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मसूरी की खूबसूरती देखने के नाम पर ही खत्म की जा रही है उसकी खूबसूरती

कितना खूबसूरत लगता है ना जब हम शहर की भीड़ से दूर पहाड़ों की खूबसूरती और सुन्दरता में अपनी छुट्टियां बिताने आते हैं लेकिन शहरीकरण के जाल ने इन खूबसूरत दिखते पहाड़ों को भी नहीं छोड़ा है।

वैसे तो मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है लेकिन लंबी-लंबी इमारतों को देखते हुए ऐसा लगता है कि ये पहाड़ पेड़-पौधों की जगह कंक्रीट के बने मकानों और बड़े-बड़े होटलों से बने हैं। देश और दुनियाभर से लोग यहां घूमने आते हैं। मई जून के महीने में हाल यह होता है कि मसूरी की आबादी नॉर्मल से बढ़कर लगभग 50 प्रतिशत ज़्यादा हो जाती है।

मसूरी में लोगों द्वारा फैलाए गए कचरे। फोटो सोर्स- ऋषभ भारद्वाज

कमरों और पानी की हुई किल्लत

इसका बुरा नतीजा इस साल के टूरिस्ट सीज़न में कुछ यह रहा कि जो लोग अपनी छुट्टियां बिताने मसूरी आए थे, उनको रहने के लिए होटल्स में कमरे नहीं मिले, जिसकी वजह से कई टूरिस्टों को रात सड़कों पर ही गुज़ारनी पड़ी।

वहीं जो लोग बड़े-बड़े होटलों में पहले से अपनी बुकिंग करवा कर रुके थे, उनको रहने के लिए रूम तो मिल गए लेकिन पीने का साफ और स्वच्छ पानी नहीं मिला। मंज़र यह रहा कि होटल्स के मालिकों को पानी के टैंक मंगवाने पड़े। यह बात तो साफ है ही कि इतनी खूबसूरत दिखने वाली मसूरी में पीने का साफ और स्वच्छ पानी नहीं है।

स्थानीय लोगों को भी झेलनी पड़ती है पानी की किल्लत

वहीं स्थानीय लोगों को भी घंटों पीने के पानी का इंतज़ार करना पड़ता है। पहाड़ों में जहां पहले प्राकृतिक जल स्रोतों द्वारा लोगों को पीने का पानी मिला करता था, वहीं आज घर-घर पानी की पाइप लाइनों द्वारा पीने का पानी दिया जाता है। उसमें भी अगर किसी दिन पानी ना आए तो रोज़मर्रे के काम को रोक देना पड़ता है, फिर चाहे वह सुबह के मुंह धोने से शौच की ज़रूरत की चीज़ें ही क्यों ना हो।

मसूरी पहाड़ों की रानी है इसलिए यह पहाड़ों में सबसे खूबसूरत है। लेकिन टूरिस्टों द्वारा गाड़ियों की भीड़ इसकी खूबसूरत पर नकारात्मक असर डाल रही है। कोई अपनी गाड़ी से यहां घूमने आए तो वे सड़कों पर ट्रैफिक को बढ़ावा देते हैं और अगर कोई व्यक्ति पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आते हैं तो घंटों ट्रैफिक में इंतज़ार करना पड़ता है।

अगर कोई बेहद जल्दी में है तो जहां 60 रूपए का किराया मसूरी से देहरादून स्थिति ISBT तक देने पड़ते हैं, वहीं यातायात के आभाव से लोगों को समय पर पहुंचने के लिए 300 रूपए से 1500 रूपए तक टैक्सी वालों को देने पड़ते हैं।

किसी को यह गंवारा नहीं तो उसको घंटों लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा होकर अपना नंबर आने का इंतज़ार करना पड़ता है। जो ज़्यादा जल्दी में हो उसको बस में खड़ा होकर देहरादून तक का सफर तय करना पड़ता है लेकिन टिकट का पैसा पूरा देना पड़ता है। अब चुकी मसूरी पहाड़ों की रानी है तो यातायात साधनों की इस किल्लत के बावजूद लोग यहां आने के लिए उत्सुक होते हैं। आफ्टर ऑल  मसूरी पहाड़ों की रानी जो है।

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