी मानसिक रोगों की तरफ ढकेल देती है।

उपाय

मानसिक रोगों से छुटकारा पाने और वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में रैंकिंग को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी है कि देश के हर स्कूल में दिल्ली के स्कूलों के तर्ज़ पर हैप्पीनेस क्लास शुरू किए जाए, ताकि बच्चे अपने आपको भावानात्मक रूप से मज़बूत बना सके। दिनभर रोज़गार के लिए बाहर रहने वाले लोगों के लिए ज़रूरी है कि वे अपने परिवार और अपने बच्चों को समय दें, अपने दोस्तों के बीच समय बिताएं। यह याद रखें कि फोन और इंटरनेट उनके लिए बना है, वे इंटरनेट के लिए नहीं बने हैं। खुद को समय दें, बेहतर किताबे पढ़ें, सुबह सैर को जाएं और कुछ व्यायाम करें।

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