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क्या हम क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति उदार हैं?

14 सितंबर को हम सभी ने हिंदी दिवस मनाया। हिंदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए गए लेकिन हमें यह सोचना होगा कि इस रोज़ हमने शुभकामनाओं के अलावा और क्या क्या?

क्या आपने हिंदी दिवस पर हिंदी या भाषा के बारे में कुछ नई जानकारी हासिल करने की कोशिश की? या सिर्फ एक-दूसरे को शुभकामनाएं ही देते रह गए। हिन्दी दिवस के मौके पर हमें इन चीज़ों पर मंथन करने की ज़रूरत थी।

भाषाओं के बारे में मेरा ज्ञान और समझ जो है, वो यह कि भाषाओं ने इतिहास में राष्ट्र और राज्य बनाए हैं। भाषा राष्ट्र के लोगों को आपस में जोड़ती है और उनमें राष्ट्रीयता और एकता की भावना भी विकसित करती है। भाषा, ज्ञान और संस्कृति की धुरी भी होती है और विकसित मानवीय सभ्यताओं की आधारशिला भी।

मेरे लिए मातृभाषा का महत्व यह है कि मैं किसी विषय को अपनी मातृभाषा में दूसरी भाषा में सीखने की अपेक्षा जल्दी सीख लेता हूं और अपने आप को अपनी मातृभाषा में ज़्यादा अच्छे से अभिव्यक्त भी कर पाता हूं। मातृभाषा आप सब की तरह मेरे भी हृदय में बसती है।

फोटो साभार- Getty Images
मैं इस हिंदी दिवस पर एक बात साफ कह देना चाहता हूं कि हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व करने की ज़रूरत है लेकिन हम यह भी सुनिश्चित कर लें कि कहीं दूसरों की मातृभाषा से हम नफरत तो नहीं कर रहे हैं। खासतौर से भारत जैसे विविध भाषा और संस्कृति वाले देश में, जहां भारत में क्षेत्रीय भाषाओं के आधार पर राज्यों का विभाजन और पुनर्गठन भी हुआ। एक दूसरे की भाषायी संस्कृति और क्षेत्रीय अस्मिता को स्वीकार करते हुए हम  भारतीय भी बने रहे।

हम सब अपनी मातृभाषा में जीते हैं। इसलिए क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति भी हमारा रवैया उदार ही नहीं, बल्कि हममें अन्य भाषाओं को जानने की भी ललक होनी चाहिए। भाषा दो सभ्यताओं के बीच पुल का काम करती है। यह हमारी संस्कृति और ज्ञान को समृद्ध भी बनाती है।

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