एक बार राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से सही होने के दृष्टिकोण को एक ओर रखकर ईमानदारी से इस प्रश्न का उत्तर दीजिये कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसा वातावरण निर्मित कर रहे हैं?
इस पर विचार करने के बाद हम जान पाएंगे कि यह एक ऐसा वातावरण है, जहां दूषित मानसिकता वाले लोग रह रहे हैं, जो आए दिन हत्या, चोरी, लूट और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में बेखौफ होकर शामिल हो रहे हैं।
हमारे देश में बलात्कार की घटनाएं आए दिन सुनने की मिलती हैं। निर्भया, कठुआ और अलीगढ़ में हुई निर्मम हत्या और बलात्कार जैसी घटनाओं ने देश को झकझोर कर रख दिया है। अभी अखबारों की सुर्खियों में उन्नाव में हुए एक बलात्कार की चर्चा पूरे देश में है।
बहुत कुछ कहती है उन्नाव की घटना
यह घटना उत्तरप्रदेश के उन्नाव ज़िले की है, जहां के सत्तारूढ़ पार्टी के चार बार चुने गए विधायक पर सर्वाइवर ने बलात्कार का आरोप लगाया। सर्वाइवर ने बताया कि विधायक ने काम दिलाने के बहाने उसके साथ लंबे समय तक यौन शोषण एवं बलात्कार किया।
इस घटना के घटित होने के एक साल बाद सर्वाइवर ने अपने साथ हुए अमानवीय कृत्य के विरोध में जनता का ध्यान इस ओर खींचने के लिए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के आवास के बाहर आत्मदाह का प्रयास भी किया। इस घटना के बाद लोगों का ध्यान इस ओर गया और अगले ही दिन सर्वाइवर के साथ हुए इस अन्याय के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
इससे आम जनमानस में असंतोष और आक्रोश की लहर उत्पन्न होने के साथ-साथ इसके विरोध में प्रदर्शन भी हो रहे हैं।
इस घटना के बाद वहां की पुलिस ने सर्वाइवर का साथ ना देकर उसके पिता को एक आर्म्स एक्ट केस में गिरफ्तार कर पुलिस अभिरक्षा में ले लिया। सर्वाइवर के पिता की पुलिस अभिरक्षा में ही मौत हो गई।
पुलिस, समाज में रहने वाले लोगों की सुरक्षा एवं सौहार्दपूर्ण शांति व्यवस्था कायम करने के लिए राज्य के एक महत्वपूर्ण अंग की तरह कार्य करती है लेकिन पुलिस का सर्वाइवर के साथ हुए अन्याय के विरोध में साथ देने के बजाय उसके पिता पर आर्म्स एक्ट का केस लगाकर गिरफ्तार करना, पुलिस के अमानवीय व्यवहार एवं उनकी समाज में भूमिका पर सवाल खड़े करते हैं।
इसका मुख्य कारण यह भी है कि आम जन-मानस की नज़रों में पुलिस की छवि अन्याय करने वालों का साथ देने वाले की बन गई है। यह एक भयावह छवि ही नहीं, बल्कि एक भयावह सच भी है। ऐसे बहुत सारे मामले फाइलों में बंद हैं, जिनमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध मानी गई है, जिन्होंने पूरी पुलिस व्यवस्था एवं राज्य को कटघरे में खड़ा किया है। पुलिस की साख आम जन-मानस की नज़रों में दिन-प्रतिदिन क्यों गिर रही है?
न्यूज़ पेपर के पैसे मांगने पर हॉकर की हत्या कर दी गई
यह हमेशा के लिए एक माकूल सवाल रहेगा। अभी हाल ही में जयपुर में एक शख्स ने न्यूज़ पेपर के हॉकर की कुल्हाड़ी से गला काटकर इसलिए निर्मम हत्या हत्या कर दी, क्योंकि वह हॉकर अपने पैसा मांग रहा था। वहीं, पुलिस पर आरोप है कि वह पीड़ित के परिवार एवं उसकी निर्मम हत्या करने वाले आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ ना करके परिजनों पर लाठीचार्ज और मारपीट कर रही है।
एक और ऐसा ही पुलिस का भयावह सच राजस्थान के चूरू ज़िले में सामने आया। सरदारशहर के सोनपालसर गाँव के युवक की पुलिस हिरासत में मौत होने के बाद पुलिस द्वारा उसकी भाभी के साथ बलात्कार का मामला प्रकाश में आया।
पुलिस का प्रतीक चिन्ह है “आम जन में विश्वास और अपराधियों में भय” लेकिन वर्तमान समय में हालात इसके विपरीत ही हैं, जहां “आमजन में भय और अपराधियों में अन्याय करने का विश्वास” प्रासंगिक हो गया है। जब ऐसे मामले सामने आते हैं, तब आला अधिकारियों द्वारा बस एक नाम मात्र की जांच कमेटी बनाकर इतिश्री कर ली जाती है लेकिन आम जन-मानस के साथ हुए अन्याय को न्याय नहीं मिलता।
उन्नाव मामले में आरोपी विधायक को बचाने की कोशिश हुई
उन्नाव मामले में बढ़ते जन आक्रोश और विरोध को देखते हुए बलात्कार के आरोपी विधायक को गिरफ्तार कर लिया गया है। सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी है लेकिन जेल में रहते हुए भी बलात्कार के आरोपी ने सर्वाइवर एवं उसके परिवार पर जानलेवा हमला करवाया है। उसमें सर्वाइवर को बहुत चोट आई है। सर्वाइवर अभी अपनी ज़िन्दगी से जंग लड़ रही है।
इन सब में सबसे विस्मित करने वाली बात यह है कि उन्नाव के बलात्कार का आरोपी केंद्र एवं राज्य में सत्तारूढ़ और देश की सबसे बड़ी प्रजातांत्रिक पार्टी का सम्मानित सदस्य एवं चार बार उस क्षेत्र का निर्वाचित विधायक है। इस घटना के बाद राज्य के मुख्यमंत्री एवं केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के सम्मानित सदस्यों ने इसके विरोध में सामूहिक ज़िम्मेदारी लेने के बजाय एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कथन दिया, “आरोपी हमारी पार्टी का कोई सदस्य नहीं है। हमने उन्हें बहुत समय पहले ही पार्टी से निष्कासित कर दिया।”
यह कथन दर्शाता है कि राज्य एवं केंद्र सरकार देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कितनी चिंचित है। ऐसी तमाम घटनाएं अखबारों के पन्नों में ही रह जाती हैं, जो कि देश में महिलाओं की सम्मान-जनक स्थिति, दावों, योजनाओं एवं महिला सशक्तिकरण की पोल खोलती हैं।
ये घटनाएं साबित करती हैं कि हमारे देश में महिलाएं कितनी स्वतंत्र हैं। किस तरह हम महिला सशक्तिकरण की दिशा में कार्य कर रहे हैं। किस तरह हम ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओं’ अभियान को बुलंदियों पर ले जा रहे हैं। इस घटना के घटित होने के बाद भी राज्य के मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि किस तरह हमने अपराध और अपराधियों को सलाखों के पीछे बंद कर दिया है।
लड़कियों को हमें उनके हिस्से की आज़ादी देनी होगी
इसी घटना के संदर्भ में एक बच्ची ने जब बाराबंकी में एसपी से सवाल पूछा, तब उनकी बोलती बंद हो गई। हमारे देश में शुरू से ही लड़कियों को सिखाया जाता है कि तुम लड़की हो और तुम्हें अपने अनुसार रहने की आज़ादी नहीं है। तुम्हें अपनी ज़िन्दगी के निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है, केवल तुम्हें जितना बताया जाए उतना ही सुनना है और जितना कहा जाए, उतना ही करना है।
लड़कियों को गर्दन नीचे करके चलने की नसीहत दी जाती है। उन्हें कहा जाता है कि सीधे जाओ और सीधे आओ, यदि तुम्हें कोई कुछ कहे या परेशान करे तो तुम चुपचाप सुनकर चली आओ, क्योंकि तुम्हें विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है।
हमारे देश में लड़कियां खुलकर सेक्स जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अपने माता से बात नहीं कर सकती हैं। अपने शरीर में होने वाली शारीरिक प्रक्रियाओं और बदलावों के संबंध में भी बात नहीं कर सकती हैं। आज भी हमारे देश में लड़कियां अपने मासिक धर्म एवं खुद की सुरक्षा के लिए उपयोग में आने वाले सैनेटरी पैड को किसी केमिस्ट की दुकान पर मांगने में झिझक महसूस करती हैं।
आज भी लड़कियां सैनेटरी पैड्स को ब्लैक पॉली बैग या अखबार में सबसे छिपाकर ले जाती हैं। यह हमारे देश की आज़ादी के 73वें साल के परिदृश्य की भयावह तस्वीर है।
संविधान में महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों के लिए तमाम प्रावधान हैं। जैसे-
अनुच्छेद 14- इसका मतलब है समानता का अधिकार। इसे भारतीय संविधान की आधारशिला भी कहा जाता है। राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
अनुच्छेद 15 (1 ) एवं 16 (2 )- ये अनुच्छेद इस सिद्धांत को और अच्छे तरीके से परिभाषित करते हैं कि राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को धर्म, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। यह सुनिश्चित करता है कि पुरुष और महिला, उच्च और निम्न जाति धनवान और गरीब (आर्थिक रूप से पिछड़े) के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। समानता के अधिकार के साथ ही 15 (3 ), (4 ) एवं 16 (3 ), (4 ) इसे और सशक्त बनाने में मददगार हैं।
अनुच्छेद 21- यह प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार है। यह अधिकार महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच के भांति कार्य करता है। इसके तहत महिलाओं को अपनी आज़ादी से सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है। इसके तहत महिलाओं को विवाह विच्छेद और सुरक्षित गर्भपात के अधिकार के साथ-साथ अन्य अधिकार भी शामिल हैं।
अनुच्छेद 51- यह देश के सभी नागरिकों के लिए निर्धारित करता है कि महिलाओं का सम्मान करना उनका मूल कर्त्तव्य है। यह उन प्रथाओं का त्याग करने पर भी ज़ोर देता है, जिनसे किसी महिला के सम्मान पर आंच आती हो।
महिलाओं पर हो रही हिंसा की घटनाओं और महिला विरोधी विधि को और सशक्त बनाने के लिए सरकार एवं इस दिशा में कार्य कर रहे स्वयं सेवी, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों के कारण सरकार ने छोटे बच्चों के प्रति हो रहे यौन हिंसक अपराधों को कठोर करने की दिशा में एक और कदम उठाया है।
पॉक्सो एक्ट में संशोधन है बेहद सराहनीय पहल
एक स्वयं सेवी संस्था द्वारा दायर की गई जनहित याचिका (In-re Alarming Rise in The Number of Reported Child Rape Incidents) को ध्यान में रखकर पॉक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012) में संशोधन किया गया है। अब 12 वर्ष तक के छोटे बच्चों के साथ यदि कोई ऐसा यौन शोषण या हिंसा करता है, तो आरोपी को मृत्युदंड से भी दंडित किया जा सकता है।
इससे पहले विशेष से विशेषतम मामलों में ही आरोपी को मृत्युदंड से दंडित जाता था। ऐसे दो मामले हैं, जिनमें आरोपियों को मृत्युदंड से दंडित किया गया है। पहला- माछी सिंह बनाम पंजाब राज्य1983 और दूसरा है देविंदर पाल सिंह भुल्लर, 2002 दिल्ली बम ब्लास्ट केस।
एन.सी.आर.बी. के आंकड़े परेशान करने वाले हैं
आपको बता दें कि जनवरी से लेकर जून तक छोटे बच्चों के प्रति यौन शोषण की 24,212 एफआईआर दर्ज़ की गई है। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों में यह भी ज़िक्र है कि सिर्फ 6,449 मामलों में ही सुनवाई शुरू हुई है।
बहरहाल, हमें महिलाओं की सुरक्षा संबंधित नियमों को और कठोर बनाना होगा जिससे उनके प्रति हो रहे अपराधों में कमी आए। हमें महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं स्वाभिमान से जीने की आज़ादी देनी होगी, जिससे वे अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जी सकें।
हमें उनके द्वारा लिए गए निर्णयों का सम्मान करना होगा। हमें यौन शिक्षा एवं अन्य संवेदनशील मुद्दों पर महिलाओं की राय जाननी होगी, जिससे वे अपने प्रति होने वाले अपराधों से सावधान रहें।
पुलिस को आम जन-मानस के लिए ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे, जिनसे उनमें पुलिस के प्रति जो भयावह छवि बन चुकी है, वह दूर हो सके। यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि आम जन में पुलिस के प्रति घृणा ना हो।
यह भी सत्य है कि बहुत सारी स्वयं सेवी संस्थाएं इस दिशा में कार्य कर रही हैं। मैं उन संस्थाओं को सलाम करता हूं, जिनके द्वारा शिद्दत से इस काम को किया जा रहा है।
यह मेरी, आपकी और देश के प्रत्येक नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि हम महिलाओं का सम्मान करें, उन्हें सम्मान दें और अपने मूल कर्तव्यों का पालन करें मगर हां, हमें समय के कपाल पर एक और उन्नाव नहीं चाहिए।